बीकानेर:- बीकानेर जिले के नोखा कस्बे में एक अस्पताल में दो अनोखे जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ. हालांकि इन जुड़वा बच्चों को देखकर हर कोई हैरान है. इन दोनों जुड़वां बच्चों को एक ऐसी दुर्लभ बीमारी है, जिसमें इनकी त्वचा यानी चमड़ी प्लास्टिक जैसी दिखती है.

इन दोनों जुड़वां बच्चों की त्वचा बहुत ज्यादा सख्त है. यह दोनों जुड़वां बच्चे नोखा के प्राइवेट अस्पताल में हुए थे. इन बच्चों की हालत बहुत गंभीर होने के कारण इन बच्चों को बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में ट्रांसफर किया गया है. अब इन दोनों जुड़वां बच्चों की हालत स्थिर बताई जा रही है.

करोड़ों में एक है ये बीमारी

डॉक्टर विशेष चौधरी ने बताया कि यह देश का पहला संभवत मामला है. यह बीमारी बहुत कम होती है. यह तीन से पांच लाख बच्चों में एक जीवित बच्चा होता है. करोड़ों बच्चों में एक बीमारी ऐसी भी होती है. यहां एक महिला की करीब दो माह पहले ही डिलिवरी हो गई. एक बच्चा लड़का था, जो एक किलो 500 ग्राम था, तो दूसरी एक लड़की थी, जो एक किलो 530 ग्राम की थी. दोनों को सरकारी अस्पताल में ट्रांसफर किया गया.

इस परिवार की स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर है. इसलिए इन बच्चों को सरकारी अस्पताल में भेजा गया है. इस बीमारी में हार्ड त्वचा के नीचे शरीर होता है. इस तरह के बच्चों को एलियन बच्चे की कहते हैं. कुछ वर्ष तक अच्छे केयर करने पर ये स्वस्थ हो सकते हैं.  ऐसे मामले में बच्चे कुछ वर्षों तक ही जीवित रहते हैं. वहीं कुछ विशेष अवस्था में किशोर अवस्था तक भी बच्चे जीवित रह सकते हैं.

डॉक्टर ने बताया कि फिलफाल दोनों बच्चे स्वस्थ हैं. इनमें एक लड़की और लड़का है. इनकी त्वचा जगह-जगह से फटी हुई है. यह जुड़वा बच्चे हार्लेक्विन-टाइप इचिथोसिस नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैं, जिसमें नवजात त्वचा और अविकसित आंखों के बिना पैदा होते हैं.

इस बीमारी से पीड़ित बच्चे सिर्फ एक सप्ताह तक ही जीवित रह पाते हैं और उनकी मृत्यु दर 50% तक होती है. उनकी समय पर जांच जरूरी है. डॉक्टर ने बताया कि मां-बाप के जीन में गड़बड़ी की वजह से नवजात में यह बीमारी होती है. इस बीमारी में बच्चा, शरीर पर प्लास्टिक की तरह दिखने वाली परत के साथ पैदा होता है.

ठीक होने की 10 प्रतिशत संभावना

महिला और पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं. यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हो, तो पैदा होने वाला बच्चा इचिथोसिस हो सकता है. धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और उससे होने वाला दर्द असहनीय होता है. यदि संक्रमण बढ़ा, तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल होगा.

कई मामलों में ऐसे बच्चे दस दिन के अंदर इस परत को छोड़ देते हैं. इस बीमारी की वजह से 10% बच्चे पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं, लेकिन इन्हें भी जीवनभर इचिथोसिस (त्वचा संबंधी) समस्याएं रहती हैं. उनकी चमड़ी सख्त हो जाती है और ऐसे ही जीवन जीना पड़ता है, जो बड़ा ही कठिन होता है.

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