भिलाई [न्यूज़ टी 20] निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यदि कोई राजनीतिक दल या उसके सदस्य घृणापूर्ण भाषण देते हैं तो आयोग उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। उसके पास किसी राजनीतिक दल की मान्यता वापस लेने, निरस्त करने या उसके सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का कानूनी अधिकार नहीं है।

नेताओं के नफरती भाषणों पर अंकुश लगाने के उपायों की मांग करने वाली एक जनहित याचिका के जवाब में आयोग ने यह हलफनामा दायर किया है। दरअसल, निर्वाचन आयोग ने इसमें कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के मामले में राष्ट्रीय विधि आयोग को यह सवाल भेजा था कि क्या यदि कोई पार्टी या उसके सदस्य घृणा भाषण देते हैं।

तो चुनाव आयोग को राजनीतिक दल की मान्यता रद्द करने, उसे या उसके सदस्यों को अयोग्य घोषित करने वाले की शक्ति प्रदान की जानी चाहिए। लेकिन विधि आयोग ने इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट में न तो अदालत के इस सवाल का जवाब दिया कि क्या चुनाव आयोग को किसी दल को या घृणा भाषण देने पर उसके सदस्यों को अयोग्य घोषित करने की शक्ति दी जानी चाहिए।

उसने स्पष्ट रूप से अभद्र भाषणों के खतरे को रोकने के लिए चुनाव आयोग को मजबूत करने के वास्ते संसद को कोई सिफारिश भी नहीं की। हालांकि विधि आयोग ने सुझाव दिया कि आईपीसी और सीआरपीसी में कुछ संशोधन किए जाएं।

विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में आईपीसी की धारा-153 सी और 505 ए को शामिल करते हुए आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2017 की सिफारिश की थी। यह भी कहा गया था कि आचार संहिता में भी संशोधन किया जाना चाहिए, लेकिन आयोग को मजबूत करने के संबंध में विधि आयोग ने कोई सिफारिश नहीं की थी।

चुनाव सुधार लंबित –

खास बात यह है कि चुनाव आयोग ने चुनाव सुधारों के लिए भेजे गए प्रस्तावों में आयोग को राजनीतिक दलों के लिए दंडात्मक शक्तियां देने की मांग की है। ये प्रस्ताव सरकार के पास 12 वर्ष से लंबित पड़ा है। आयोग ने चुनाव सुधार का पहला प्रस्ताव सरकार को 2004 में भेजा था।

घृणा भाषण परिभाषित नहीं –

आयोग ने कहा कि घृणा भाषण को मौजूदा कानूनों के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। लेकिन आईपीसी के कुछ प्रावधान हैं। जैसे धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना),

153बी (राष्ट्रीय एकता के लिए पूर्वाग्रही दावे), 295 ए (दुर्भावनापूर्ण कृत्य, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्दों कहना),

505 (शरारती बयान)। वहीं जन प्रतिनिधित्व कानून- धारा 8 (कुछ अपराधों के लिए दोषसिद्धि पर अयोग्यता), 123(3ए) (भ्रष्ट आचरण), 125 (चुनाव के संबंध में वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना)।

दंड प्रक्रिया संहिता – धारा 95 (कुछ प्रकाशनों को ज़ब्त घोषित करने और तलाशी वारंट की शक्ति), 107 (शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा), 144 (उपद्रव या संभावित खतरे के मामलों में प्रतिषेध आदेश जारी करने की शक्ति)।

आचार संहिता से रोक –

आयोग ने चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता में नफरती भाषणों को नियंत्रित करने के प्रावधान किए हैं। इसके लिए आदर्श आचार संहिता में संशोधन किया गया है। कोई भी उम्मीदवार या उसका एजेंट किसी भी भाषण में लिप्त पाया जाता है।
जो धर्म, जाति, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा की भावना बढ़ावा देता है, या बढ़ावा देने का प्रयास करता है, तो चुनाव आयोग इस पर सख्ती से कार्रवाई करता है।
संबंधित उम्मीदवार या व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी करता है। उसे स्पष्टीकरण के लिए बुलाया भी जाता है। आयोग उम्मीदवार को एक तय अवधि के लिए प्रचार करने से रोकने के आदेश भी देता है।
चुनाव याचिका दायर कर सकते हैं –

चुनाव आयोग ने कहा कि आदर्श आचार संहिता ने आईपीसी और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में कुछ प्रथाओं को भ्रष्ट व्यवहारों और चुनावी अपराधों के रूप में सूचीबद्ध किया है। किसी भी उम्मीदवार या उसके एजेंट के खिलाफ किसी भी भ्रष्ट आचरण के लिए कानून की धारा-100 के तहत एक चुनाव याचिका दायर की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि किसी उम्मीदवार या उसके एजेंट द्वारा वोट देने या मतदान से परहेज करने की कोई अपील, धर्म, जाति, वर्ग या समुदाय के आधार पर दूसरे की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित करती है तो आरपी अधिनियम की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण होगा।

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