
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कई ऐसी जनजातियां हैं, जो अपने रहस्यमय जीवन की वजह से चर्चा में रहती हैं. कुछ लोग चींटी की चटनी खाते हैं तो कुछ लोग कच्चा मांस चबा जाते हैं. कई जनजातियों के लोग तो इंसानी मीट को भी शौक से खाते हैं. लेकिन कई ऐसी जनजातियां भी हैं, जो सामान्य दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग हैं. बाहरी दुनिया के लोग न तो उनके बारे में और ना ही वे बाहरी दुनिया के लोगों के बारे में ज़्यादा जानते हैं. ऐसी ही एक अनोखी जनजाति है बाजाऊ जनजाति.

ये जनजातियां इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस के समुद्री इलाकों में रहती हैं. “समुद्री जिप्सी” और “समुद्री खानाबदोश” के नाम से मशहूर इन जनजातियों के लिए आजीविका और घर का एकमात्र स्रोत समुद्र ही है. वे कभी ज़मीन पर नहीं बसते, बल्कि वे समुद्र में घर बनाते हैं या नावों को घरों में बदल देते हैं. जब उन्हें दूसरी चीजों की जरूरत होती है, तभी वे पकड़ी गई मछलियों को बेचने के लिए जमीन पर जाते हैं. मजबूरी को छोड़ दिया जाते तो वो शायद ही कभी जमीन पर जाते हैं.


हालांकि, समुद्र ही उनकी आजीविका है, लेकिन वे एक जगह पर नहीं रहते. उन्हें समुद्री खानाबदोश इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वे मछली पकड़ने के लिए इधर-उधर घूमते हैं. बाजाऊ जनजाति की उत्पत्ति दक्षिणी फिलीपींस के सुलु द्वीप से हुई है. अपने खानाबदोश समुद्री जीवन के कारण, यह जनजाति मलेशिया, ब्रुनेई और इंडोनेशिया के समुद्री जल में चली गई, जो पूर्वी इंडोनेशिया में मालुकु, राजा अम्पैट, सुलावेसी और कालीमंतन के उत्तरी भाग के समुद्रों में रहती थी.

बाजाऊ लोग अपनी अद्भुत तैराकी और गोताखोरी कौशल के लिए जाने जाते हैं. चूंकि उनका अधिकांश जीवन समुद्र के इर्द-गिर्द ही व्यतीत होता है, इसलिए बाजाऊ लोगों में तैराकी का असाधारण कौशल होता है. वे गहरे समुद्र में सांस रोककर गोता लगाने में माहिर हैं. बिना किसी आधुनिक उपकरण के वे गहरे समुद्र में गोता लगा सकते हैं और 5 से 13 मिनट तक अपनी सांस रोक सकते हैं. यही कारण है कि उन्हें जलीय इंसान भी कहा जाता है.

एक मेडिकल स्टडी में पाया गया है कि इन लोगों की तिल्ली सामान्य लोगों की तुलना में थोड़ी बड़ी होती है, जो उन्हें तैरते समय पानी के अंदर लंबे समय तक अपनी सांस रोकने में मदद करती है. इसी स्टडी से पता चलता है कि यह आनुवंशिक भिन्नता के कारण संभव है. इतना ही नहीं, ये जमीन पर आने से डरते भी हैं. कभी किसी चीज की जरूरत हुई, तो ही जमीन पर जाते हैं.

बाजाऊ लोग समुद्र में 30 मीटर की गहराई पर भी पारंपरिक भालों का उपयोग करके मछली और ऑक्टोपस जैसे समुद्री जीवों का शिकार करते हैं. यही कारण है कि बाजाऊ के बच्चे छोटी उम्र से ही तैरना और गोता लगाना सीखते हैं, क्योंकि यह उनके जीवन का अभिन्न अंग है. इस प्रकार समुद्र बाजाऊ लोगों की मातृभूमि है.

बाजाऊ जनजाति के अधिकांश लोग मुसलमान हैं. वे पीढ़ियों से इस धर्म को सीखते और उसका पालन करते आ रहे हैं, जबसे उनके पूर्वज मलेशिया और ब्रुनेई के समुद्री क्षेत्रों की यात्रा करते थे. हालांकि, लगभग 95% बाजाऊ लोग मुसलमान हैं, फिर भी उनके कुछ विश्वास और अनुष्ठान परंपराएं हैं जिन्हें उन्होंने नहीं छोड़ा है.

समुद्र में जन्मी और पली-बढ़ी बाजाऊ जनजाति शिक्षा के प्रति बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं देती. नतीजतन, उनमें से ज़्यादातर निरक्षर हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, इससे भी ज़्यादा दुखद बात यह है कि उन्हें अपनी उम्र का पता नहीं है. इसके अलावा यह और भी दुखद है कि किसी भी देश ने इन आदिवासियों को अपना नहीं माना है.
