भिलाई [न्यूज़ टी 20] युद्ध में रूस के सैनिक एक-एक कर यूक्रेन के हर शहर को श्मशान बनाने में लगे हुए हैं। इस समय यूक्रेन के मारियुपोल शहर को रूसी सेना ने घेर लिया है। लगातार बमबारी के बीच शहर का बाकी दुनिया से संपर्क टूट गया है। इस बीच शहर में फंसे अपने माता-पिता को ढूंढने के लिए 23 साल की यूक्रेनी लड़की ने एक ऐसा कदम उठाया, जो शायद हर किसी के बस की बात न हो।

अनस्तासिया पावलोवा नाम की यह लड़की अपने माता-पिता को मौत के मुंह से बाहर निकालने के लिए अपने पार्टनर से साथ रेस्क्यू ऑपरेशन पर निकल पड़ी। रूसी सेना की गोलियों और बम का सामना करने के लिए इस लड़की के पास सिर्फ हौसला और उम्मीद ही थी।

जिसके दम पर वह 260 किलोमीटर का सफर गाड़ी से तय कर अपने माता को बचाने चली जाती है। वह भी तब जब उसे यह खबर भी नहीं कि उसके माता-पिता जिंदा भी है या नहीं।

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पांच हफ्ते पहले हुई थी बात, मां ने कहा था ‘यहां मत आना बेटी’

खार्कीव में बमबारी के बाद अनस्तासिया पावलोवा अपने पार्टनर अबाकेलिया के साथ साउथ यूक्रेन में सिटी ऑफ दनीप्रो में जाकर बस गई थी। मगर, जैसे ही मारियुपोल शहर में रूसी सेना ने हमला शुरू किया, अनास्तसिया को माता-पिता की चिंता सताने लगी।

उनके माता-पिता मारियुपोल के बाहरी क्षेत्र में रहते हैं। उनकी मां ओकसाना एक धार्मिक शिक्षिका हैं। मार्च में उन्होंने अपने बेटी से फोन पर बात की थी। उन्होंने बेटी से कहा था कि ‘तुम यहां मन आना बेटी’। इस बातचीत को पांच हफ्ते बीत चुके थे।

यही अनास्तसिया की अपने माता-पिता से आखिरी बातचीत थी। इसके बाद अनास्तसिया ने अपने माता-पिता को बचाने का फैसला लिया। उसने जंग में लोगों की मदद करने वाली एक संस्था से एक वैन और एक ड्राइवर को साथ लिया।

मारियुपोल के अंतिम सुरक्षित छोर शहर ज़ापोरीज्ज्या से अपना सफर शुरू किया। 260 किलोमीटर का सफर तय कर अपने माता-पिता के पास पहुंची।

हर कदम पर लग रहा था गोली लगने और रेप होने का डर

अपने इस सफर के बारे में बात करते हुए अनास्तसिया ने एक इंटरव्यू में कहा कि उस समय कोई भी ड्राइवर मारियुपोल जाने को तैयार नहीं हो रहा था। मगर, मुझे बहुत ही बहादुर ड्राइवर मिला था।

इसके बाद भी हमें हर कदम पर यही डर सता रहा था कि कहीं दूसरे ही पल हम रूसी बस या गोली का निशाना न बन जाए या फिर रूसी सैनिक मेरा रेप न कर दे।

इस पूरे सफर में अनास्तसिया को एक और उलझन सता रही थी। उन्हें इस बात की बिलकुल भी जानकारी नहीं थी कि उनके माता-पिता अभी तक जिंदा है भी या नहीं।

चेक-पॉइंट पर मिलिट्री ने सिर पर तान दी थी बंदूक

मारियुपोल जाने के रास्ते में अनास्तसिया कई रूसी चेक-पॉइंट से होकर गुजरीं थी। जैसे – जैसे अपनी मंजिल के करीब पहुंचती, गार्ड की संख्या बढ़ती जाती। इसी तरह एक चेक-पॉइंट पर उनके सिर पर मिलिट्री ने मशीन गन तान दी थी।

वह पूछ रहे थे कि तुम्हें मारियुपोल क्यों जाना है। तब अनास्तसिया ने कहा कि वह अपने माता-पिता की मदद करना चाहती है। अपने पिता के लिए दवाएं साथ लाई है। यह बताते हुए अनास्तसिया बुरी तरह से कांप रही थी।

9 घंटे के रास्ते में लग रहा था अब हो जाएगा दुनिया का अंत

अपने 9 घंटे के सफर में अनास्तसिया ने दुनिया के अंत को महसूस किया है। वह बताती हैं कि रास्ते की शुरुआत में उन्हें कई श्मशान दिखे। हर जगह मौत का मंजर था। कारें जल रही थी, सड़कों पर टैंक खड़े हुए थे। घरों में छेद हो रखे थे, बिल्डिंग काली रंग में टूटी हुई पड़ी थी।

सड़कों पर जो लोग मिल रहे थे वह गंदे कपड़े पहने हुए थे। उनकी आंखें खाली थी और हमारी गाड़ी का पीछा कर रहीं थी। उन लोगों से सब कुछ छिन चुका था। किसी के पति-पत्नी मर चुके थे तो किसी से बच्चे- रिश्तेदार। वह बताती हैं कि अपनी आंखों से यह बर्बादी का मंजर देख लग रहा था कि यही दुनिया का अंत है।

माता-पिता जमीन पर गंदी चादर ओढ़कर लेटे थे

अनास्तसिया जब अपने माता-पिता से मिली तो वह जमीन पर एक गंदी चादर ओढ़कर सो रहे थे। उनका घर धमाकों के कारण हिल रहा था। ऐसी मुश्किल घड़ी में पड़ोसी एक-दूसरे की मदद को आगे आ रहे थे। उनके पड़ोसी ने कुछ लकड़ियां काट रखी थी और स्टोव पर घर के बाहर ही खाना पकाया जा रहा था।

किसी के पास भी खाने को कुछ खास नहीं बचा था। अनास्तसिया के पेरेंट्स के पास ही थोड़ा अनाज बचा था जिसे पका रहे थे। अनास्तसिया ने अपने पेरेंट्स को वहां से सुरक्षित निकाला और उन्हें पश्चिमी यूक्रेन के एक शहर में छोड़ आई।

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