रायपुर। छत्तीसगढ़ में एसटी, एससी और ओबीसी के अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण के लिए पारित विधेयक पर सोमवार को राज्यपाल अनुसुइया उइके का दस्तखत नहीं हो पाया। राज्यपाल ने कहा था कि वे विधि अधिकारी के अभिमत के आधार पर सोमवार को दस्तखत करेंगी। जब देर शाम तक कोई खबर नहीं आई, तब यह आशंकाएं प्रबल हो गई हैं कि आरक्षण पर पेंच फंसा तो अब राज्य सरकार अध्यादेश भी नहीं ला पाएगी।

संवैधानिक विषय होने के कारण राज्यपाल इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भी भेज सकती हैं। ऐसी स्थिति में काफी समय लग सकता है। राज्यपाल उइके सोमवार को पूरे दिन व्यस्त रहीं। बड़ी संख्या में प्रतिनिधिमंडल व अन्य प्रतिनिधियों से मुलाकात का कार्यक्रम भी था। राजभवन से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि देर शाम राज्यपाल ने विधि सलाहकार के साथ भी बैठक की है।

हालांकि इसके बाद विधेयक की मंजूरी के संबंध में कोई जानकारी सामने नहीं आई है। विशेषज्ञों के मुताबिक हाईकोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मंजूरी दी है। इसे राज्य सरकार की ओर से 4 प्रतिशत किया गया है। संवैधानिक मुद्दे में राज्यपाल अब राष्ट्रपति के अभिमत के लिए भेज सकती हैं।

बता दें कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था। इसके बाद राज्य में आरक्षण की स्थिति अस्पष्ट हो गई। भर्तिंया और शैक्षणिक संस्थाओं में एडमिशन भी प्रभावित होने लगा। आखिरकार सरकार ने विशेष सत्र बुलाकर संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया। साथ ही, संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए संकल्प भी पारित किया। इसके बाद पांच मंत्री राज्यपाल से मिलने पहुंचे और विधेयक पारित करने की जानकारी दी थी।

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती संभव

िवशेषज्ञों के मुताबिक 76 प्रतिशत आरक्षण मंजूर होने की स्थिति में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। हाईकोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक माना था, तब 76 प्रतिशत आरक्षण लागू करने पर हाईकोर्ट रोक लगा सकता है। वहीं, लोकसभा की 9वीं अनुसूची में शामिल होने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

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