भानुप्रतापपुर Elections | आदिवासी बहुल प्रदेश में आदिवासियों का बढ़ा हुआ आरक्षण प्रतिशत रद्द होना सबसे बड़ा मुद्दा है। अब जबकि प्रदेश में कांकेर जिले की भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट पर 5 दिसंबर को उपचुनाव होना है तो प्रमुख तौर पर इस मुद्दे पर राजनीति होना भी लाजिमी है। आदिवासी आरक्षण के मसले पर दोनों पार्टियां एक-दूसरे को पूरी तरह से नाकाम और जिम्मेदार बता रही हैं। बड़ा सवाल ये कि इस पर आदिवासी वर्ग क्या सोचता है, किसे जिम्मेदार मानता है और किसके आगे उम्मीद रखता है, इसका जवाब भी भानुप्रतापुर उपचुनाव के नतीजे से ही मिलेगा। ऐसे में मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष कैसे और किन तर्कों के साथ अपनी बात जनता से कह रहा है।
भानुप्रतापपुर उपचुनाव की तारीख तय होने के साथ ही दोनों पार्टियों ने एक दूसरे को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है। बैनर पंपलेट से लेकर नेताओँ के बयान ये भी तय हो गया है कि उपचुनाव में आदिवासी आरक्षण सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होगा..बीजेपी पहले दिन से आदिवासी आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस पर हमलावर है। बीजेपी नेता आरोप लगा रहे हैं कि आदिवासियों का आरक्षण रद्द इसी सरकार ने किया है।
भानुप्रतापपुर उपचुनाव की बाजी जीतने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। 12 नवंबर को अजय जामवाल, शिवप्रकाश और प्रदेश अध्यक्ष की मौजूदगी में यहां बीजेपी चुनावी रणनीति तैयार करेगी। ये भी कहा जा रहा है कि आरक्षण के अलावा धर्मांतरण भी बीजेपी का मुख्य मुद्दा होगा. दूसरी ओर कांग्रेस का दावा है कि भानुप्रतापपुर उपचुनाव से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। जनता ये तय कर देगी कि बीजेपी आदिवासी विरोधी है।
भानुप्रतापपुर विधानसभा में 70 फीसदी मतदाता आदिवासी हैं और इसके नतीजे बताएंगे कि 2023 के विधानसभा चुनाव में धर्मांतरण और आदिवासी आरक्षण खारिज होने के लिए खुद आदिवासी वर्ग किसे जिम्मेदार मानता है। आदिवासी वोटर्स किसके प्रयासों से इत्तेफाक रखते हैं। यानि इसे आदिवासी वर्ग का मूड जानने का सीधा टेस्ट कहें तो गलत ना होगा।