राजनीती। News T20: 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना और राज्य में अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। अजीत जोगी का जलवा ऐसा था कि भाजपा के एक दर्जन से अधिक विधायक कांग्रेस में शामिल हो चुके थे।
ऐसे में 2003 में छत्तीसगढ़ में जब पहली बार विधानसभा चुनाव होने थे, तब भारतीय जनता पार्टी की कमान संभालने के लिए नेता की तलाश शुरू हुई।
आपको बता दें कि, जशपुर इलाक़े के नेता दिलीप सिंह जूदेव और रायपुर के सांसद रमेश बैस को यह दायित्व सौंपने की कोशिश हुई, लेकिन दोनों इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंततः रमन सिंह को केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफ़ा देकर छत्तीसगढ़ लौटना पड़ा।
रमन सिंह के नेतृत्व में लड़े गए चुनाव में सत्ताधारी दल कांग्रेस 62 सीटों से 37 सीटों पर आ गई थीl और भाजपा ने 50 सीट हासिल कर, सरकार बनाने में सफलता पाई। दिसंबर 2003 में रमन सिंह मुख्यमंत्री बने और अगले 15 सालों तक, 17 दिसंबर 2018 तक इस पद पर बने रहे।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री अजीत जोगी को तो एक पूरा कार्यकाल भी नहीं मिला था। लेकिन अजीत जोगी ने विकास की जो नींव रखी, उसे रमन सिंह ने और विस्तारित कियाl बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई के क्षेत्र में राज्य ने एक लंबी छलांग लगाईl
तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते डॉक्टर रमन सिंह
सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस में ग़रीबों को राशन देने की उनकी योजना की तारीफ़ दुनिया भर में हुईl देश में इसे एक मॉडल की तरह देखा गयाl
हालांकि माओवाद का विस्तार, सलवा जुड़ूम, बस्तर में आदिवासियों की इच्छा के विरुद्ध उद्योग, खदानों का आवंटन, ग़रीबी के आंकड़ों में कोई कमी नहीं, भ्रष्टाचार, निरंकुश नौकरशाही और ख़ास तौर पर अंतिम कार्यकाल में ऐसे ही कई मोर्चे पर उनकी आलोचना भी हुईl
दिसंबर 2018 में जब कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत हुई और भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष में बैठना पड़ा तो मान लिया गया था कि अगले 10-15 सालों तक भाजपा की वापसी मुश्किल होगी।
रमन सिंह के ख़राब स्वास्थ्य के बीच मान लिया गया कि अब उनके पास किसी राज्य का राज्यपाल बनने के अलावा कोई चारा नहीं हैl हालांकि महीने भर के भीतर उन्हें भाजपा ने केंद्रीय उपाध्यक्ष ज़रूर बनाया। लेकिन राज्य में होने वाली राजनीतिक गतिविधियों से वे दूर होते चले गए।
हमेशा सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहने और ज़मीनी कार्यकर्ताओं से कम संपर्क के कारण उनकी पूछ-परख कम होती चली गई। राजनीतिक गलियारे में माना जाता है कि केंद्रीय संगठन ने भी जिन नेताओं को यहां भेजा, उन्होंने भी रमन सिंह और उनके समर्थकों को दबाव पर रखा और नये चेहरों को ज़्यादा महत्व दिया।
राजनीतिक पारी का ढलान
जानकारी के मुताबिक हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध मानते हैं कि रमन सिंह ख़ुद भी इन चार सालों में लगभग निष्क्रिय बने रहे। हार के बाद उनके पास कोई विकल्प भी नहीं था। वो भी मान चुके थे कि अब उनकी राजनीतिक पारी ढलान पर है।
दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं, ”विधानसभा के लिए पहले दौर में जब टिकट बँटी तो माना गया कि सारा फ़ैसला केंद्रीय नेतृत्व का है, स्थानीय नेताओं की कहीं कोई भूमिका नहीं रही है। लेकिन दूसरे दौर में शेष बचे टिकट बाँटे गए तो नज़र आया कि सारे पुराने चेहरे फिर से मैदान में उतर दिए गए थे और यह सब रमन सिंह की सलाह पर ही किया गया।”
राजनीतिक गलियारे में कहा गया कि पुराने नेताओं को टिकट ही इसलिए दिए गए। ताकि वो चुनाव में कोई असंतोष न पैदा कर सकें और फिर से मिले मौक़े को जी-जान से लड़ कर कम से कम अपनी उपयोगिता तो सिद्ध कर सकें।
चुनाव परिणाम जब आया और भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में आई तो तुरंत बाद रमन सिंह ने अधिकारियों को चेतावनी जारी की कि वे पुरानी तारीख़ों में कोई चेक न काटें और ना ही बैक डेट में किसी फ़ाइल पर हस्ताक्षर करें।
इसी के साथ रमन सिंह अपने पुराने तेवर में लौट चुके थे।
दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं, ”रमन सिंह को पता था कि चौथी बार उम्मीद पालने का कोई अर्थ नहीं है। फिर भी उनकी किसी कोशिश पर भाजपा हाईकमान मुहर इसलिए नहीं लगा सकता था क्योंकि फिर ऐसी ही स्थिति मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी सामने आती। वहां भी शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे पर विचार करने की ज़रूरत आती। रमन सिंह की कोई कोशिश सफल होती, इसमें संशय है।”
हालांकि रविवार को विधायक दल की बैठक में सबसे अंत में रमन सिंह के पहुंचने से पहले अफ़वाह उड़ी कि वो अंतिम समय तक मुख्यमंत्री बनने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसके लिए वे पुराने सहयोगियों के साथ दूसरी जगह बैठक में हैं।
अब क्या करेंगे रमन सिंह
भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि आदिवासी मुख्यमंत्री बना कर ओडिशा और झारखंड के चुनाव में भी पार्टी को संदेश देना था।
इसके अलावा आदिवासी राष्ट्रपति के बाद भी आदिवासी और दलित विरोधी होने के आरोपों का भी जवाब देना था।
कहा ”देर सबेर जाति जनगणना का मुद्दा भी हमारे सामने होगा। ऐसे में एक ओबीसी और आदिवासी बहुल राज्य में सवर्ण चेहरा हमारे लिए कोई बेहतर विकल्प नहीं था। हमने बरसों की आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग की जन अपेक्षा को पूरा किया है।”
71 साल के रमन सिंह के हिस्से फ़िलहाल तो विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी संभालने की पेशकश है, लेकिन लोकसभा चुनाव और शायद उसके बाद भी, उनको लेकर बातों का दौर जारी रहेगा।
बीजेपी की छत्तीसगढ़ में जीत के बाद cm बनाने का फैसला
छत्तीसगढ़ में तीन दिसंबर को विधानसभा चुनाव के परिणाम को देखने के लिए भारतीय जनता पार्टी के रायपुर मुख्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में विशाल एलईडी स्क्रीन लगाई गई थी।
दिन चढ़ने के साथ-साथ जैसे-जैसे चुनाव के परिणाम आने लगे, स्क्रीन के सामने बैठे युवा कार्यकर्ता उत्साह से भरते चले गए।
भारतीय जनता पार्टी की हर उम्मीदवार की जीत के साथ उत्साहित कार्यकर्ता नारे लगाते हुए, तालियां बजाने लग जाते थे।
मिली जानकारी के अनुसार भाजपा के एक नेता बताते हैं कि जब राजनांदगांव से पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के 45,084 हज़ार वोटों से जीत की ख़बर स्क्रिन पर आई तो मौके पर कोई भी ताली बजाने के लिए अपना हाथ आगे नही बढ़ाया था।
अब यहां पर सवाल यह उठता है कि क्या लगातार 15 सालों तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह का रूतबा धीरे – धीरे खत्म होते जा रहा है?
विधानसभा की 90 में से 54 सीटों पर भाजपा की जीत के बाद माना जा रहा था कि रमन सिंह फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। हालांकि भाजपा के प्रभारी ओम माथुर कई बार कह चुके थे कि इस बार मुख्यमंत्री के लिए चौंकाने वाला नाम सामने आएगा।
लेकिन चुनाव जीतने के बाद रमन सिंह के हावभाव और आत्मविश्वास को देख कर राजनीतिक गलियारे में मान लिया गया था कि रमन सिंह को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
अब जबकि मुख्यमंत्री पद के लिए विष्णुदेव साय के नाम की घोषणा हो चुकी है, तब सवाल खड़ा हो रहे हैं कि आख़िर रमन सिंह को मुख्यमंत्री पद कैसे नहीं दिया गया?
आखिर कैसे चूक गए रमन सिंह cm पद के लिए?
रविवार को विधायक दल की बैठक में विष्णुदेव साय को विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव रमन सिंह को ही रखना पड़ा।
रमन सिंह को भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष की ज़िम्मेवारी सौंपी है।
रमन सिंह ने कहा, ”सबकी भूमिका संगठन में तय रहती है। और संगठन सबको अलग-अलग दायित्व देता है। मुझे जो भी दायित्व दिया जाएगा, उसे मैं निभाउंगा।”
रविवार को विधायक दल की बैठक में विष्णुदेव साय को विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव रमन सिंह को ही रखना पड़ा.
रमन सिंह को भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष की ज़िम्मेवारी सौंपी है.