भिलाई [न्यूज़ टी 20] बैंकों में बाबुओं (क्लर्क) की संख्या लगातार कम हो रही है। तकनीक का इस्तेमाल कर फाइलों को डिजिटल माध्यम से भेजने तथा लोगों के शाखाओं में जाने के बजाय ऑनलाइन लेनदेन को प्राथमिकता देने के कारण बैंकों ने धीरे-धीरे क्लर्क भर्ती में कटौती की है।
90 के दशक की शुरुआत में भारत की बैंकिंग प्रणाली में लिपिकीय नौकरियों की हिस्सेदारी 50% से अधिक थी, जो अब 22 फीसदी रह गई है। भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी बैंक रोजगार डाटा से यह खुलासा हुआ है।
तकनीक के कारण कम हुई भूमिका –
बैंक क्लर्क का काम मुख्य रूप से दस्तावेज तैयार करना, अधिकारियों के सहायक, टेलर, कैशियर इत्यादि का होता है। विशेषज्ञों के अनुसार टेक्नोलॉजी के तेजी से बढ़ने से बैंकों में क्लर्कों पर निर्भरता कम हुई है। मोबाइल फोन के आने और सस्ते डेटा प्लान के कारण शहरी क्षेत्रों में बैंकों की शाखाओं में लंबी कतारें कम हो गई हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ –
फाइनहैंड कंसल्टेंट्स के मैनेजिंग पार्टनर वीनू नेहरू दत्ता ने कहा कि तकनीक ने बैंकों क्लर्कों को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। मुझे लगता है कि ऑटोमेशन के कारण बैंकों के संचालन के लिए लिपिकों की भूमिका अब पहले की तरह केंद्र में नहीं है।
आज किसी को बहुत अधिक फाइलों को स्थानांतरित करने या बहुत अधिक कागजी कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है। सीएल एचआर सर्विसेस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा कि डिजिटलीकरण ने क्लर्क सहित कई नौकरियों को निरर्थक बना दिया है। बैंकों के फोकस क्षेत्रों में भी कई बदलाव हुए हैं, जिन्होंने इन नौकरियों को प्रभावित किया है।
यूनियन कर रहीं विरोध –
वहीं बैंक यूनियन क्लर्कों को दरकिनार करने का विरोध कर रही हैं। ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा कि क्लर्क की नियुक्ति पर कम पैसा खर्च होता है, वे एक उपयोगी संसाधन हैं। जब बैंक 30 हजार रुपये से शुरू होने वाले वेतन पर अधिक क्लर्कों को रख सकते हैं तो 70 हजार के वेतन पर अधिकारियों को क्यों नियुक्त करना चाहिए?