बलौदाबाजार|News T20: हमारा देश अनाज उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो चूका है। देश के किसानों ने उन्नत किस्म के बीज, मशीनों आदि का प्रयोग करते हुए खेती में अपेक्षित बदलाव लाकर बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने तथा उत्पादन लक्ष्य को समय पर प्राप्त करने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। इस उत्पादकता को और अधिक बढ़ाने तथा श्रम को कम करने में ड्रोन टेक्नोलॉजी एक नई क्रांति ला सकती है। समय व जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ खेती में जहां समस्याओं का आकार व स्वरूप बदला है, वहीं किसानों पर लागत में कमी लाते हुए अधिक उत्पादन का दबाव भी लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही, कृषि में आय को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं जिससे किसानों की आय दुगुनी हो सके। किसानों की आय को दुगुनी करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक खेती के नए तौर-तरीके अपनाए जा रहे हैं। इनमें अत्याधुनिक कृषि मशीनों तथा अन्य उपकरणों का विशेष तौर पर ज़िक्र किया जा सकता है। देश में  खेती का क्षेत्रफल सीमित है लेकिन किसानों और वैज्ञानिकों की मदद से ‘हाईटेक’ खेती को अपनाते हुए खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ रहा है जिसके लिए देश के किसान और वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। क्रमिक विकास के फलस्वरुप अन्य मशीनों और यंत्रों की भांति ड्रोन भी विकास के इस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां उसे खेती में भी प्रयोग में लाया जा सकता है और कृषि के क्षेत्र में ड्रोन की उपयोगिता को देखते हुए इसकी लगातार मांग बढ़ रही है। कृषि के विभिन्न कार्यों में दक्षता व सरलता से प्रयोग में लाया जा सकेगा।

क्या है ड्रोन

ड्रोन एक ऐसा मानव रहित विमान है जिसे दूर से ही नियंत्रित तरीके से उड़ाया जा सकता है; इसके खेती में प्रयोग की अपार संभावनाएं हैं। एक सामान्य ड्रोन चार विंग यानी पंखों वाला होता है। इसलिए इसे ‘क्वाड कॉप्टर’ भी कहा जाता है। असल में यह नाम इसके उड़ने के कारण इसे मिला। यह बिल्कुल एक मधुमक्खी की तरह उड़ता है और एक जगह पर स्थिर भी रह सकता है। ड्रोन के संचालन हेतु पायलट के पास प्रमाणपत्र होना आवश्यक है। ऐसे युवा जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक है ड्रोन परिचालन हेतु प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते है । इसके देशभर में कई सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं ने ड्रोन प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ कर दिए हैं। कृषि फसलों का आकलन, भू-दस्तावेजों का डिजिटाइजेशन, कीटनाशकों और पोषक तत्वों का का छिड़काव करने लिए ‘किसान ड्रोन्स’ का इस्तेमाल किया जा सकता है। ड्रोन को कई तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे उसके उड़ने की ऊंचाई के आधार पर, उसके आकार के आधार पर, उसके वजन उठाने की क्षमता के आधार पर, उसकी पहुंच क्षमता के आधार पर इत्यादि परंतु मुख्य रूप से इसे वायु गतिकीय के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। नगर विमानन महानिदेशालय के अनुसार ड्रोन को टेक ऑफ वेट के अनुसार पांच भागों में . वर्गीकृत किया गया है- नैनो 250 ग्राम से कम या बराबर (सूक्ष्म) 250 ग्राम से बड़ा और 2 किलोग्राम से कम या बराबर (मिनी) 2 किलोग्राम से बड़ा और 25 किलोग्राम से कम या बराबर (बड़ा)150 किलोग्राम से बड़े व्यावसायिक क्षेत्र में इनको उड़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों व नियमों का पालन करना अनिवार्य है।

गहन अध्ययन जारी हैं। उप संचालक कृषि दीपक कुमार नायक ने जानकारी दी की जिले में विकसित भारत संकल्प यात्रा अंतर्गत जिले सभी विकासखंडो में ड्रोन के माध्यम से नैनो यूरिया छिडकाव का प्रदर्शन किया जा रहा है, जो की कृषकों के मध्य आकर्षण का केंद्र बना हुआ है I जिले में 2 ड्रोन के माध्यम से प्रतिदिन 4 प्रदर्शन आयोजन कर कृषकों की इसकी जानकारी दी जा रही है, साथ ही पी एम प्रणाम योजना के तहत कृषकों को रासायनिक उर्वरक के साथ साथ जैव- जैविक एवं नैनो यूरिया का उपयोग करने हेतु प्रेरित किया जा रहा है। इफ्फको कम्पनी के द्वारा जिले के 3 महिलाओं को प्रशिक्षण पश्चात ड्रोन पायलेट के रूप में तैयार किया गया है जिन्हें की कम्पनी द्वारा ड्रोन दिया जाएगा तथा वे कृषको ड्रोन सेवा प्रदान करेंगी.कृषि के क्षेत्र में ड्रोन क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सफल साबित होंगे।तथा किसान ड्रोन के रिमोट को अपने हाथ में लेकर अपनी खेती में एक क्रांति लाएगा जोकि सदाबहार क्रांति को लाने में एक नई दिशा प्रदान करेगा।

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