भिलाई [न्यूज़ टी 20] बीजिंग: भारत ने पुष्टि कर दी है, कि 23 और जून को चीन की राजधानी बीजिंग में प्रस्तावित ब्रिक्स के वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिस्सा लेंगे। इसका मतलब है कि वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग,

रूस के व्लादिमीर पुतिन, ब्राजील के जायर बोल्सोनारो और दक्षिण अफ्रीका के सिरिल रामफोसा के साथ टीवी स्क्रीन साझा करेंगे। लेकिन, ये बैठक आमने-सामने नहीं होकर वर्चुअल हो रही है, जो निश्चित तौर पर एक ऐसे अवसर का खोना है, जो विकासशील दुनिया के सपनों को बढ़ाने का दावा करता है।

चीन जाने को तैयार नहीं हुए पीएम मोदी?

भारत और चीन के बीच चल रहे लद्दाख विवाद का अभी तक समाधान नहीं हो पाया है और चीन अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए तैयार नहीं है, लिहाजा पूर्वी लद्दाख में तनाव बरकरार है। पिछले दो साल से लाखों सैनिक पूर्वी लद्दाख में मौजूद हैं।

अगर चीन ने अपने सैनिकों को वापस खींच लिया होता, को संभव था, कि पीएम मोदी शायद बीजिंग चले भी गये होते। रिपोर्टों में कहा गया है कि, पीएम मोदी को बीजिंग बुलाने के लिए चीन काफी उत्सुक भी था

और चीन ने इसके लिए अपने विदेश मंत्री वांग यी को भारत के दौरे पर भेजा भी था, लेकिन पीएम मोदी ने वांग यी से मिलने से इनकार कर चीन को साफ संदेश दिया, कि लद्दाख पर किसी भी एकतरफा कार्रवाई को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है।

चीन के साथ बढ़ता ही रहा तनाव

दिल्ली और बीजिंग, दोनों ही देशों में व्यापक रूप से अटकलें लगाई जा रही थीं, कि पूर्वी लद्दाख में जल्द ही कोई सफलता मिल सकती है, ठीक उसी तरह 2017 में जब चीन ज़ियामेन में ब्रिक्स की बैठक की मेजबानी कर रहा था

और पीएम मोदी ने जाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि भारतीय और चीनी सैनिक भूटान के डोकलाम में आमने-सामने थे। लेकिन लंबी बातचीत के बाद समझौता हुआ और उसके बाद पीएम मोदी ने चीन का दौरा किया भी था।

लेकिन, इस बार यह कहीं अधिक अनिश्चित दुनिया है। कोविड महामारी कम हो गई है, लेकिन दोनों देशों के बीच का तनाव खत्म नहीं हुआ है। वहीं, यूक्रेन पर रूस का आक्रमण अभी भी जारी है। लद्दाख में बीजिंग के घुसने का मतलब है,

कि ब्रिक्स के पांच सदस्यों में से दो सदस्य चीन और रूस संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के अपने सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे हैं। और भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ब्रिक्स विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में

साफ तौर पर कहा भी, ‘ब्रिक्स ने बार-बार संप्रभु समानता, क्षेत्रीय अखंडता और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान की पुष्टि की है। हमें इन प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरना चाहिए’।

पीछे हटने को तैयार नहीं चीन

रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन किसी भी तरह पीएम मोदी को बीजिंग बुलाना चाहता था, लेकिन पूर्वी लद्दाख में तनाव पर 15 दौर की भारत और चीन के कमांडर लेवल की बातचीत के बाद भी चीन ने यथास्थिति में लौटने का संकेत नहीं दिया है।

तो सवाल ये उठ रहे हैं, कि आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी, भारतीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की तरह ही क्यों ब्रिक्स सम्मेलन में भाग ले रहे है।

आपको बता दें कि, अजीत डोभाल ने ब्रिक्स एनएसएस सम्मेलन में भाग लिया था। ऐसे में पीएम मोदी भी चीन के राष्ट्रपति से क्यों बात कर रहे हैं, ये सवाल काफी जटिल है।

‘स्विंग स्टेट’ में भारतीय विदेश नीति

यूक्रेन, रूस, यूरोप, चीन और अमेरिका की मौजूदा स्थिति और तेजी से बदलते जियो पॉलिटिक्स में ऐसा लग रहा है, कि मोदी सरकार ने तय किया है कि कम से कम कुछ समय के लिए वह “स्विंग स्टेट” की क्लासिक विदेश नीति के मुताबिक खेलेगी।

इसका मतलब है कि, मोदी सरकार ने तय किया है, को वो सबसे पहले अपने देश का हित देखेगी और इस बात को सुनिश्चित करेगी, कि भारत के राष्ट्रीत हित के सबसे ज्यादा करीब कौन सा फैसला है।

इसका मतलब यह भी है, कि भारत अपने इस लक्ष्य की तरफ बढ़ने की कोशिश में उन नैतिक मूल्यों को भी नजरअंदाज करेगा। उदाहरण के लिए, भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण पर पुतिन की आलोचना करने

से इनकार करके अविश्वसनीय यथार्थवाद का प्रदर्शन किया है, क्योंकि भारत जानता है, कि उसके दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान हैं और तेल पर फिलहाल रूस की मदद से काफी फायदा हो सकता है।

फिर पश्चिम के साथ कैसी होगी नीति?

भारत ने पुतिन की आलोचना नहीं की, जिसका मतलब ये हुआ, कि भारत क्वाड शिखर सम्मेलन हो या फिर जी-20 शिखर सम्मेलन (जिसका आयोजन अगले महीने जर्मनी में होने जा रहा है, जिसमें भाग लेने पीएम मोदी बर्लिन जाएंगे) भारत मजबूती से इस पिच पर नहीं खेलेगा।

वहीं, भारतीय प्रधानमंत्री पिछले दिनों जापान से लौटे हैं, जहां उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज के साथ क्वाड की बैठक में शामिल हुए थे, जहां भी यूक्रेन का मुद्दा उठा था, मगर भारत ने रूस की आलोचना नहीं की।

यथार्थवाद के करीब भारतीय विदेश नीति?

भारतीय विदेश नीति पर नजदीक नजर रखने वालों का मानना है कि, भारत यथार्थवाद विदेश नीति को अपना रहा है, जो इस तथ्य को भी रेखांकित करता है, कि भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था भी अभी सरकार के अनुरूप नहीं है, लिहाजा नई दिल्ली जियो पॉलिटिक्स के हर एक्टर के साथ संबंध बनाकर रखना चाहती है

और चीन के मुद्दे पर भी यही सोच है, यानि पीएम मोदी ने बीजिंग ना जाकर चीन को संदेश भले ही दिया है, लेकिन वर्चुअल बैठक में शामिल होकर भारत ने चीन से संबंधों को बरकरार भी रखा है। जो भी हो, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लद्दाख गतिरोध को हल करने

में चीनी अड़ियल रुख दिल्ली के बीजिंग और ब्रिक्स में अन्य मध्यम अर्थव्यवस्थाओं के साथ अपने संबंधों को सुधारने के रास्ते में आ रहा है। भारत को अहसास है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न हों, उसे ब्रिक्स की उच्च तालिका में एक भूमिका निभानी चाहिए।

इसके अलावा, ब्रिक्स के पाचों राष्ट्र दुनिया की आबादी का 40 प्रतिशत, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार का 16 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं, लिहाजा भारत के लिए बिक्र से बाहर होना भी हित में नहीं है, भले ही अमेरिका आंखें क्यों ना तरेरे।

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