अगर आप मनोरंजन जगत की खबरें पढ़ते और सुनते हैं तो आजकल आपने एक टर्म काफी सुना होगा ‘फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन.’ जिसे लेकर काफी बहसबाजी चल रही है. आलिया भट्ट और वेदांग रैना की फिल्म ‘जिगरा’ पर यही आरोप लग रहे हैं. जब दिव्या खोसला जैसी बड़ी पर्सनैलिटी ने ‘जिगरा’ पर फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के आरोप लगाए तो हर कोई चौंक गया.
उन्होंने दावा किया कि थिएटर खाली पड़े हैं और मेकर्स बड़े-बड़े नंबर का झांसा देकर लोगों को उल्लू बना रहे हैं. अब इस कॉन्ट्रोवर्सी के बीच एक सवाल उठ रहा है कि आखिर पिछले कुछ समय से फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन दिखाकर आखिर मेकर्स को क्या फायदा होता है? आखिर फर्जी कारोबार के आंकड़ों का मतलब क्या है? क्या बड़े-बड़े स्टार्स अपनी साख बचाने के लिए इन नंबर्स का सहारा ले रहे हैं? तो चलिए इस खास स्टोरी में इसी विषय पर चर्चा करते हैं.
बॉक्स ऑफिस कलेक्शन क्या होता है:
फिल्मों के कारोबार की भाषा में कलेक्शन शब्द काफी प्रचलित है. किसी फिल्म ने देश और दुनियाभर के थिएटर्स से कितने रुपये कमाए और फिर इसी लिहाज से हिट और फ्लॉप का तमगा लगता है. बिजनेस का आंकलन लगाने के लिए भी नेट प्रॉफिट, ग्रोस कलेक्शन और वर्ल्डवाइड कई तरह के पैमाने पर पैसों का हिसाब-किताब लगाया जाता है.
क्या होता है फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन
बीते कुछ सालों में इस टर्म का इस्तेमाल काफी होने लगा है. लेकिन फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के पीछे की कहानी कितनी सच है कितनी झूठी, इसका प्रमाण नहीं मिलता. मगर फिल्म जानकारों और पूरे गणित को देखकर ये जरूर कहा जाता है कि फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का मतलब है नंबर का हेरफेर. ऐसे आरोप लगते हैं कि मेकर्स जनता के सामने हाइप बनाने के लिए खुद थिएटर्स की टिकटें खरीदते हैं, ताकि दर्शकों के सामने बज बना रहे कि फिल्म के शोज फुल चल रहे हैं. इससे एक माइंड सेट भी बनता है कि अगर शोज फुल हैं, खूब टिकटों की मांग है तो मतलब फिल्म बढ़िया चल रही होगी.
किन फिल्मों पर लगा ये आरोप
‘जिगरा’ से पहले भी कई बड़ी फिल्मों पर फेक बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के आरोप लगे हैं. लेकिन पुख्ता सबूत किसी भी फिल्म को लेकर नहीं मिलते हैं. लेकिन कई बड़े-बड़े सुपरस्टार्स की फिल्में ऐसी हैं जिनपर ये इल्जाम लगे हैं. जैसे imdb पर एक लिस्ट है. जो टॉप बॉलीवुड मूवीज के फर्जी कलेक्शन की बात करती है. इसमें ‘ब्रह्मास्त्र’, ‘कृष 3’, ‘काबिल’, ‘बैंग बैंग’ का जिक्र है. Brahmastra Part One: Shiva को लेकर ये रिपोर्ट दावा करती है कि प्रोड्यूसर फिल्म को लेकर 257 करोड़ रुपये का कारोबार बताते हैं जबकि ट्रेड फिगर 160 करोड़ रुपये है. मतलब कि 97 करोड़ रुपये का हेरफेर देखने को मिलता है.
क्या साख बचाने के लिए होता है ये फर्जीवाड़ा
फर्जी कलेक्शन का सहारा आखिर क्यों लेना पड़ता होगा? लाजमी है कि एक कलाकार सुपरस्टार कैसे बनता है. जबकि उसमें टैलेंट के साथ साथ बॉक्स ऑफिस को हिलाने की ताकत हो. जब वह एक ब्रांड बन जाता है. फेस वेल्यू के हिसाब से ही करोड़ों की कमाई हो जाती है.
डायरेक्टर्स ऐसे स्टार्स को अपनी फिल्मों में कास्ट करने के लिए आतुर रहते हैं तो प्रोड्यूसर्स भी करोड़ों की फीस देने के लिए रेडी हो जाते हैं. मगर जब यही साख एक एक्टर नहीं बचा पाएगा तो उसका इंडस्ट्री में दबदबा कम हो जाता है. संभव है कि बड़े बड़े स्टार्स को अपने सुपरस्टार के टैग को बनाए रखने, ब्रांड वेल्यू को बरकरार रखने और दबदबा बनाए रखने के लिए इसका सहारा लेना पड़ता हो.