पेरू को रेगिस्तान में बनी नाज्का रेखाएं वहां एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं. ये रहस्यमयी रेखाएं अपने साथ कई राज, कहानियां और किवदंतियां तक अपने अंदर समेटे हैं. इनमें जानवरों सहित कई तरह की आकृतियां शामिल हैं. बहुत ही बड़े दायरे में फैली ये रेखाएं और आकृतियां देख कर हैरानी होती है कि बिना ऊंचाई से देखे आखिर इन्हें बनाया भी कैसे जा सकता है.

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आसमान से जमीन पर कुछ रेखाएं हैरान करती हैं. खास तरह की आकृति के रूप में ये रेखाएं खास तरह के पैटर्न देख हैरानी होती है आखिर ये बनाई कैसे गई होंगे. ये नाज्का रेखाएं दक्षिणी पेरू में नाज्का रेगिस्तान की मिट्टी में बनी भू-आकृति का एक समूह है. नाज्का जियोग्लिफ या रेखाचित्र या रेखाएं 450 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई हैं. आकृतियां 1.9 किलोमीटर तक की हैं, रेखाएं 10 किलोमीटर तक की हैं. ये रेखाएं, ज्यामितीय आकृतियां, जानवर और आकृतियां दर्शाती हैं जिन्हें अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका हैं.

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नाज्का रेखाओं को इन्हें 500 ईसा पूर्व और 500 ईस्वी के बीच लोगों द्वारा रेगिस्तान के तल में गड्ढे या उथले चीरे बनाकर, कंकड़ हटाकर और अलग-अलग रंग की गंदगी को उजागर करके बनाया गया था. माना जाता है कि इनका संबंध पैराकास और नाज्का लोगों से है, जो इंका काल से पहले पेरू की खोई हुई संस्कृतियां थीं.

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कई लोग तो उन्हें नक्षत्र मानते हैं. इन्हें क्यों बनाया गया था यह तो साफ नहीं है, लेकिन चाहे देवताओं के लिए बनाए गए हों या किसी और कारण से, यह स्पष्ट है कि उन्हें आकाश से देखा जाना चाहिए था. कई लोग तो उन्हें नक्षत्र मानते हैं.

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वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में परेशानी हुई है कि ऊपर से किसी के निर्देशन के बिना उन्हें कैसे डिज़ाइन और बनाया जा सकता था. हम इन अद्भुत आकृतियों को देखकर केवल हैरान हो सकते हैं कि उन्हें नास्का के लोगों ने कैसे और क्यों बनाया गया था.

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नाज्का में अब तक 1,500 से ज्यादा जियोग्लिफ खोजे जा चुके हैं. दिल्चस्प बात ये है कि नए चित्र दिखाई देते रहते हैं. अक्टूबर 2020 में एक ढलान पर एक बिल्ली का चित्र खोजा गया था. रेखाओं के अर्थ के बारे में एक और हालिया परिकल्पना यह मानती है कि आकृतियां बारिश के लिए अनुरोध को दर्शाती हैं.

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इन रेखाओं को जियोग्लिफ के नाम से जाना जाता है, जो ज़मीन पर चट्टानों और मिट्टी को हटाकर बनाई गई रेखाचित्र, जिससे एक तस्वीर बनती है. रेगिस्तान को ढकने वाली चट्टानें ऑक्सीकरण और अपक्षय के कारण गहरे जंग लगे रंग की हो गई हैं, और जब ऊपर की 12-15 इंच की चट्टान हटाई जाती है, तो हल्के और अलग ही रंग की रेत सामने आती है.

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हैरानी की एक बात ये भी है कि जब ये रेखाएं या डिजाइन 500 से 2000 साल पहले बनाई गईं थी तो इतने साल तक ये कायम कैसे रह सकीं? वैज्ञानिकों का कहना है, क्योंकि यहां बहुत कम वर्षा, हवा और कटाव होता है, इसलिए उजागर हुए डिजाइन इतने लंबे वक्त तक काफी हद तक बरकरार रहे सकी हैं.

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