उत्तरी बंगाल के रंगपानी रेलवे स्टेशन के नजदीक 17 जून की सुबह कंचनजंगा एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी में हुई टक्कर दुखदायी घटना है जिसमें करीब 15 लोगों की जान चली गई और अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब 60 यात्री घायल हैं. मृतकों में मालगाड़ी के लोको पायलट एवं को—पायलट समेत तीन रेल कर्मचारी भी मारे गये हैं. रेलवे सुरक्षा को लेकर भारतीय रेल और केन्द्र सरकार एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं.

अपने सगे—सम्बंधियों को खोने वाले परिवारों के प्रति मोदी सरकार को जवाबदेह होना होगा. केन्द्र सरकार मृतकों के परिजनों को पर्याप्त मुआवजा और सभी घायलों को फ्री व समुचित मेडिकल केयर एवं पुनर्वास की तत्काल व्यवस्था करे.

ओडिशा बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना जिसमें 296 लोग मारे गये और 1100 घायल हुए थे, के लगभग एक साल बाद यह दर्दनाक दुर्घटना घटी है. तब भी रेलवे सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हुए थे.

देश के करोड़ों लोगों की सेवा करने वाली भारतीय रेल के प्रति मोदी सरकार का समस्याग्रस्त रवैया एक बार फिर उजागर हुआ है. एक ओर करोड़ों रुपये मंहगी रेलगाड़ियों पर सरकार खर्च कर रही है, वहीं रेलवे सुरक्षा के मामले में लगातार ढिलाई बरती जा रही है. दुर्घटना रोकने वाली तकनीकी ‘कवच’ जिसका हरेक दुर्घटना के बाद प्रचार किया जाता है, अभी तक रेलवे नेटवर्क के नगण्य हिस्से में ही लगाई गई है.

रेलवे का सुरक्षा तंत्र, पर्याप्त मेण्टीनेंस और आधुनिकीकरण निरंतर मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही का शिकार बन रहा है. कमीशन ऑन रेलवे सेफ्टी — सीआरएस — ने रेलवे में सुरक्षा की कमियों को चिन्हित किया था लेकिन उसकी रिपोर्ट और अनुशंसाओं को सरकार द्वारा गम्भीरता से लागू नहीं किया गया. दूसरी ओर ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के नाम पर सीआरएस के अधिकारों में कटौती कर दी गई, रेलवे का निजीकरण व ठेकाकरण तेजी से चल रहा है और रेलवे स्टाफ की संख्या घटती जा रही है.

रेलवे सुरक्षा को लेकर तत्काल एक उच्च स्तरीय समीक्षा और ठोस कार्यान्वयन की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं की सम्भावना न रहे. साथ ही यह भी जरूरी है कि ‘कवच’ को सभी रूटों पर तत्काल स्थापित करने के लिए कदम उठाये जायें, रेलवे का आवश्यक आधुनिकीकरण पूरा हो तथा रेलवे में सभी स्तरों पर नयी भर्ती की जायें. तभी एक मजबूत रेलवे प्रणाली पुर्नस्थापित हो सकेगी.

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