बिलासपुर। शिक्षक भर्ती में विषय बाध्यता को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिका खारिज हो गयी है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए याचिका को डिसमिस कर दिया। अपने फैसले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने कहा कि जनहित याचिका दायर करते हुए इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिये, कि याचिका का उद्देश्य व्यापक तौर पर जनहित से जुड़ा हुआ हो। लेकिन इस याचिका में ये परिलक्षित नहीं हो रहा है। फैसले में याचिकाकर्ता की पहचान और उद्देश्यों पर भी सवाल खड़े किये।

दरअसल विप्रासेन अग्रवाल और शशि कुमार कुशवाहा की तरफ से जारी याचिका में स्कूलों में शिक्षक भर्ती में विषय बाध्यता समाप्त किये जाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गयी थी। याचिका में बताया था कि शिक्षक भर्ती में विषय की बाध्यता खत्म कर दी गयी है, जो स्कूली शिक्षा के लिए अनुचित है। इससे पहले शिक्षा व्यवस्था प्रभावित होगी, वहीं बच्चों की शैक्षणिक क्षमता भी प्रभावित होगी। याचिकाकर्ता ने शिक्षक भर्ती, सेवा पदोन्नति में संशोधन के राज्य सरकार के फैसले को वापस लेने की मांग की गयी।

याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार अब ऐसे शिक्षकों की भर्ती करने जा रही है, जिनके लिए विषय विशेषज्ञता जरूरी नहीं है। सरकार ने जो नियम में संशोधन किया है, उसके मुताबिक संस्कृत शिक्षक गणित और विज्ञान पढ़ा सकता है, हिंदी से स्नातक किया हुआ शिक्षक इंग्लिश और विज्ञान से स्नातक शिक्षक हिदी विषय की पढ़ाई करा सकता है। सरकार के ये कदम शिक्षा व्यवस्था को तहस नहस कर देगा।

याचिका में ये भी कहा गया कि पहले विषय आधारित शिक्षकों की भर्ती होती थी, लेकिन 4 मई 2023 को सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर विषय बाध्यता समाप्त कर दी। जिसके तहत अब कोई भी शिक्षक किसी भी विषय की पढ़ाई बच्चों को करा सकता है। जबकि 6 मई 2023 को आत्मानंद स्कूल से एक विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें संबंधित विषय शिक्षक के लिए उसी विषय में स्नातक होना जरूरी रखा गया था। जबकि शासकीय स्कूल में शिक्षक भर्ती में विषय विशेषज्ञता को खत्म कर दिया गया।

जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की जिम्मेदारी होनी चाहिये कि इसका उद्देशय वाकई में जनहित से जुड़ा है या फिर व्यक्तिगत उद्देश्य है। कोर्ट ने जनहित याचिकाकर्ता की पूरी जानकारी नहीं होने को लेकर  भी सवाल उठाया है।

 

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