भिलाई [न्यूज़ टी 20] गर्मी की शुरुआत से पहले ही छत्तीसगढ़ के जंगल धधकने लगे हैं। इस साल अब तक 13943 जगहों पर आग लग चुकी है। यह आंकड़ा फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के रिपोर्ट से सामने आया है।
अलग-अलग कारणों से लगने वाली इस आग की तीव्रता बहुत ज्यादा है। यह इसी से समझा जा सकता है कि अकेले अप्रैल के पांच दिनों में 2273 जगहों पर आग लग चुकी है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह आग खुद से नहीं लग रही है,
इसकी प्रमुख वजह है जंगलों में महुआ बीनने वालों का बीड़ी, सिगरेट पीकर फेंकना। इसके अलावा जंगली मशरूम का उत्पादन करने वाले ग्रामीण जंगलों में आग लगा देते हैं। उनका मानना है कि आग से जंगली मशरूम का उत्पादन बढ़ता है, जबकि यह अफवाह है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया जंगलों में लगी आग पर नजर रखने और निपटने के लिए सैटेलाइट से इसकी रिपोर्ट लेता है। संकट यह भी है कि यह रिपोर्ट आग लगने के चार से छह घंटे बाद दर्ज होती है।
इससे राहत के उपाय भी करना हो तो आग बढ़ जाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि आग से अब तक 70 हजार हेक्टेयर जंगल नष्ट हो चुका है, कुछ जगहों पर सिर्फ बड़े पेड़ ही बच सके हैं।
जानिए, विभाग को आग का पता कैसे चलता है
आगजनी व हॉट स्पॉट की रियल टाइम रिपोर्ट दो तरह से फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया को मिलती है। यहां मॉड्यूल सैटेलाइट और वीआईआईआरएस (विजिबल इंफ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूइट) सैटेलाइट से रिपोर्ट मिलती है।
वीआईआईआरएस सैटेलाइट अच्छी क्वालिटी रेजोल्यूशन के साथ रिपोर्ट देते हैं। कैमरे छह घंटे में धरती से गुजरते हैं। जब आग लगने से जंगल में तापमान बढ़ता है तो यह अलर्ट के रूप में सैटेलाइट में दर्ज हो जाता है।
रिपोर्ट मोबाइल मैसेज के माध्यम से 1.20 लाख अफसरों तक भेजी जाती है। सैटेलाइट की एमओडीआईएस (मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रो-रेडियोमीटर) सेंसर डेटा तकनीक का उपयोग करके आग का पता लगता है।
रिमोट सेंसिंग व जीआईएस उपकरण रोकथाम की मदद के लिए लगे हैं। वन सूची रिकॉर्ड के आधार पर, भारत में 54.4% वन कभी-कभार व 7.49% से मध्यम रूप से और 2.405 उच्च स्तर पर आग की चपेट में आ चुके हैं।
भारत के 35.71% वन अभी तक आग के संपर्क में नहीं आए हैं।
राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यों में इतनी जगह लग चुकी आग
- गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व 1296
- इंद्रावती टाइगर रिजर्व 1373
- तमोर पिंगला अभयारण्य 551
जंगल में आग की रिपोर्ट इसरो और नासा से सैटेलाइट के माध्यम से डाउनलोड करते हैं। सैटेलाइट विदेशी यूरोपियन देशों की हैं। जब हमें रिपोर्ट मिलती है तो उसे हम वन विभाग को ईमेल व मैसेज से भेजते हैं। इसमें वक्त लग जाता है।
सुनील चंद्रा, डिप्टी डायरेक्टर, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया
सैटेलाइट से कम्प्यूटर में रिपोर्ट प्रोसेस होने और इसके बाद सभी अफसरों के मोबाइल में रिपोर्ट जाने में समय लगता है। वैसे हम बेस्ट टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहें हैं ताकि आगजनी की घटनाओं पर नियंत्रण पाया जा सके।
प्रेम कुमार, सचिव, वन विभाग, महानदी भवन, रायपुर