रायपुर / देश की आजादी के बाद सबसे बड़ी क्रांति यह थी कि लोक सभा तथा राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचन के लिए सार्वजनिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया। घोर पिछड़ेपन, घोर दरिद्रता तथा घोर निरक्षरता वाले, नए-नए स्वाधीन हुए देश में हर नागरिक को जिसकी आयु 21 वर्ष से कम न हो (अब घटाकर 18 कर दी गई है) और जो किसी विधि के अधीन अनिवास, चित्तविकृति, अपराध या भ्रष्ट अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा अयोग्य न हो, वोट का अधिकार देना संविधान निर्माताओं के लिए एक बहुत बड़ी आस्था और जनसाधारण में विश्वास का काम था (अनुच्छेद 326)। अनुच्छेद 324 कहता है कि एक निर्वाचन आयोग होगा। वह संसद और प्रत्येक राज्य विधानमंडल के वास्ते तथा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के वास्ते सभी निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण करेगा।

देश की आजादी के बाद जुलाई 1948 को ही भारतीय नेताओं ने चुनावी प्रक्रिया की तैयारियां शुरू कर दी थी। हालांकि, तब-तक चुनाव कराने के लिए कोई कानून नहीं थे। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में, ड्राफ्टिंग कमिटी (मसौदा समिति) ने कड़ी मेहनत कर संविधान का मसौदा तैयार किया था, जो 26 नवंबर, 1949 को पारित हुआ। हालांकि, इसे लागू 26 जनवरी, 1950 से किया गया। भारत को उस दिन चुनाव कराने के लिए नियम और उप-नियम मिले और देश आखिरकार ‘भारत गणराज्य’ बना। यह एक असाधारण सफ़र की महज़ शुरुआत थी। वैसे तो 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हो गया था लेकिन पहले चुनाव 1951 में हो पाए। यह जानना जरूरी है कि आज़ाद भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्टूबर, 1951 और 21 फ़रवरी, 1952 के बीच हुआ था।
संविधान लागू होने के बाद निर्वाचन आयोग का गठन किया गया। चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी भारतीय नौकरशाह, सुकुमार सेन को दी गई। इस तरह वे भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने।

इसमें सबसे बड़ी चुनौती थी भारत की आबादी, जो उस समय करीब 36 करोड़ थी। दुनिया की आबादी का करीब 17 फ़ीसदी हिस्सा मतदान करने वाला था। यह उस समय का सबसे बड़ा चुनाव था। चुनाव में करीब 1,874 उम्मीदवार और 53 राजनैतिक पार्टियां उतरी थीं, जिनमें 14 राष्ट्रीय पार्टियां थीं और इन दलों ने 489 सीटों पर चुनाव लड़े थे।

संविधान के लागू होने पर, भारत ने वोट डालने के लिए उसी उम्र को योग्य माना जो दुनिया भर में अपनाई जा चुकी थी। इससे 21 साल से ज्यादा उम्र वाले लगभग 17.3 करोड़ लोग वोट डालने के लिए योग्य पाए गए। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र तय किए जाने थे, जो 1951 में हो पाया। अशिक्षित आबादी, चुनाव चिह्न डिज़ाइन, मतपत्र और मतदान पेटी, मतदान केंद्र आदि समस्या व चुनौती थी। साथ ही यह पक्का करना था कि मतदान केंद्रों के बीच सही दूरी हो। मतदान अधिकारियों को नियुक्त कर प्रशिक्षण सहित अनेक परेशानियों औऱ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा।

हालांकि इन चुनौतियों को पार करने में समय लगा। आखिर में जब चुनाव हुए, तो योग्य आबादी में से 45.7 प्रतिशत मतदाता, पहली बार वोट डालने के लिए अपने घरों से बाहर निकले। इस तरह भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बना, जहां लोगों ने, लोगों के लिए एक सरकार चुनी। एक वोट या एक मतदान देश व प्रदेश के लिए क्या उपयोगी साबित होगी? मतदान का महत्व कितना है ? और क्यों हैं ? इस विषय पर अनेक पुस्तकें लिखे जा चुके हैं, लेकिन क्या देश व प्रदेश हित के लिए मतदान करना वास्तव में एक जरूरी है? ऐसे सामान्य प्रश्न में ही गम्भीर उत्तर छुपा हुआ है।

जिस तरह से फसलों के लिए पानी, पानी के लिए पेड़-पौधे-हरियाली, खेती लिए इंसान की जरूरत है और इंसान के लिए अनाज-पानी, आवास, शिक्षा, अस्पताल, सड़क, बिजली, रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों की आवश्यकता होती है। ऐसे में स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रत्येक वोट महत्वपूर्ण है। निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दलों व आम मतदाताओं की भूमिका, सक्रियता,संवेदनशीलता से भरे होते हैं। अलग-अलग वर्ग के मतदाताओं को कई बार भ्रम की स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस पर निर्वाचन आयोग लगातार सुधार व नियम-प्रक्रियाओं में संशोधन समय-समय पर करते हैं ताकि मतदाता आसानी से अपने मत या वोट के महत्व को बेहतर तरीके से समझ सके।

लोकतंत्र की सफलता तभी होगी जब लोग मतदान करेंगे। देश की प्रगति के लिए सबको मिलकर वोट देना चाहिए। मतदान सभी का संवैधानिक अधिकार है। इसका उपयोग सभी लोगों को स्वेच्छा के साथ करना चाहिए। हम खुशनसीबों में से हैं कि हमें सरकार चुनने का अधिकार मिला है। हमें इसकी सराहना और कदर करनी चाहिए। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती ही है कि कोई हवाई जहाज का मालिक हो या ठेला चलाने वाला आम नागरिक, सबको वोट देने का अधिकार है। सभी का मत बराबर है।

अतएव देश व प्रदेश के समुचित विकास, स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र के लिए हर मतदाताओं को मतदान करना आवश्यक है।

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