भिलाई [न्यूज़ टी 20] अफ़ग़ानिस्तान के हालात और उस इलाक़े में तालिबान की मौजूदगी- 1990 के दशक के आख़िरी वर्षों से ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चर्चा का अहम मुद्दा बनी हुई है. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने उस वक़्त सिर उठाया था जब वहां से सोवियत सेनाएं वापस चली गई थीं.
वर्ष 1996 में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के ज़्यादातर हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था. इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान का अंदरूनी संघर्ष तेज़ी से बढ़ गया था. लेकिन जबसे अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा जमाया तभी से वहां के लोगों के अधिकारों की बातें सामने आती रही हैं।
इसी बीच हाल ही में तालिबानी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को धमकी दे दी। एक खास मुद्दे पर तालिबानी अधिकारियों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि सुरक्षा परिषद में निर्णय तालिबान के हक में नहीं लिया गया तो अच्छा नहीं होगा और यह किसी के हित में नहीं माना जाएगा।
यात्रा प्रतिबंध छूट को बढ़ाने का मामला
दरअसल, न्यूज एजेंसी एएनआई ने स्रोतों के हवाले से बताया कि तालिबानी सरकार ने यात्रा प्रतिबंध में छूट के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों के बीच असहमति के मद्देनजर संस्था को चेताया है।
तालिबान की तरफ से कहा गया कि यदि यात्रा प्रतिबंध छूट को बढ़ाने से इनकार कर दिया गया तो यह निर्णय उन्हें उकसाएगा। हालांकि इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
तालिबान पर प्रतिबंधों को रद्द करने की मांग
रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बल्खी ने बयान दिया कि दोहा समझौते के तहत तालिबान के खिलाफ सभी प्रतिबंधों को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
इसके अलावा तालिबान अधिकारियों ने चेतावनी दी कि यदि यात्रा प्रतिबंध छूट का विस्तार करने से इनकार कर दिया गया तो यह निर्णय भड़काएगा। इसके बाद फिर कठोर रुख अपनाया जा सकता है।
यात्रा प्रतिबंध का क्या है पूरा मामला
असल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के तीन स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस तालिबान अधिकारियों पर यात्रा प्रतिबंध लगाना चाहते हैं,
जबकि इस परिषद के अन्य दो स्थायी सदस्य रूस और चीन कुछ तालिबान अधिकारियों को छूट देने के पक्ष में हैं। इसी को लेकर परिषद में मतदान होगा कि क्या तालिबान के उन अधिकारियों की यात्रा छूट को बढ़ाया जाए या नहीं।
संशय ने है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
एक तथ्य यह भी है कि तालिबान अपने जिन अधिकारियों के लिए कह रहा है उनमें करीब तेरह लोग शामिल हैं। इतना ही नहीं इन अफगान तालिबान अधिकारियों के लिए यात्रा छूट 19 अगस्त को समाप्त होने वाली थी। उधर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस बात को लेकर संशय में है कि यात्रा प्रतिबंध छूट को बढ़ाया जाए या नहीं।
तालिबान को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का रुख़, देश के बदलते हालात के हिसाब से परिवर्तित होता रहा है. ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि सुरक्षा परिषद का कौन सा स्थायी देश, तालिबान के साथ किस तरह के रिश्ते चाहता है. तालिबान के प्रति नरमी बरतने से उसमें बस नाममात्र का बदलाव लाया जा सकता है।
तालिबान को लेकर एक सख़्त लहज़े वाला प्रस्ताव न पारित होने की सूरत में सुरक्षा परिषद के पास बस यही एक विकल्प बचता है. अब ये देखने वाली बात होगी कि क्या इस नरमी से तालिबान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मांग मानने के लिए राज़ी किया जा सकेगा? या फिर इससे एक बार फिर ये साबित होगा कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति और सुरक्षा के नाज़ुक हालात से निपट पाने में सुरक्षा परिषद अक्षम है।