नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि अगर कांग्रेस की सरकार आएगी तो वह अलग मुस्लिम बजट लाएगी, क्योंकि वह पहले भी ऐसा चाहती थी और गुजरात के मुख्यमंत्री होने के नाते मैंने तब इसका विरोध किया था. हालांकि, कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि पीएम मोदी का यह दावा कि डॉ. मनमोहन सिंह ने केंद्रीय बजट का 15% विशेष रूप से मुसलमानों पर खर्च करने की योजना बनाई थी, पूरी तरह से गलत है. चिदम्बरम ने एक्स पर लिखा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 112 केवल एक एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट (वार्षिक वित्तीय विवरण) होती है, जो कि केंद्रीय बजट है. फिर दो बजट कैसे हो सकते हैं?
वहीं, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि पीएम मोदी का मुस्लिम बजट वाला बयान बेबुनियादी है. उन्होंने कहा है कि वास्तव में मनमोहन सिंह 2013 में कृषि पर मुख्यमंत्रियों की एक समिति का गठन कर रहे थे और फिर उसके बाद चुनाव हो गए और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए. कांग्रेस नेता अपने बयान में 2013 की जिस कमेटी की बात कर रहे हैं, आखिर वह क्या थी और उसके क्या सुझाव थे. इससे पहले जानें कि पीएम मोदी ने असल में मुसलमानों को 15 प्रतिशत बजट को लेकर क्या बयान दिया है.
‘मुस्लिम बजट’ क्या है? मोदी ने क्या कहा?
बुधवार को महाराष्ट्र के नासिक में एक रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों के लिए सरकारी बजट का 15% आवंटित करना चाहती है. पीएम मोदी ने कहा कि जब मैं (गुजरात का) मुख्यमंत्री था, तब कांग्रेस यह प्रस्ताव लाई थी. बीजेपी ने इस कदम का कड़ा विरोध किया था और इसलिए यह लागू नहीं किया जा सका, लेकिन कांग्रेस इस प्रस्ताव को फिर से लाना चाहती है. पीएम मोदी ने कहा कि अगर कांग्रेस चुनी गई तो वह धर्म के आधार पर दो बजट बनाएगी. मैं बजट को ‘हिंदू बजट’ और ‘मुस्लिम बजट’ के रूप में विभाजित नहीं होने दूंगा और धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं दूंगा.
2013 की कमेटी के बारे में क्या बोले जयराम रमेश?
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा है कि प्रधानमंत्री इस बारे में निरर्थक बयान दे रहे हैं कि डॉ. मनमोहन सिंह क्या करना चाहते थे और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने इसे कैसे रोका है. यह 100 फीसदी सत्य है कि डॉ. मनमोहन सिंह ने 2013 में कृषि पर मुख्यमंत्रियों की एक समिति गठित की थी. इस समिति ने किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी की सिफारिश की थी. इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा था कि तभी चुनाव आ गये और मोदी प्रधानमंत्री बन गए. प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने समिति की सिफारिशों को लागू करने से इनकार कर दिया, जिसका उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में जोरदार समर्थन किया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस न्याय पत्र ने गारंटी दी है कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक कानून पारित किया जाएगा कि किसानों के लिए एमएसपी डॉ. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार खेती की व्यापक लागत का 1.5 गुना निर्धारित किया जाए.
क्या हुआ था साल 2011 में?
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कहते रहे हैं कि 2011 में तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट का विश्लेषण करने के लिए गठित पैनल के प्रमुख के रूप में सिफारिशें की थीं और एमएसपी की कानूनी गारंटी की सिफारिश का समर्थन किया था. तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस (स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट) पर कार्रवाई की. इस पर संसद में बहस हुई और राज्यों के साथ दो बार बातचीत हुई. कृषि राज्यों का मामला है फिर भी कांग्रेस ने निर्णय लिया था कि हम उस दिशा में आगे बढ़ेंगे. कांग्रेस का कहना है कि उस वक्त उनके सामने खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण जैसे बड़े कानून थे. हमने फैसला किया था कि हम वापस आएंगे और स्वामीनाथन फॉर्मूला लाएंगे. कांग्रेस नेता का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी 2014 में सत्ता में आए और कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह एमएसपी को कानूनी गारंटी देंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
स्वामीनाथ कमेटी पर क्या है भाजपा का कहना?
भाजपा का आरोप है कि जब कांग्रेस केंद्र में सत्ता में थी तो उसने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया था. उन्होंने हवाला दिया कि 16 अप्रैल 2010 को राज्यसभा में भाजपा सदस्य प्रकाश जावड़ेकर द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री केवी थॉमस ने कहा था कि सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया है. उन्होंने कहा कि उत्पादन की औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक होनी चाहिए.
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर क्या कांग्रेस का स्टैंड?
स्वामीनाथन आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने इसे राष्ट्रीय विकास परिषद को भेज दिया था, जिनके सभी सदस्य मुख्यमंत्री थे और इसे एक विश्लेषण करने और सरकार को अपनी सिफारिशें भेजने के लिए कहा था. 2007 में मुख्यमंत्रियों की एक कमेटी बनी थी और उसके अध्यक्ष तब गुजरात के सीएम मोदी थे. फरवरी 2011 में उस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मनमोहन सिंह को सौंपी थी. कांग्रेस का दावा है कि उसमें नरेंद्र मोदी ने खुद कहा था कि अब समय आ गया है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए. कांग्रेस नेता जयराम ने कहा कि हमने (यूपीए सरकार) फिर से सभी राज्यों से बात की. संसद में (एमएस) स्वामीनाथन राज्यसभा के मनोनीत सदस्य थे, उन्होंने इस पर बात की और मैं भी एक मंत्री के रूप में वहां था. इसमें लगभग डेढ़ साल का समय लगा और जब इसे लागू करने का समय आया, तो हमारी सरकार के पास खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण पर कानून था, जिसे 2013 में पारित किया गया और फिर बाद में चुनावों की घोषणा की गई.
कांग्रेस नेता ने कहा कि मनमोहन सिंह सरकार ने उस समय सोचा था कि यह एक बड़ा कदम है जिसे हमने आम सहमति से उठाया है और जब हमारी सरकार वापस आएगी तो हम इसे लागू करेंगे. यह निर्णय सितंबर 2013 को लिया गया था. हमारी सरकार सत्ता में वापस नहीं आई और मोदी जी की सरकार बनी. 2014-2024 तक इस पर कोई काम नहीं किया गया, जो सवाल (वर्तमान) पीएम नरेंद्र मोदी से पूछे जाने चाहिए, वे पूर्व पीएम (सिंह) से पूछे जा रहे हैं.