
मातृत्व अवकाश पर हाईकोर्ट का बड़ा आदेश
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि मातृत्व अवकाश कोई छूट नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है, जो हर महिला को उसकी मातृत्व यात्रा में समान रूप से मिलना चाहिए — चाहे वह जैविक मां हो, सरोगेसी से मां बनी हो या दत्तक ग्रहण करने वाली मां।
गोद ली नवजात बच्ची पर मिला 180 दिन का चाइल्ड एडॉप्शन लीव
इस मामले में याचिकाकर्ता ने दो दिन की नवजात बच्ची को गोद लेने के बाद 180 दिन की बाल दत्तक ग्रहण अवकाश (Child Adoption Leave) की मांग की थी। लेकिन IIM रायपुर ने अपनी HR नीति का हवाला देते हुए सिर्फ 60 दिन का अवकाश ही मान्य किया था। इसके खिलाफ महिला अधिकारी ने हाईकोर्ट का रुख किया।

कोर्ट ने कहा: मातृत्व एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, अधिकार नहीं छीना जा सकता
जस्टिस विभू दत्त गुरु की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि मातृत्व का अनुभव सभी महिलाओं के लिए समान रूप से होता है, इसलिए कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा:
“मातृत्व अवकाश केवल एक लाभ नहीं, बल्कि एक संवैधानिक और मानवीय अधिकार है। महिला कर्मचारी को उसके मातृत्व काल में पूर्ण सहानुभूति और समर्थन मिलना चाहिए।”
संस्थान की नीति को बताया अवैधानिक, याचिका मंजूर
हाईकोर्ट ने IIM रायपुर के अवकाश अस्वीकृति आदेश को रद्द करते हुए, याचिकाकर्ता को पूरे 180 दिन की छुट्टी देने के निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि यह नीति महिला अधिकारों के विरुद्ध है और इसे सुधारना होगा।
क्यों यह फैसला पूरे देश के लिए मिसाल बन सकता है?
-
यह फैसला सिर्फ छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रव्यापी बहस का हिस्सा बन सकता है
-
कामकाजी महिलाओं के अधिकारों को लेकर यह एक मजबूत कानूनी उदाहरण पेश करता है
-
सरकारी और निजी संस्थानों को अब अपनी HR नीतियों में समानता और समावेशिता लानी होगी
