नई दिल्ली / देश में समलैंगिकों का बड़ा तबका आपस के विवाह को कानूनी मान्यता हासिल करने के लिए लड़ाई लड़ रहा है. फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है. इस मामले में मंगलवार को यानी आज सुनवाई होनी है. लेकिन उससे पहले भारत में समलैंगिक विवाह (Gay Marriage) होना चाहिए या नहीं, इसको लेकर केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (SC) को कड़े शब्दों में अपना जवाब दर्ज कराया है. केंद्र सरकार की तरफ से साफ शब्दों में कहा गया कि इस संबंध में कानून बनाने का अधिकार केवल संसद के पास होता है न कि कोर्ट को. सरकार किसी भी कानून को बनाने से पहले उसके सभी आयामों और उससे पड़ने वाले प्रभावों को देखती है.
दरअसल कोर्ट ने केंद्र से समलैंगिकों की याचिकाओं को लेकर जवाब मांगा था. जिसके जवाब में केंद्र ने यह भी कहा कि विवाह हर धर्म में इससे जुड़ा एक पवित्र अनुष्ठान है. यह सभी मजहबों, समाज, समुदाय, लिंग के नागरिक हितों की रक्षा करता है. केंद्र ने आगे कहा कि कानून में बहुसंख्यकवादी दृष्टिकोण भी होना चाहिए. केंद्र ने अदालत को बताया कि समलैंगिक विवाह के लिए न्यायिक हस्तक्षेप से संतुलन बिगाड़ने का खतरा पैदा होगा.
समलैंगिक विवाह पर कोर्ट में क्या-क्या हुआ
भारत की शीर्ष अदालत ने 2018 में समलैंगिक संबंध पर प्रतिबंध को हटाकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. 6 दिसंबर को 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था समलैंगिकता कोई क्राइम नहीं है. कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि समलैंगिकों के भी वही मूल अधिकार होते हैं, जैसे कि किसी आम नागरिक को अपनी इच्छा के मुताबिक जीेने का अधिकार है.
तब कोर्ट ने इंडियन पैनल कोड की धारा 377 को खत्म कर दिया था. यह फैसला तब के CJI दीपक मिश्रा ने दिया था. उन्होेंने कहा था कि जो जैसा है उसे उसी रूप में कुबूल किया जाना चाहिए. समाज में समलैंगिकों के बारे सोच बदलने की जरूरत है.
अदालत में समलैंगिकों की क्या है याचिका
समलैंगिक विवाह को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट के अलावा कई और अदालतों में याचिकाएं डाली गई थीं. अदालतों में कम से कम 15 याचिकाएं लगाई गई थीं. सभी याचिकाओं में समलैंगिक जोड़ों और एक्टिविस्टों ने विभिन्न विवाह अधिनियमों को चुनौती दी थी और कहा था कि ये विवाह अधिनियम उन्हें आपस में विवाह करने से रोकते हैं. उनके अधिकार से वंचित करते हैं.
इन याचिकाओं में शीर्ष अदालत से विवाह अधिनियमों के प्रावधानों को व्यापक रूप से पढ़ने का अनुरोध किया गया था ताकि उनमें समलैंगिक विवाह को लेकर भी उचित जगह बनाई जा सके.
मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट पिछले साल 25 नवंबर और 14 दिसंबर को समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा था. जिसके बाद इस साल 6 जनवरी को कोर्ट ने इनसभी याचिकाओं को अपने पास इकट्ठा कर लिया था.
जिसके बाद 13 मार्च को मुख्य न्यायधीश डीआई चंद्रचूड़ सिंह के नेतृत्व वाली बेंच ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पांच जजों की संवैधानिक बेंच को भेज दिया था.
सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़ सिंह, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं.
भारत में कितने समलैंगिक हैं?
साल 2012 में भारत सरकार ने LGBTQ समुदाय की जनसंख्या 2.5 मिलियन बताई थी. दुनिया में पूरी आबादी का यह कम से कम 10 फीसदी है. लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत में समलैंगिकों की संख्या बढ़ी है. 2020 में एक सर्वेक्षण में 37 फीसदी लोगों ने कहा था कि वह इसके पक्ष में थे.