देहरादून: उत्तराखंड का प्राचीन शहर जोशीमठ भूस्खलन की चपेट में है, लगातार हो रहे भूस्खलन से शहर के 700 से ज्यादा घरों, होटलों और दुकानों में भारी दरारें आ गई हैं, इसी वजह से वहां के लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है. जोशीमठ हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार बेहद महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यही वो जगह है, जहां पर आदिगुरु शंकराचार्य ने तपस्या कर दिव्य ज्योति प्राप्त की थी. यहां 1200 साल पुराना नृसिंह देव का मंदिर भी स्थित है, आदिगुरु शंकराचार्य ने ही नृसिंह देव की मूर्ति को स्थापित किया था.
उत्तराखंड से आदिगुरु शंकराचार्य की पौराणिक तपोस्थली की तस्वीरें भी आने लगी है, लगभग ढाई हजार वर्ष पुराना मंदिर भूस्खलन की जद में आ गया है. भूस्खलन होने की वजह से मंदिर के आसपास के इलाकों में भी दरारें पड़ गई है. दरार पड़ने कि वजह से लोग सहमे हुए हैं, यहीं पर आदिगुरु शंकराचार्य ने ढाई हजार वर्ष पूर्व तपस्या की थी, इसीलिए भारत के हर कोने से लोग यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
स्वर्ग का प्रवेश द्वार है जोशीमठ!
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जोशीमठ को स्वर्ग का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. मूल रूप से इसे ज्योतिर्मठ कहा जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसे जोशीमठ कहा जाने लगा. आज जोशीमठ बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच कई पगडंडियों और प्राचीन मार्गों का प्रवेश द्वार है. जोशीमठ आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रसिद्ध पीठों में से एक के रूप में प्रसिद्ध है.