भिलाई [न्यूज़ टी 20] इस महीने की शुरुआत में भारत ने अपना पहला मेड इन इंडिया हल्का विमान उड़ाया. ये 17-सीटर डोर्नियर विमान अरुणाचल प्रदेश के पांच दूरस्थ शहरों को असम के डिब्रूगढ़ से जोड़ता है. इसका निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने किया है.
यह भारत के सही मायने में आत्मनिर्भर बनने का ताज़ा उदाहरण था. प्रधानमंत्री ने दो साल पहले यानी 12 मई 2020 को भारत को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा की थी और 20 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज पेश किया था.
पीएम मोदी ने इसे प्रमोट करने के लिए “वोकल फ़ॉर लोकल” जैसा आकर्षित स्लोगन भी दिया था. देश ने इसे सराहा. आनंद महिंद्रा जैसे उद्योगपतियों ने इसे ‘गेम चेंजर’ कहा.
प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भर बनने का ये बड़ा फ़ैसला चीन के साथ बढ़ते तनाव के परिप्रेक्ष्य में आया था. आपको याद होगा कि भारत में लोगों को चीन पर अचानक इतना ग़ुस्सा आया कि कइयों ने अपने ‘मेड इन चाइना’ सामानों को नष्ट कर दिया और चीनी सामान कभी ना ख़रीदने का फ़ैसला किया.
उसी क्रम में मोदी सरकार ने दर्जनों चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और चीन से आए कई इलेक्ट्रॉनिक सामानों को कस्टम से क्लीयरेंस मिलने में दिक़्क़त होने लगी.
जनता को पैग़ाम साफ़ था कि चीनी सामान की जगह भारत में बने सामान ख़रीदे जाएं. लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त ये है कि तमाम कवायदों के बावजूद उसके बाद से चीन में बने सामानों का आयात और तेज़ी से बढ़ा है.
चीन ने हाल ही में भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़े जारी किए हैं जिसके अनुसार अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक ये व्यापार लगभग 130 अरब डॉलर था जो कि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 44 प्रतिशत ज़्यादा था.
इस दौरान भारत ने चीन से 103.47 अरब डॉलर का सामान आयात किया जो पिछले साल 66 अरब डॉलर के क़रीब था. भारत का चीन को निर्यात भी वर्ष 202-21 में 17.51 अरब डॉलर से बढ़कर 2021-22 में 26.46 अरब डॉलर हो गया.
लेकिन चिंता की बात ये है कि भारत को साल 2020-21 में 44.02 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ था जो 2021-22 में बढ़ कर 77 अरब डॉलर हो गया. यानी भारत ने चीन को जितना माल बेचा उससे 77 अरब डॉलर अधिक चीन ने भारत को माल बेचा.
आत्मनिर्भरता पर बढ़ते नीतिगत ज़ोर और सीमा पर जारी तनाव के बावजूद चीनी आयात पर निर्भरता कम करने के भारत के प्रयासों में सफलता नहीं मिली है. चीन के साथ देश का द्विपक्षीय व्यापार बढ़ता ही जा रहा है और इसमें चीन ज़्यादा फ़ायदे में है.
भारत और चीन में विशेषज्ञ इन ताज़ा आंकड़ों को किस तरह से देखते हैं?
चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार बढ़ना तय है. यह तीन कारणों से है. एक, इस क्षेत्र के किसी भी अन्य देश की तुलना में ऑपरेशन के स्केल, प्रौद्योगिकी और ग्लोबल वैल्यू चेन्स (GVC) के मामले में चीन काफ़ी अच्छी स्थिति में है.
दूसरे, भारत की आत्मनिर्भरता नीति चीन के ख़िलाफ़ लक्षित नहीं है, बल्कि यह घरेलू-केंद्रित नीति है जिसका उद्देश्य भारत की अपनी घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ाना और अपने “सप्लाई-साइड कंस्ट्रेंट्स” (आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं) को कम करना है.
इसलिए यहां समझना ज़रूरी है कि आत्मनिर्भरता निर्भरता का अंत नहीं है, बल्कि यह भारत की परस्पर आर्थिक निर्भरता को उतना ही बढ़ाता रहेगा जितनी हमारी घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की कोशिश जारी है.
तीसरे, यदि हम एक प्रमुख निर्यातक देश बनना चाहते हैं तो हमें एक प्रमुख आयातक देश भी बनना होगा. भारत के लिए चीन लागत मूल्य के कारण सबसे महत्वपूर्ण आयात स्रोत है.
साथ ही अधिकांश वस्तुओं के लिए वहां पहले ही बने हुए और काम कर रहे सप्लाई चेन्स हैं. चीन के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने का एक तरीका सप्लाई चेन रेसीलिएंस इनिशिएटिव (जिसमें जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल हैं)
और चीन प्लस वन (केवल चीन में निवेश ना करने की कारोबारी रणनीति ) पर ध्यान केंद्रित करना है, हालांकि दोनों से ही भारत को वांछित नतीजे नहीं मिले हैं.
चीन के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने का एक अच्छा तरीका ये हो सकता है कि एक नए भारत-चीन व्यापार और निवेश समझौते पर बातचीत हो. इसमें न केवल वस्तुएं शामिल हों बल्कि निवेश भी शामिल होना चाहिए.
सर्विसेज़ में व्यापार के लिए बाज़ार तक पहुंच में वृद्धि भी शामिल होनी चाहिए. इस तरह के समझौते से ये समझने में मदद मिलेगी कि दोनों देश एक-दूसरे को टैरिफ़ में कितनी रियायत दे सकते हैं.
हमने देखा है कि आरसीईपी एग्रीमेंट (द रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) में यह एक बड़ी बाधा थी क्योंकि भारतीय उद्योग का ये मानना था. कि भारत के आरसीईपी में शामिल होने से चीन से आयात बहुत अधिक बढ़ जायेगा.
हम सभी जानते हैं कि आरसीईपी ब्लॉक आपस में व्यापार की जाने वाली 90% से अधिक वस्तुओं पर टैरिफ़ को धीरे-धीरे ख़त्म करना चाहता है जिसमें नवंबर 2019 में भारत के वार्ता से बाहर होने के बाद अब 15 देश ही शामिल हैं.
ऐसे में यदि भारत और चीन एक नए समझौते पर बातचीत करते हैं तो भारत अपने आर्थिक हितों के लिए अच्छी तरह से नेगोशिएट कर सकता है और चीन में भारतीय निर्यात बढ़ाने के के लिए बाजार में बेहतर पहुंच तलाश सकता है.
इस तरह भारत, चीन के साथ व्यापार असंतुलन को कम कर सकता है. इसके अलावा, चीन से “वैध” एफ़डीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) प्रवाह को व्यापार असंतुलन कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
साथ ही, समझौते में सर्विसेज़ को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि भारत चीन में सर्विसेज़ के क्षेत्र में बाजार तक बेहतर पहुंच हासिल कर सके. हालांकि भारत द्वारा मांगा गया यह सर्विसेज़ सौदा आरसीईपी में बातचीत के दौरान सफल नहीं हुआ,
लेकिन चीन के साथ द्विपक्षीय स्तर पर इसे संभावित रूप से अच्छी तरह से किया जा सकता है. भारत-चीन व्यापार और निवेश समझौता अगर होता है तो बड़ी बात होगी. इसमें कई स्तरों की बातचीत शामिल होगी और इसमें बहुत समय भी लगेगा.
फिर भी इसमें भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार असंतुलन को युक्तिसंगत बनाने की दिशा में अपार योगदान देने की क्षमता होगी. इसके अलावा, यह भारत के लिए आने वाले समय में आरसीईपी में शामिल होने की संभावनाएं भी बनाएगा.
इस प्रकार भारत और चीन दोनों के लिए यह फ़ायदेमंद होगा. हाल ही में हुआ भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार समझौता, संभावित भारत-चीन सौदे के लिए भी मिसाल कायम करता है.
चीन और भारत के बीच अभी भी सीमा पर तनाव बना हुआ है. हालांकि द्विपक्षीय व्यापार उम्मीद के मुताबिक़ आगे बढ़ रहा है. यहाँ तीन बातें अहम हैं. सबसे पहले, चीन और भारत का व्यापार संबंध भू-राजनीतिक परिस्थितियों की बजाय आर्थिक ज़रूरतों पर आधारित हैं.
जब तक दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापार सहयोग उनके राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है, कोई भी आंतरिक और बाहरी ताक़त इसके विकास को आसानी से रोक नहीं सकती हैं. दूसरे, सीमा का मुद्दा चीन-भारत संबंधों का एक छोटा-सा हिस्सा है.
जब संयुक्त प्रयासों से सीमा की स्थिति को नियंत्रित किया जाता है तो द्विपक्षीय संबंध पूरी तरह से ख़राब नहीं होंगे. चीन ने बार-बार इसी बात पर ज़ोर दिया है. तीसरे, चीन और भारत अर्थव्यवस्था और व्यापार के क्षेत्र में एक-दूसरे के पूरक हैं
जो कि व्यापार संबंधों की उनकी पारस्परिक निर्भरता और लचीलेपन को दर्शाते हैं. संक्षेप में, दोनों पक्षों को ताज़ा व्यापार आंकड़ों से प्रोत्साहित और ख़ुश होना चाहिए और उन्हें चिंता करने की बजाय भरोसे से व्यवहार करना चाहिए.
यूक्रेन युद्ध से वैश्विक सप्लाई चेन को एक गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है, विशेष रूप से ऊर्जा, उर्वरक और खाद्य पदार्थों के लिए. आर्थिक और सामाजिक विकास पर इसका प्रभाव स्थायी, अहम और काफ़ी विनाशकारी हो सकता है. दुर्भाग्य से यूक्रेन युद्ध के प्रति अमेरिका,
नेटो और यूरोपीय संघ का दृष्टिकोण शांतिपूर्ण समाधान का रास्ता नहीं दिखा रहा. यह वैश्विक सप्लाई चेन संकट को और गहरा करेगा और चीन और भारत दोनों के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं होगा.
यह देखते हुए कि रूस मुख्य वस्तु आपूर्तिकर्ताओं में से एक है, रूस के साथ घनिष्ठ व्यापार संबंध स्थापित करना निश्चित रूप से चीन और भारत के लिए सही विकल्प है.
पश्चिम के निराधार आरोपों और बढ़ते दबाव के बावजूद, चीन और भारत को अपने राष्ट्रीय हित में काम करना चाहिए. चीन और भारत दोनों उभरते हुए विकासशील देश हैं जिनके हित समान हैं.
चाहे वो आर्थिक और सामाजिक विकास के हित हों, लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना हो या फिर राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाना हो – हमारे हित समान हैं.
अगर चीन और भारत एक-दूसरे के ख़िलाफ़ काम करते हैं तो ये लक्ष्य केवल एक सपना रह जाएगा. इसलिए, हमारे पास द्विपक्षीय व्यापार के विकास को रोकने का कोई कारण नहीं है.
चीन और भारत जैसे विशाल विकासशील देशों के लिए 130 अरब डॉलर का व्यापार बहुत अधिक नहीं है, बल्कि बहुत कम है. विभिन्न अंदरूनी और बाहरी बाधाओं के कारण,
द्विपक्षीय आर्थिक और व्यापारिक संबंधों की संभावनाओं का पूरी तरह से दोहन नहीं हो पा रहा है. यह मुख्य रूप दोनों देशों की लीडरशिप पर निर्भर करता है कि वो वो इस वास्तविकता को समझने के बाद पूरी क्षमता का लाभ उठाने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति रखते हैं या नहीं.