पुरातत्व विशेषज्ञों को कई बार हैरान करने वाली चीजें बहुत ही अजीब जगह पर मिल जाती हैं. ऐसा ही कुछ जर्मनी में देखने को मिला, जहां  बर्लिन के बीच में द्वितीय विश्व युद्ध के मलबे के बीच दबी सदियों पुरानी समुराई तलवार की खोज हुई जो रहस्य से भरी हुई है. यह जंग लगी तलवार 16 सदी की बनी बताई जा रही है. यह तलवार जर्मनी कैसे पहुंची इसको लेकर विशेषज्ञ कई तरह की संभावना बता रहे हैं.

यह तलवार शहर के सबसे पुराने चौराहे, मोलकेनमार्कट के नीचे मिली थी, जो ऊपर की इमारत के नष्ट होने से पहले एक तहखाना हुआ करता था. युद्ध के बाद, तहखाने को ऊपर के खंडहरों केमलबे से भर दिया गया था, और फिर 1960 के दशक में जब सड़कों को चौड़ा किया गया तो इसे सड़क के नीचे दबा दिया गया.

मोलकेनमार्कट के पूर्व तहखानों की खुदाई करने वाले पुरातत्वविदों ने तब से युद्ध के अंत में जल्दबाजी में निपटाए गए कई सैन्य कलाकृतियों की खोज की है. इसमें 16वीं शताब्दी की जापानी छोटी तलवार वाकिज़ाशी शामिल थी, जो अपनी मातृभूमि से कम से कम 5,000 मील दूर दबी हुई थी.

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वाकीजाशी तलवार जापान की खास समुराई तलवारों में शुमार की जाती है.

बर्लिन राज्य पुरातत्वविद् और शहर के संग्रहालय के निदेशक मैथियास वेमहॉफ ने इसे “आश्चर्यजनक” खोज बताते हुए कहा कि तलवार को उस समय गढ़ा गया हो सकता है जब जापान अपनी साकोकू या “बंद देश” नीति के कारण बाहरी दुनिया से अलग-थलग था. एक रिपोर्ट में, बर्लिन राज्य संग्रहालय ने कहा कि विशेषज्ञ “केवल अनुमान लगा सकते हैं” कि तलवार बर्लिन में कैसे पहुँची. एक सिद्धांत यह है कि तलवार 1862 में यूरोप में पहले जापानी दूतावास, टेकेनोची मिशन के दौरान उपहार में दी गई थी.

या इसे 11 साल बाद एक अन्य राजनयिक यात्रा, इवाकुरा मिशन के दौरान उपहार में दिया गया हो सकता है. दोनों अवसरों पर, कैसर विल्हेम I ने बर्लिनर श्लॉस में गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया, जो दफन स्थल से मुश्किल से आधा मील दूर था. तलवार खुद भी बुरी तरह से जंग खा चुकी थी, इसकी मूठ का एक हिस्सा गर्मी के संपर्क में आने से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. फिर भी इसकी पकड़ की लकड़ी बरकरार रही, साथ ही कपड़े और शाग्रीन रैपिंग के कुछ हिस्से भी बरकरार रहे.

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