पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) देश, सांस्कृतिक और जैविक विविधता के लिए प्रसिद्ध है. पुराने वक्त में यहां कई जनजातियां रहा करती थीं जिनके अलग-अलग तौर तरीके हुआ करते थे. ऐसी ही एक जनजाति थी फोर (Fore tribe eat human brain). ये देश के पूर्वी इलाकों में रहने वाले लोग थे जो एकांत में रहना पसंद करते थे. पर इनसे जुड़ी एक दिल दहला देने वाली बात थी. इस जनजाति में नरमांस-भक्षण (Cannibalism tribe) का रिवाज था. इंसान के शरीर के मांस से लेकर उसके दिमाग (tribe eat human brain) तक को यहां खाया जाता था. इस वजह से इन लोगों में बीमारियां फैलीं मगर आगे चलकर फोर लोग ‘महामानव’ बन गए! चलिए आपको बताते हैं कैसे!

आपने काल्पनिक फिल्मों और कहानियों में महामानवों को देखा सुना होगा, जो उड़ सकते हैं, या उनकी आंखों से आग निकलती है. पर हम जिस जनजाति की बात कर रहे हैं, वो इनमें से किसी प्रकार के महामानव नहीं थे, बल्कि हम उन्हें महामानव इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इंसानी मांस खाने के बावजूद, उनके अंदर गंभीर दिमागी बीमारियों को लेकर प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई जिसके चलते वो उन बीमारियों से ग्रसित नहीं हुए, जो दूसरों की जान ले सकती थीं.
पुरुष खाते थे इंसानी मां, औरतें-बच्चे खाते थे दिमाग
वॉशिंग्टन पोस्ट की साल 2015 की रिपोर्ट के अनुसार जब भी फोर जनजाति में किसी की मौत हो जाती थी, तो वो अपनों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी लाश को खाया करते थे. बच्चे और महिलाएं दिमाग खाती थीं जबकि पुरुष शरीर के बाकी हिस्सों का मांस खाया करते थे. इंसान के दिमाग में खतरनाक अणु (Molecule) होते हैं जो दिमाग खाने की वजह से महिलाओं में प्रवेश कर जाते थे. इसकी वजह से उन्हें कुरू नाम की बीमारी हो रही थी.
शुरुआती वक्त में इस बीमारी ने करीब 2 फीसदी लोगों की जान ले ली थी. 1950 के दशक में इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया और कुरु महामारी कम होने लगी, लेकिन इसके परिणामस्वरूप इसने फोर पर एक विचित्र और अपरिवर्तनीय छाप छोड़ी, जिसका प्रभाव पापुआ न्यू गिनी से कहीं आगे तक है. मस्तिष्क खाने के वर्षों के बाद, कुछ फोर ने इस खतरनाक अणु के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली. यही अणु कुरु सहित कई घातक मस्तिष्क रोगों का कारण बनता है , मैड काऊ रोग और डिमेंशिया का भी कारण बनता है.
इस प्रोटीन की वजह से होती है बीमारी
यह जीन लोगों को प्रियन (Prions), एक अजीब और कभी-कभी घातक प्रकार के प्रोटीन से बचाने में काम करता है, हालांकि प्रियन सभी स्तनधारियों में प्राकृतिक रूप से निर्मित होते हैं, लेकिन उन्हें इस तरह से विकृत किया जा सकता है कि वे उस शरीर पर हमला करते हैं जिसने उन्हें बनाया है, एक वायरस की तरह काम करते हैं और ऊतकों पर हमला करते हैं. विकृत प्रियन अपने चारों ओर मौजूद दूसरे प्रियन को संक्रमित करने, इसकी संरचना और इसके दुर्भावनापूर्ण तरीकों की नकल करने के लिए उन्हें नया आकार देने में भी सक्षम हैं.
फोर लोगों के जीन में आया परिवर्तन
जब शोधकर्ताओं ने जीनोम के उस हिस्से को देखा जो प्रियन-निर्माण प्रोटीन को एन्कोड करता है, तो उन्हें कुछ अजीबोगरीब मिला. जहां इंसानों और दुनिया के हर दूसरे वर्टिब्रेट जानवर में ग्लाइसिन नामक एक अमीनो एसिड होता है, वहीं रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसत कर चुके फोर लोगों में एक अलग अमीनो एसिड, वेलिन मिला. उनके जीन में हुए इस बदलाव ने प्रियन-उत्पादक प्रोटीन को अणु के रोग पैदा करने वाले रूप का निर्माण करने से रोक दिया, जिससे फोर लोग कुरु से बच गए. वैज्ञानिकों का मानना है कि फोर में पाया गया जीन विशेष है क्योंकि ऐसा लगता है कि यह उत्परिवर्ती प्रियन-उत्पादक प्रोटीन को किसी भी प्रकार के प्रियन का उत्पादन करने में असमर्थ बनाता है.
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