India embassy in Afghanistan

भिलाई [न्यूज़ टी 20] काबुल: भारत ने अभी तक तालिबान की अंतरिम सरकार के साथ कोई आधिकारिक संबंध स्थापित नहीं किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन तालिबान के साथ राजनयिक संबंध बहाल करेगा।

भारत शुरू से कहता आया है कि वह किसी देश का नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट के प्रतिबंधों को मानता है। ऐसे में मोदी सरकार के सामने तालिबान के साथ संबंधों को लेकर दोहरी दुविधा है। भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद अपने दूतावास को फिर से खोल दिया है।

वर्तमान में 60 से 70 अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम काबुल दूतावास में तैनात है। इस टीम को भारतीय विदेश सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी के नेतृत्व में तैनात किया गया है। शुरुआत में जून महीने में भारत ने अपने दूतावास और महावाणिज्यिक दूतावासों की खोज खबर लेने के लिए एक तकनीकी टीम भेजी थी।

इस तैनाती को व्यावहारिक तौर पर तालिबान के साथ भारत का आधिकारिक राजनयिक संबंध बताया जा रहा है। लेकिन, आधिकारिक तौर पर भारत ने अभी तक तालिबान की अंतरिम सरकार के साथ कोई संबंध स्थापित नहीं किया है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत संयुक्त राष्ट्र में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन तालिबान के साथ राजनयिक संबंध बहाल करेगा। भारत शुरू से कहता आया है कि वह किसी देश का नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट के प्रतिबंधों को मानता है। ऐसे में मोदी सरकार के सामने तालिबान के साथ संबंधों को लेकर दोहरी दुविधा है।

भारतीय दूतावास खुलते ही तालिबान विरोधी धड़े की बेचैनी बढ़ी :

भारत के अफगानिस्तान में अपना दूतावास खोलते ही नई दिल्ली में तालिबान विरोधी अफगान धड़े की बेचैनी बढ़ गई है। यह धड़ा 2001 में अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद भारत की हर सरकार का करीबी बना रहा है।

भारत के आधिकारिक राजनयिक संबंध भी इसी धड़े के साथ है। तालिबान शुरू से ही लोकतंत्र और मानवाधिकारों का दमन करने के लिए कुख्यात रहा है। वर्तमान में भी उसने सत्ता में आने से पहले किए गए किसी भी वादे को पूरा नहीं किया है।

महिलाओं को अभी तक नौकरी की आजादी नहीं मिली और ना ही लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल और कॉलेज खोले गए। जब से तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता संभाली है, तभी से यह मुल्क सूखा, भूकंप, भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी जैसे प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं को झेल रहा है।

भारत ने दूतावास खोल एक तीर से साधे दो निशाने :

भारत ने तालिबान के राज में अपना दूतावास खोलकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। इससे तालिबान के साथ भारत के संबंध थोड़े मजबूत हुए हैं। वहीं, तालिबान शासन को मान्यता न देने के अंतरराष्ट्रीय सहमति को बनाए रखा है।

इस तरह के विरोधाभासी संबंधों के बावजूद शायद ही इस बात से इनकार किया जा सकता है कि भारत समेत दुनियाभर के देश अफगानिस्तान में तालिबान के साथ ‘अनौपचारिक रूप से’ रहने के लिए तैयार हैं। दुनियाभर के देशों ने पहले ही साफ किया है कि तालिबान सरकार को मान्यता पाने के लिए शर्तों को पूरा करना होगा।

इसमें सार्वभौमिक सरकार का गठन भी शामिल है, जिसमें सभी पक्षों की भागीदारी हो। वहीं, महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना और अफगानिस्तान की जमीन से आतंकवाद का सफाया महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। यह अलग बात है कि तालिबान ने इनमें से किसी भी शर्त को अभी तक पूरा नहीं किया है।

भारत ने क्यों खोला काबुल का दूतावास :

काबुल में चीन, रूस, ईरान, यूरोपीय संघ और अधिकांश मध्य एशियाई गणराज्यों ने पहले से ही अपने दूतावासों को खोल दिया था। ऐसे में भारत के लिए भी अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति को बनाना महत्वपूर्ण हो गया था। तालिबान शासन को इस समय पैसे और समर्थन की बहुत जरूरत है।

ऐसे में चीन और पाकिस्तान एक साथ मिलकर तालिबान पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे थे। इससे मध्य एशियाई देशों में भारत की पकड़ कमजोर होने का अंदेशा था। इतना ही नहीं, अगर पाकिस्तान और चीन का प्रभाव तालिबान पर बढ़ जाता तो अफगानिस्तान में भारत की अरबों डॉलर की अधर में लटकीं परियोजनाओं को भी खतरा हो सकता था।

यही कारण है कि भारत ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए काबुल में अपने दूतावास को कम कर्मचारियों के साथ शुरू कर दिया। इससे भारत को अफगानिस्तान के हालात और काबुल में जारी रस्साकस्सी की जंग का लाइव टेलिकॉस्ट देखने का मौका मिल गया है।

क्या तालिबान शासन को मान्यता देगी मोदी सरकार :

काबुल में भारतीय दूतावास के बंद होने के समय अफगान नागरिकों को जारी किए गए सभी वीजा को निरस्त कर दिया गया था। सिर्फ ई-वीजा के जरिए चंद लोगों को ही भारत आने की अनुमति दी गई।

भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले सैकड़ों अफगान छात्र, जो कोविड -19 महामारी के कारण अस्थायी रूप से अफगानिस्तान लौट आए थे, वो अपने देश में फंसे हुए हैं। वे अपनी अपनी डिग्री पाने और पढ़ाई पूरा करने में असमर्थ हैं, हालांकि भारत में उन लोगों की मदद की गई है।

भारत में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए वीजा की सुविधा के लिए तालिबान सरकार के माध्यम से सार्वजनिक प्रदर्शन और आधिकारिक अनुरोध का अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में भारत अपने दूतावास के जरिए वीजा सुविधा को शुरू कर सकता है। हालांकि, तालिबान के साथ आधिकारिक तौर पर राजनयिक संबंध स्थापित होने की उम्मीद बिलकुल कम है।

तालिबान शासन में नागरिकों की मदद कर रहा भारत :

अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पिछले 12 महीनों में भारत ने न केवल 36000 मीट्रिक टन गेहूं पाकिस्तान के माध्यम से अफगानिस्तान भेजा, बल्कि देश में दवाएं और कोविड -19 टीके भी भेजे।

भारत ने तालिबान के उस अनुरोध को स्वीकार करने का भी संकेत दिया है, जिसमें अफगानिस्तान में अधूरी पड़ी परियोजनाओं को पूरा करने की बात की गई थी। काबुल से दिल्ली के लिए एरियाना और काम एयर की उड़ानें फिर से शुरू हो गई हैं, हालांकि वीजा सेवाओं के अभाव में कुछ यात्री ही यात्रा कर पा रहे हैं।

लोगों से लोगों के बीच काफी लोकप्रिय संबंध अभी केवल कागजों पर ही मौजूद हैं क्योंकि उनके पास वीजा की कमी है। बड़ी संख्या में लोग भारत की वीजा सर्विस के शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। ये लोग पढ़ाई, व्यापार और इलाज के लिए भारत आना चाहते हैं।

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