-सरकार द्वारा विद्यांजलि 2.0 कार्यक्रम आरंभ, कलेक्टर ने स्वयंसेवी संस्थाओं से की स्कूल शिक्षा को मजबूत करने में भागीदारी देने की अपील
दुर्ग / [न्यूज़ टी 20] जिले में सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से स्कूली शिक्षा को मजबूत किया जाएगा। शासकीय स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने, पढ़ाई की गुणवत्ता बढ़ाने तथा नवाचार के लिए व्यक्तिगत स्तर पर अथवा स्वयंसेवी संगठन आगे आकर कार्य कर सकते हैं। यह विद्यांजलि 2.0 कार्यक्रम से संभव हो सकेगा।
कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने यह बात विद्यांजलि 2.0 कार्यक्रम की समीक्षा बैठक में कही। यह कार्यक्रम सामुदायिक संस्थाओं और शिक्षा के क्षेत्र में रुचि लेने वाले लोगों की भागीदारी से चलाया जाना है। कलेक्टर ने इस मौके पर कहा कि आने वाली पीढ़ी को मजबूत करने शिक्षा की ठोस नींव रखनी जरूरी है।
यह बेहद महत्वपूर्ण कार्यक्रम है और सामुदायिक भागीदारी इसे अत्याधिक सशक्त करेगी। संस्थाएं स्कूलों में अधोसंरचना बढ़ाने कई तरह से मदद कर सकती हैं। उदाहरण के लिए कोई संस्था चाहे कि अच्छी किताबें स्कूल की लाइब्रेरी में हो, तो ऐसी किताबें स्कूलों को उपलब्ध कराई जा सकती हैं।
यदि किसी स्कूल में फर्नीचर की उपलब्धता की जरूरत है तो संस्था फर्नीचर उपलब्ध करा सकती हैं। व्यक्तिगत स्तर पर भी इसमें काफी ठोस कार्य किया जा सकता है। जो लोग शैक्षणिक अभिरुचि रखते हैं और बच्चों को इसके लिए तैयार करने की क्षमता रखते हैं वे इसमें सहयोग दे सकते हैं।
ऐसा करके वे विशेष रूप से पढ़ाई में कमजोर बच्चों की मदद कर सकते हैं। कलेक्टर ने कहा कि मैंने देखा है कि कई बार सेवानिवृत्त शिक्षक जिन्होंने जीवन भर रुचि से बच्चों को पढ़ाया है ऊर्जा से भरे रहते हैं और आगे भी अपना कुछ समय विद्यार्थियों को देना चाहते हैं। ऐसे लोग भी अपनी सेवा का निःशुल्क लाभ दे सकते हैं।
डीईओ अभय जायसवाल ने इस अवसर पर संस्थाओं एवं उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से आगे आकर विद्यांजलि कार्यक्रम में हिस्सा लेने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि विद्या दान सर्वाेच्च दान है। हम शिक्षा का स्तर मजबूत कर देश के विकास में अहम भागीदारी निभा सकते हैं।
आने वाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए शिक्षा में निवेश सबसे जरूरी है। सामुदायिक संस्थाएं इस दिशा में जितना योगदान करेंगी, शिक्षा व्यवस्था उतनी ही मजबूत होगी। रिनोवेशन अथवा अतिरिक्त सुविधाएं जुटाने में कर सकते हैं सहयोग- स्कूलों में टूटफूट लगी रहती है। हर संस्था कुछ स्कूलों के कार्यों की देखरेख कर सकती है।
इसमें लगने वाली सुविधाएं जुटा सकती है। कई बार कमजोर बच्चों को अलग से ट्यूशन की जरूरत होती है। इसके लिए व्यवस्था कराई जा सकती है। व्यावसायिक शिक्षा जो बच्चों को आने वाले समय के लिए कौशल के रूप में मजबूती दे, उसकी तैयारी भी कराई जा सकती है।
बच्चों के पोषण का इंतजाम भी- संस्था चाहे तो बच्चों के पोषण की जिम्मेदारी भी ले सकती है। इसका मतलब यह है कि बच्चों के लिए उपयोगी पौष्टिक पदार्थ उपलब्ध कराना। पौष्टिक पदार्थ से बच्चों के शारीरिक विकास को मजबूती मिलेगी और इससे उनका मानसिक विकास भी तेजी से हो पाएगा।
थियेटर और कहानीकार के रूप में तैयार करना- इसमें बच्चों के सांस्कृतिक विकास की जिम्मेदारी भी शामिल है। मसलन बच्चों को थियेटर की जानकारी दी जा सकती है। उन्हें एक्ट करना सिखाया जा सकता है ताकि बच्चों का समग्र विकास हो सके। बच्चों को ग्राफिक्स निर्माण के माध्यम से स्टोरी टेलिंग सिखाई जा सकती है।
कठपुतली आदि के शो भी किये जा सकते हैं। खेलों की सामग्री भी उपलब्ध कराई जा सकती है। योगदान मौद्रिक सहायता के रूप में नहीं होगा- बैठक में स्पष्ट किया गया कि संस्थाओं द्वारा जो भी योगदान किया जाएगा वो मौद्रिक सहायता के रूप में नहीं होगा। इन्हें सामग्री, उपकरण आदि दिये जा सकेंगे।