सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच की याचिका कोर्ट ने खारिज की

बिलासपुर। बलात्कार के आरोपों का सामना कर रहे एक खाद्य निरीक्षक को बिलासपुर हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। आरोपी ने पीड़िता के सोशल मीडिया अकाउंट (Facebook और Instagram) की जांच कराने की अनुमति मांगी थी, जिसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह पीड़िता की निजता का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने साफ कहा कि गोपनीयता एक मूलभूत अधिकार है जिसे किसी भी परिस्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट ने ठहराया उचित

ट्रायल कोर्ट ने पहले ही आरोपी की याचिका को अस्वीकार कर दिया था। इस फैसले को हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखते हुए कहा कि किसी के सोशल मीडिया अकाउंट की जांच की अनुमति देना उसकी गोपनीयता को खतरे में डाल सकता है। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने यह भी माना कि पीड़िता की सोशल मीडिया जांच की मांग बीएनएसएस की धारा 528 (पूर्व में सीआरपीसी 482) के दायरे में नहीं आती।

सोशल मीडिया पोस्ट से अंतरंगता साबित करने की कोशिश नाकाम

आरोपी ने तर्क दिया था कि सोशल मीडिया पोस्ट से उनके और पीड़िता के बीच की ‘घनिष्ठता’ साबित की जा सकती है और मामला बलात्कार का नहीं बल्कि आपसी सहमति का है। लेकिन कोर्ट ने इसे निजी स्वतंत्रता का हनन मानते हुए याचिका खारिज कर दी।

मामले की पृष्ठभूमि: कैसे शुरू हुआ विवाद

पीड़िता जिला पंचायत सदस्य थी और आरोपी खाद्य निरीक्षक। काम के दौरान दोनों के बीच संबंध बने, लेकिन बाद में पीड़िता को आरोपी की शादी और बच्चों की जानकारी मिली। इस पर संबंध बिगड़े और आरोपी ने कथित रूप से ब्लैकमेलिंग और शारीरिक शोषण की घटनाएं अंजाम दीं। पीड़िता ने FIR दर्ज कराई जिसमें IPC की धारा 294, 323, 506, 376 और 376(2)(N) के तहत अपराध पंजीबद्ध हुआ।

कोर्ट की टिप्पणी: निजता एक मौलिक मानव अधिकार

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि—

“निजता एक मौलिक मानव अधिकार है जो व्यक्ति की गरिमा, व्यक्तिगत आजादी और आत्म-सम्मान से जुड़ा होता है। इसे सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच जैसी मांगों से खतरे में नहीं डाला जा सकता।”

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