
300 साल पुरानी मान्यता
छतरपुर। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के लवकुश नगर में एक अनोखी परंपरा अब भी कायम है। यहां बकरी पालना पूरी तरह वर्जित है। मान्यता है कि लगभग 300 साल पहले देवी के श्राप के कारण यहां बकरी पालने वाले परिवारों का वंश नाश हो जाता है।
चरवाहे के अहंकार की कहानी
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय एक पाल समाज का चरवाहा अपनी बकरियां चरा रहा था। उसे जंगल की पहाड़ी पर एक छोटा कुंड दिखा, जिसे लोग पानी से भर नहीं पा रहे थे। चरवाहे ने दावा किया कि वह इसे दूध से भर देगा।

उसने अपनी बकरियों का दूध कुंड में डाला, फिर रिश्तेदारों की बकरियां भी लेकर आया, लेकिन कुंड नहीं भरा। यह चमत्कारिक घटना पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गई।
राजा हिंदूपत और मंदिर निर्माण
यह खबर तत्कालीन पन्ना महाराज हिंदूपत तक पहुंची। उन्होंने स्वयं कुंड का दर्शन किया और लोगों की आस्था को देखते हुए मां बंबरबेनी मंदिर का निर्माण कराया। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर 1758 से 1776 ईस्वी के बीच बनवाया गया।
देवी का श्राप और पाल समाज का विस्थापन
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मां ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि इस क्षेत्र में कोई भी पाल समाज का व्यक्ति स्थायी रूप से नहीं रहेगा। तभी से यहां पाल समाज और बकरी पालकों का स्थायी निवास वर्जित माना जाता है।
आज भी कायम है मान्यता
स्थानीय लोग मानते हैं कि यदि कोई पाल समाज का व्यक्ति या बकरी पालक यहां स्थायी रूप से बसता है तो उसके परिवार पर संकट आता है और उसका वंश नाश हो जाता है। इस वजह से आज भी इस गांव में पाल समाज के लोग नहीं रहते।
