अमेरिका में सवा करोड़ की नौकरी को छोडकर मध्यप्रदेश देवास जिले के हाटपिपल्या के रहने वाले 28 वर्षीय प्रांशुक कांठेड़ जैन मुनि की दीक्षा ले ली है। प्रांशुक आचार्य उमेश मुनि महाराज के शिष्य जिनेंद्र मुनि से जैन संत बनने की दीक्षा ली। आज सुबह हाटपीपल्या मंडी प्रांगण में तीनों ने उमेश मुनि जी के शिष्य जिनेंद्र मुनि जी से जैन संत बनने के लिए दीक्षा ली। समारोह में हजारों लोग उपस्थित हुए। करीब 3 घंटे चली प्रक्रिया के दौरान दीक्षा समारोह में सूत्र वाचन के साथ प्रारंपरिक प्रक्रियाएं हुईं। उसके बाद दीक्षार्थियों को दीक्षा के वस्त्र धारण करवाए गए। उनका कहना है कि चिरकाल के सुख के लिए मैं जैन संत बनने जा रहा हूं।

हाटपिपल्या में 3 दिवसीय दीक्षा में प्रांशुक के अलावा मामा के बेटे प्रियांशु (MBA) निवासी थांदला और पवन कासवा निवासी रतलाम भी दीक्षा ली। देश के अलग-अलग कोने से करीब 53 जैन संत-सतिया आये। प्रांशुक इंदौर के SGSITS कॉलेज से BE करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए। डेढ़ साल पढ़ाई के बाद वहां प्रांशुक ने 3 साल तक डेटा साइंटिस्ट की नौकरी की। इस दौरान भी वह वहां गुरुभगवंतों की किताबें और इंटरनेट पर उनके प्रवचन और साहित्य को पढ़ते और अध्ययन करते रहे। प्रांशुक ने परिवार से दीक्षा लेने और जैन संत बनने की इच्छा जाहिर की। माता-पिता ने भी लिखित में अपनी अनुमति गुरुदेव जिनेंद्र मुनि जी को दी थी।

प्रांशुक के पिता राकेश कांठेड़ कारोबारी हैं। अब उनका पूरा परिवार इंदौर में रहता है। प्रांशुक का झुकाव बचपन से ही धार्मिक कार्यों की ओर रहा। 2007 में वह उमेश मुनि जी के संपर्क में आये। उनके विचारों से प्रभावित होकर उसे वैराग्य की और अग्रसर होने की प्रेरणा मिली। इसके बाद उन्होंने धार्मिक कार्यों के साथ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया। 2016 में एक बार फिर पढ़ाई के दौरान वैराग्य धारण करने के लिए प्रयत्न किया, लेकिन गुरुदेव ने और योग्य होने की बात कही। इसके बाद वह अमेरिका चले गए।

समारोह में तीनों मुमुक्षु भाइयों की महाभिनिष्क्रमण यात्रा निकाली गई। ये यात्रा कृषि उपज मंडी प्रांगण स्थित दीक्षा महोत्सव पांडाल पहुंची। जहां प्रवर्तक जिनेंद्र मुनि जी ने हजारों जनसमुदाय की उपस्थिति में तीनों मुमुक्षु आत्माओं को दीक्षा अंगीकार कराया।

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