तुर्की के एक आर्कियोलॉजिकल साइट की खुदाई कर रहे शोधकर्ता उस वक्त हैरान रह गए, जब उन्हें जमीन के अंदर से 11 हजार साल पुराना खजाना मिल गया. साथ ही खौफनाक चीजें भी नजर आईं. जब इसकी जांच की गई तो इसको लेकर सनसनीखेज खुलासा हुआ है, जिसके बारे में जानकर एक्सपर्ट भी हैरान हैं. इस खुलासे के बाद यह कहा जा सकता है कि परंपराएं जो आज भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं, वे हजारों साल पहले से ही विकसित हुई थीं. जहां पर यह खोज हुई, उस जगह का नाम बोनकुक्लू तरला पुरातात्विक स्थल (Boncuklu Tarla archaeological site) है.

जानकारों ने बताया कि जमीन की खुदाई में यहां से इंसानी हड्डियां जैसी खौफनाक चीजें मिलीं, साथ ही साथ उनमें लिपटे हुए अलग-अलग धातुओं के गहने-जेवरात रुपी खजाने भी हाथ लगे. जब इन तमाम चीजों की कार्बन डेटिंग की गई, तो हजारों साल से चली आ रही कान-नाक छिदवाने की परंपरा के साक्ष्य मिल गए. अंकारा विश्वविद्यालय की टीम ने 100 से अधिक आभूषणों की जांच में यह खुलासा किया. अभी तक ऐसा माना जाता रहा है कि नाक-कान छिदवाने की परंपरा सौ-दो सौ साल पुरानी है.

आर्कियोलॉजिस्ट ने बताया कि ये सभी आभूषण सीधे उनके कानों और ठुड्डी के बगल में पाए गए, जिससे इस बात का पुख्ता सबूत मिला कि उन्हें कान और नाक में छेद करवाने के बाद पहना जाता था. खोज में पाए गए आभूषणों में से 85 बिल्कुल ठीक अवस्था में हैं, जो अधिकांशत: चूना पत्थर, ओब्सीडियन या नदी के कंकड़ से बने हैं. टीम ने कहा कि उनके अलग-अलग आकारों को देखने से पता चलता है कि उन्हें कान और निचले होंठ दोनों में पहनने के लिए बनाया गया था. इतना ही नहीं, इस जांच से यह भी पता चला है कि इन जेवरातों को न सिर्फ महिलाएं, बल्कि पुरुष भी पहनते थे.

तब बच्चों के नहीं छिदवाए जाते थे नाक

आज के दौर में बच्चों के भी नाक-कान छिदवा दिए जाते हैं, लेकिन तब ऐसा नहीं होता था. उस दौरान सिर्फ वयस्क लोग ही ऐसा करते थे. जांच कर रही टीम ने बताया कि शिशुओं को जहां दफ्न किया गया था, वहां पर हमें किसी भी प्रकार का कोई आभूषण नहीं मिला, जिससे साबित होता है कि बच्चों के शरीर को छिदवाने की परंपरा तब नहीं हुआ करती थी. शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि इससे पता चलता है कि नाक, कान और होंठों को छिदवाना न केवल सौंदर्यपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक महत्व भी है. यह किसी व्यक्ति के परिपक्वता तक पहुंचने का संकेत देता है.

इस खोज में शामिल डॉ. एम्मा बैसल ने कहा, ‘यह दर्शाता है कि परंपराएं जो आज भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं, वे हजारों साल पहले से ही विकसित हुई थीं, जब लोगों ने पहली बार 10,000 साल से भी अधिक समय पहले पश्चिमी एशिया में स्थायी गांवों में बसना शुरू किया था. उनके पास मोतियों, कंगन और पेंडेंट से जुड़ी बहुत ही जटिल अलंकरण प्रथाएं थीं, जिसमें एक बहुत ही विकसित प्रतीकात्मक दुनिया भी शामिल थी, जो मानव शरीर के माध्यम से व्यक्त की गई थी.’

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