मंदिर शब्‍द सुनते ही घंटों और शंख की ध्‍वन‍ि गूंजने लगती है. आरती की लौ नजर आने लगती है. लेकिन अगर आप बद्रीनाथ धाम गए होंगे, तो गौर किया होगा इस मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता. यहां आरती तो होती है, लेकिन शंखनाद नहीं. ऑनलाइन प्‍लेटफार्म कोरा पर कई लोगों ने इसकी वजह पूछी है. तो बता दें कि बद्रीनाथ धाम में शंखनाद न होने के पीछे एक बड़ा रहस्‍य है. यह वैज्ञानिक, पौराणिक और धार्मिक हर तरह से जुड़ा हुआ है.

साइंस के मुताबिक, ठंड के दौरान यहां चारों ओर बर्फ पड़ने लगती है. ऐसे में अगर यहां शंख बजता है तो उसकी ध्वनि पहाड़ों से टकराकर प्रतिध्वनि पैदा करती है. इससे बर्फ में दरार पड़ने या फिर बर्फीला तूफान आने की आशंका बन सकती है. लैंडस्लाइड भी हो सकता है. हो सकता है कि यही वजह हो, जिससे आद‍िकाल से बद्रीनाथ धाम में शंख न बजाया जाता हो. क्‍योंकि शंख की ध्‍वन‍ि तमाम वाद्य यंत्रों में काफी तेज मानी जाती है. इसकी प्रतिध्वनि कंपन पैदा करती है. हालांकि, इसकी पौराण‍िक वजह भी बताई जाती है.

शास्‍त्रों में क्‍या लिखा

शास्‍त्रों के मुताबिक, हिमालय क्षेत्र में असुरों का आतंक था. ऋषि मुनि असुरों से भयभीत हो अपने आश्रमों में पूजा अर्चना भी नहीं कर पाते थे. एक बार मां लक्ष्‍मी यहां बने तुलसी भवन में ध्यान लगा रही थीं. उसी वक्‍त भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस का वध किया. युद्ध खत्‍म होने के बाद आमतौर पर शंखनाद किया जाता है, लेकिन चूंकि भगवान विष्‍णु मां लक्ष्‍मी के ध्‍यान में विघ्‍न नहीं डालना चाहते थे, इसल‍िए शंख नहीं बजाया. पौराण‍िक मान्‍यताओं के मुताबिक, तभी से बद्रीनाथ धाम में शंखनाद नहीं किया जाता.

एक मान्‍यता यह भी

एक मान्‍यता यह भी है कि यहां साढ़ेशवर जी का मंदिर था. जहां ब्राह्मण पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते थे. लेकिन राक्षस उन्‍हें पूजा नहीं करने देते थे. मारते-पीटते थे. यह देखकर साढ़ेशवर महाराज ने अपने भाई अगस्त्य ऋषि से मदद मांगी. अगस्त ऋषि भी जब मंद‍िर में पूजा करने गए तो राक्षसों ने उनके साथ बदमाशी की. तब अगस्त्य ऋषि ने मां भगवती को याद किया. कहा जाता है कि उनकी पुकार सुनकर मां कुष्मांडा प्रकट हुईं और उन्‍होंने त्रिशूल और कटार से वहां मौजूद समस्त राक्षसों का वध कर दिया. लेकिन आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस वहां से भाग निकले. आतापी मंदाकिनी नदी में छुप गया और वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख में छुप गया. कहा जाता है कि तभी से बद्रीनाथ धाम में शंख बजाना वर्जित हो गया.

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