Pasar Devi Mandir: भारत में देवी के अनेक मंदिर हैं. कई मंदिरों की मान्यताएं तो आज भी भक्तों को हैरान करती हैं. लेकिन, मध्य प्रदेश के शिवपुरी का एक देवी मंदिर बेहद अनोखा है. यहां जैसी देवी प्रतिमा और मान्यता शायद ही कहीं और देखने-सुनने को मिले. शिवपुरी की नरवर तहसील में स्थित माता पसर देवी का स्वरूप और उनसे जुड़ी मान्यताएं अजीब हैं. यह वह देवी हैं, जिनकी पूजा लेटी हुई अवस्था में होती है. ऐसी प्रतिमा दुर्लभ है.
नरवर का ऐतिहासिक किला, जो विंध्य पर्वतमाला की पहाड़ियों पर लगभग 500 फीट ऊंचाई पर स्थित है, अपने भीतर सदियों पुरानी गाथाओं को समेटे है. इसी किले के मुख्य द्वार के समीप माता पसर देवी का मंदिर स्थित है. मान्यता है कि यह देवी राजा नल की कुलदेवी थीं. राजा नल को महाभारत काल का प्रतापी शासक माना जाता है, जिनका नाम दमयंती के साथ जुड़ी अमर प्रेम कथा के कारण भी प्रचलित है.
ये है प्रचलित कथा
कहानी के अनुसार, एक समय राजा नल जुए में अपना समस्त राज्य हार बैठे थे. जब वे किला छोड़कर जाने को विवश हुए, तब राज्य के खजाने की सुरक्षा का प्रश्न खड़ा हुआ. उसी क्षण उनकी कुलदेवी ने किले के द्वार पर आकर स्वयं को फैला लिया और खजाने के मुख पर लेट गईं. देवी का यह त्याग और संरक्षण भाव इतना अद्भुत था कि तभी से उन्हें “पसर देवी” कहा जाने लगा. यह कथा आज भी स्थानीय जनमानस में गहरी आस्था के साथ प्रचलित है.
भुजाओं के नीचे आज भी गड्ढा
माता पसर देवी की प्रतिमा लगभग बारह फीट लंबी और आठ फीट चौड़ी है. प्रतिमा के दोनों भुजाओं के नीचे गहरा गड्ढा दिखाई देता है, जिसमें सिक्का डालने पर धातु से टकराने जैसी आवाज आती है. श्रद्धालु इसे देवी द्वारा संरक्षित धन-संपदा से जोड़कर देखते हैं. इसी कारण देवी को खजाने की रक्षक के रूप में आज भी पूजा जाता है.
क्यों पड़ा भुजंगबलया नाम?
माता पसर देवी को भुजंगबलया के नाम से भी जाना जाता है. प्रतिमा पर शेषनाग लिपटे हुए दर्शाए गए हैं, जो शक्ति और संरक्षण के प्रतीक माने जाते हैं. नागों से आवृत यह स्वरूप देवी को तांत्रिक शक्ति से भी जोड़ता है. कई विद्वानों का मानना है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल में तंत्र-मंत्र और साधना का प्रमुख केंद्र रहा है. नरवर को आज भी “तंत्र विद्या की नगरी” कहा जाता है.
पाकिस्तान के इस मंदिर से तुलना
देवी के इस लेटे स्वरूप की तुलना कई लोग पाकिस्तान स्थित हिंगलाज माता से करते हैं, जिनकी प्रतिमा भी शयन अवस्था में है. हालांकि, माता पसर देवी का स्वरूप, स्थान और उनसे जुड़ी कथा उन्हें पूर्णतः अलग पहचान प्रदान करती है. भक्त उन्हें फणीन्द्र भोग शयना, फणिमंडल मंडिता, नागराजिती, गरुड़ारूढ़ा, नारसिंही और कच्छपी जैसे अनेक नामों से स्मरण करते हैं. भागवत पुराण में भी ऐसे देवी स्वरूपों का उल्लेख मिलता है.
ये भी एक विशेषता
मंदिर की एक और विशेषता ये कि यहां पूजा-अर्चना के लिए जल समीप स्थित कटोरा तालाब से लिया जाता है. सदियों से यही परंपरा चली आ रही है. कटोरा ताल नरवर किले के भीतर स्थित एक प्राचीन जलस्रोत है, जिसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व दोनों ही दृष्टियों से विशेष स्थान है. देवी की सेवा में प्रयुक्त जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है.
कई राज परिवारों की कुलदेवी
माता पसर देवी को कई राजपरिवारों की कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है, जिनमें कच्छप वंश प्रमुख है. आज भी इस वंश के वंशज परिवार सहित देवी के दर्शन के लिए नरवर आते हैं. चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान यहां विशाल जनसमूह उमड़ पड़ता है. श्रद्धालु दूर-दूर से आकर माता के दर्शन करते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं.
प्रतिमा में कई रहस्य!
पं. श्री शशांक देव जी महाराज ने लोकल 18 को बताया कि नरवर के राजा नल की साक्षात कुलदेवी माता पसर देवी हैं. जब राजा नल अपना राजपाट छोड़कर नरवर से प्रस्थान कर रहे थे, उसी समय माता पसर देवी ने उन्हें वरदान दिया था कि यदि उनके वंश का कोई भी सदस्य पुनः लौटकर नरवर आएगा, तो माता स्वयं प्रकट होंगी. माता पसर देवी की प्रतिमा आज भी अनेक रहस्यों को समेटे है