अपना देश विविधताओं से भरा है. यह विविधता केवल दिल्ली-मुंबई जैसे मेट्रो शहरों में ही नहीं दिखती, बल्कि हजारों मील दूर देश के अलग-अलग हिस्से में सैकड़ों ऐसे समुदाय हैं जिनके बारे में हम कथित मुख्यधारा के लोग बहुत कम जानते हैं. कई बार तो इनके रीति-रिवाजों के आगे दुनिया के सबसे आधुनिक देशों की संस्कृति और खुलापन बौना नजर आने लगता है. आज हम एक ऐसे ही समाज की कहानी आपके साथ साझा कर रहे हैं.

यह समाज सदियों से इतना खुला है कि इसकी तुलना आप ब्रिटेन में आयोजित होने वाले ‘लव-आइलैंड’ रियलिटी टीवी शो से कर सकते हैं. ब्रिटेन का यह शो बेहद ग्लैमरस है. इसमें लड़के लड़कियां एक आइलैंड पर समय बिताते हैं और इस दौरान उनके बीच प्यार पनपता है. इसके विजेता को भारी भरकम इनाम दिया जाता है. हम आज इस शो नहीं बल्कि सदियों पुरानी अपने देश की एक खास परंपरा की बात रहे हैं.

निश्चिततौर पर यह परंपरा लव आइलैंड जैसा ग्लैमरस नहीं है. लेकिन, इसके पीछे की सोच को आपको सलाम करना होगा. यह परंपरा सदियों पुरानी है. आज हम समाज में जिस खुलेपन और प्रगतिशील की बात करते हैं वह खुलेपन और प्रगतिशीलत अपने देश के एक सबसे पुराने समाज में सदियों से चली आ रही है. यह है देश का आदिवासी समाज. कथित मुख्यधारा की दुनिया इन आदिवासी समाज को मुख्यधारा में लाने की बात कहती है, लेकिन आपको हैरानी होगी कि इनकी कई परंपराएं और रीति-रिवाज ऐसे हैं, जिसके पीछे का दर्शन काफी गहरा है. इसी में एक परंपरा है घोटुल.

क्या है घोटुल

यह जनजाति परंपरा है. यह मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के बस्तर और अन्य इलाकों के माड़िया जनजाति समाज की परंपरा है. दरअसल, इस परंपरा के पीछे का दर्शन बहुत गहरा है लेकिन मुख्यधारा के कथित समाज ने इसकी एक नाकारात्मक छवि पेश कर दी है. इस परंपरा में गांव से बाहर घोटुल का निर्माण किया जाता है. घोटुल चोरों तरफ से घिरा एक बड़ा आंगन वाला घर होता है. स्थानीय स्तर पर इसे बांस और मिट्टी से बनाया जाता है.

आप इसे एक बंद चारहदीवारी के भीतर एक बड़ा आंगन और कुछ कमरें होने की तरह कल्पना कर सकते हैं. इसे गांव में बसावट वाले इलाके से दूर बनाया जाता है. इसमें एक खास मौके पर गांव के टीनएज लड़के-लड़कियां जाते हैं और वहं पर कुछ दिनों तक रहते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि लड़के-लड़कियां वहां समय बिताने के बाद सोने के लिए अपने घर चले जाते हैं.

यहां पर नाच-गान और संगीत के कार्यक्रम होते हैं. यहीं पर लड़के-लड़कियां एक दूसरे को जानने-समझने की कोशिश करते हैं. एक दूसरे के साथ समय बिताते हैं. यहां पर समाज से जुड़ी अस्थाओं के बारे में कहानियां भी बताई जाती हैं. कुछ दिन बिताने के बाद ये लड़के-लड़कियां अपने लिए जीवन साथी चुनते हैं. घोटुल में जाने वाले लड़कों को चेलिक और लड़कियों मोटियारी कहा जाता है.

कम हो रही ये परंपरा

जनजाति इलाकों में बाहरी दुनिया के प्रवेश ने इनकी कई परंपराएं खत्म कर दी हैं. घोटुल भी इसमें एक है. यह परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो रही है. बाहरी लोगों के संपर्क में आने के कारण के स्थानीय लोगों का एक वर्ग इसे गलत मानने लगा है. लेकिन, हम आज इस परंपरा के पीछे छिपे गहरे दर्शन की बात कर रहे हैं. ब्रिटेन में लव-आइलैंड या बिग ब्रदर्स या भारत का रियलिटी शो बिग बॉस की बात हो… इन सभी शोज का दर्शन कहीं न कहीं इस परंपरा से जुड़ा है. लेकिन, अंतर यह है कि यह परंपरा बेहद नेक औ पाक थी, जबकि टीवी के इन शोज में अब ग्लैमर और पैसे का तड़का लगा है.

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