
नई दिल्ली। जब भी कोई लड़का घर से बाहर निकलता है, तो अपनी शर्ट या पैंट की जेब में रुमाल, मोबाइल, चाबी, वॉलेट, ईयरपॉड जैसी चीजें आसानी से रख लेता है। लेकिन लड़कियों को ये सुविधा क्यों नहीं मिलती? उन्हें आज भी छोटी-छोटी चीजें रखने के लिए पर्स या बैग का सहारा लेना पड़ता है। क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाओं के कपड़ों में जेब क्यों नहीं होती?
क्या सिर्फ फैशन है वजह? असली कहानी है कुछ और

सच ये है कि ये महज फैशन का हिस्सा नहीं बल्कि सदियों पुरानी पुरुषवादी सोच (पितृसत्ता) का परिणाम है।
महिलाओं के कपड़े हमेशा उनके शरीर की बनावट और ‘खूबसूरती’ के हिसाब से डिजाइन किए गए — ताकि वो ‘स्लिम और सुंदर’ दिखें। जेब अगर कपड़ों में जोड़ दी जाती, तो शरीर का शेप बदल जाता, जिससे ‘फिगर’ पर असर पड़ता।
यही वजह है कि डिज़ाइनर्स ने महिलाओं की शर्ट, पैंट और जीन्स में जेब ही नहीं दी।
इतिहास में कब शुरू हुआ ये भेदभाव?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 400 साल पहले तक पुरुष और महिला दोनों ही एक तरह के स्लिंग बैग इस्तेमाल करते थे। फिर 17वीं सदी में पुरुषों के कपड़ों में स्थायी जेबें जोड़ी जाने लगीं।
वहीं महिलाओं को बाहरी पर्स या बैग तक ही सीमित रखा गया।
महिलाओं को ‘कमजोर’ बनाए रखने का था मकसद?
1800 के दौर में महिलाओं की कपड़ों में जानबूझकर जेबें नहीं बनाई जाती थीं, ताकि वे ज्यादा स्वतंत्र न हो सकें।
अगर जेब होती, तो महिलाएं बिना किसी डर के जरूरी चीजें अपने पास रख सकती थीं और स्वतंत्र रूप से कहीं भी आ-जा सकती थीं।
पर पुरुष-प्रधान समाज को ये मंजूर नहीं था।
आज भी वही डिजाइन चल रहा है, लेकिन बदलाव की शुरुआत हो चुकी है
आज के समय में भी अधिकांश ब्रांड्स और डिजाइनर महिलाओं के कपड़ों में जेब नहीं बनाते।
शर्ट पर जेब न बनाने का तर्क ये दिया जाता है कि इससे छाती का आकार बेडौल दिखेगा, इसलिए उसे ‘फैशन के खिलाफ’ माना जाता है।
हालांकि, अब धीरे-धीरे ये सोच बदल रही है और कुछ ब्रांड्स महिलाओं की जरूरतों को समझते हुए फंक्शनल पॉकेट्स देने लगे हैं।
