Ancient History Of India: प्राचीन भारत में दंत चिकित्सा का इतिहास लगभग 2500 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता से मिलता है. इस सभ्यता के लोगों को दांतों की जांच की एक बढ़िया समझ थी और वे दांतों के इलाज के लिए नुकीले पत्थर या फिर नुकीले उपकरणों का इस्तेमाल करते थे. दांतों को साफ करने और फ्रेशनेश बनाए रखने के लिए नीम की टहनियों जैसे प्राकृतिक उपचारों का भी उपयोग किया करते थे. प्राचीन भारत में, पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद ने दंत चिकित्सा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे 600 ईसा पूर्व के आयुर्वेदिक ग्रंथों में ओरल हेल्थ, दंत रोगों और उपचार का विस्तृत विवरण है.

वर्षों पहले ऐसे होता था दांतों का इलाज

आयुर्वेदिक ग्रंथों में ओरल रोगों के इलाज के लिए कई सर्जिकल चिकित्सा तकनीक का यूज होता था. दर्द से राहत और इन्फेक्शन कंट्रोल के लिए हर्बल उपचार के यूज का भी वर्णन किया गया है. आयुर्वेदिक दंत चिकित्सक, जिन्हें “दंतकार” के नाम से जाना जाता है, अपने समुदायों में ओरल केयर किया करते थे. उन्होंने दांत दर्द और रोगों के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक उपचारों जैसे लौंग का तेल, मुलेठी की जड़ और हल्दी का उपयोग किया. वे दांतों और मसूड़ों की नियमित सफाई के माध्यम से फ्रेसनेश बनाए रखने के महत्व में भी विश्वास करते थे.

कई तरह के औजारों का किया जाता था यूज

आयुर्वेदिक दंत चिकित्सा के अलावा पारंपरिक भारतीय दंत चिकित्सा भी विकसित हुई. उदाहरण के लिए सौराष्ट्रक प्रणाली (Sowrashtraka System) में डेन्चर बनाने के लिए धातु और जानवरों के दांतों का उपयोग किया जाता था. पारंपरिक भारतीय प्रणाली ने भी ओरल हाइजीन के महत्व और मौखिक रोगों के इलाज के लिए प्राकृतिक उपचारों के उपयोग को मान्यता दी है. प्राचीन भारत में दंत चिकित्सा का एक समृद्ध इतिहास था. दांतों की सड़न और मसूड़ों की बीमारी के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के कच्चे औजारों, प्राकृतिक उपचारों और शल्य चिकित्सा तकनीकों (Surgical Techniques) का इस्तेमाल किया. मुंह की साफ-सफाई और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग भी प्राचीन भारतीय दंत चिकित्सा में मौलिक सिद्धांत थे

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