भिलाई [न्यूज़ टी 20]यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद यूरोप के देशों को ऐसा लगा कि नई दिल्ली मॉस्को को लेकर सख्त कदम उठाने को मजबूर हो सकता है लेकिन भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया और रूस के साथ ही पश्चिमी देशों के साथ भी संबंध सामान्य रखे। यूक्रेन

युद्ध को लेकर भारत की स्थिति को मजबूरी के बजाए कई एक्सपर्ट्स ‘स्वीट स्पॉट’ बता रहे हैं क्योंकि दुनिया भर के देश नई दिल्ली को अपने कैंप में शामिल करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

भारत के लिए व्यस्त रहा मार्च और अप्रैल

मार्च और अप्रैल महीने में भारत केंद्रित राजनयिक गतिविधियों की झड़ी लगी रही। ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन, जापान के पीएम किशिदा फुमियो, यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव नई दिल्ली पहुंचे।

इसके साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ वर्चुअल बैठक की। इतना ही नहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने फ्लैगशिप जियोपॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया जिसमें दुनिया भर के टॉप डिप्लोमैट पहुंचे।

पीएम मोदी जर्मनी के नए चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़, फिर से चुने गए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और डेनमार्क की पीएम मेट्टे फ्रेडेरिकसेन से मुलाकात की और नॉर्डिक देशों के प्रमुखों से भी मिले।

इनमें से कई कार्यक्रमों की योजना यूक्रेन पर रूसी हमले से पहले बनाई गई थी लेकिन उसके बावजूद भी यह कार्यक्रम हुए। बातचीत के बाद नेताओं ने जो भी कुछ कहा उससे साफ होता है कि ये सिर्फ शिष्टाचार भेंट से अधिक थे।

तो क्या भारत वाकई ‘स्वीट-स्पॉट’ की स्थिति में है?

बेंजामिन पार्किन फाइनेंशियल टाइम्स के लिए दक्षिण एशिया का कामकाज देखते हैं। उन्होंने लिखा है कि इमैनुएल मैक्रों ने गले लगाकर पीएम मोदी का स्वागत किया। जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ ने अपने ‘सुपर पार्टनर’ का स्वागत किया।

ब्रिटेन के पीएम जॉनसन ने अपने खास दोस्त की जमकर तारीफ की थी। ऐसे में यह साफ होता है कि ये सभी देश रूस और अमेरिका के कारण भारत से अपने संबंधों पर असर नहीं पड़ना देना चाहते हैं और भारत भी यही चाहता है।

लेकिन यूरोप के नेता अमेरिकी इच्छा के बावजूद नई दिल्ली के साथ क्यों नजर आ रहे हैं?

स्क्रॉल की एक रिपोर्ट बताती है कि इसके दो मुख्य कारण है। पहला ये कि भारत की प्रासंगिकता और गुटनिरपेक्ष और रणनीतिक स्वायत्तता की स्थिति। और दूसरी ये कि ये देश मानते हैं कि रूस मौजूदा वक्त में यूरोप के लिए खतरा हो सकता है

पर बहुत असरदार नहीं लेकिन लंबी अवधि की चुनौती चीन से आने वाली है। और यह प्रमुख कारण है कि भारत एक ‘स्वीट-स्पॉट’ में है। हडसन इंस्टीट्यूट रिसर्च फेलो अपर्णा पांडे एक इंटरव्यू में बताती हैं कि सालों की सावधानीपूर्वक कूटनीति,

और जियोपॉलिटिकल बदलावों के कारण भारत आज एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। अमेरिका और यूरोप के देश एशिया में भारत को चीन के समकक्ष देखना चाहते हैं ताकि बीजिंग का असर कम हो सके। ऐसे में वह भारत की स्थिति को समझ रहे हैं।

ऐसे में बढ़ सकती है भारत की दिक्कतें

कुछ एक्सपर्ट्स ने यह भी बताया है कि पश्चिमी देशों के लिए एशिया में पहली पसंद भारत है, चीन नहीं। लेकिन भारत इस स्वीट-स्पॉट की पोजिशन में कब तक बना रहेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि अगले दो दशकों में क्या हो सकता है।

ऐसा भी हो सकता है कि भारत के लिए दिक्कतें बढ़ सकती हैं। भारत अगर अगले कुछ सालों में खुद को चीन के विकल्प के तौर पर स्थापित करता है तो भारत के लिए बढ़िया रह सकता है लेकिन अगर भारत के रूस और अमेरिका के साथ रिश्ते सामान्य नहीं रहते हैं तो भारत के लिए दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

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