रायपुर। ब्लड बैंक से निःशुल्क मिलने वाले खून को बेचकर जेब भरने वाले ब्लड बैंक के सुपरवाइजर आसिफ इकबाल खान और टेक्नीशियन मनोज टंडन को गोलबाजार पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।दरअसल भारतीय रेडक्रास सोसायटी छत्तीसगढ़ राज्य शाखा रायपुर के जनरल सेक्रेटरी डा.रूपल पुरोहित ने गोलबाजार पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराया कि भारतीय रेड क्रास सोसायटी की डीकेएस अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में मार्च और अप्रैल 2020 महीने में ब्लड बैंक इंचार्ज डा. वी बघेल ने रक्तदान में मिले निःशुल्क खून को जरूरतमंद मरीज को देने का आदेश दिया था। इसके बावजूद ब्लड बैंक के सुपवाइजर आसिफ इकबाल खान और लैब टेक्नीशियन मनोज टंडन ने आरसी ब्लड बैंक, न्यू राजेंद्र नगर रायपुर को 105 यूनिट ब्लड को 47 हजार 250 रुपए रकम लेकर दी थी।

वहीं पैसे लेने के बाद भी इसकी न तो कोई रसीद काटी न ही ब्लड बैंक के बैंक खाते में कोई रकम जमा कराई।शिकायत मिलने पर इस प्रकरण की जांच प्रशिक्षु सहायक कलेक्टर जयंत नहाटा की अध्यक्षता में जांच समिति ने की। समिति ने जांच में शिकायत को सही पाकर मामले में अपराधिक प्रकरण दर्ज कराने का आदेश दिया था।गोलबाजार पुलिस ने आठ सितंबर को धारा 408, 34 के तहत अपराध कायम कर लिया।

इस मामले को एसएसपी प्रशांत अग्रवाल ने गंभीरता से लेते हुये एएसपी सिटी व अपराध अभिषेक माहेश्वरी, थाना प्रभारी गोलबाजार को आरोपितों की पतासाजी कर जल्द गिरफ्तार करने को कहा। पुलिस टीम ने रिपोर्टकर्ता डा.रूपल पुरोहित समेत अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने के साथ ही विस्तृत पूछताछ कर फरार आरोपितों की तलाश शुरू की। अंतत: केबीटी-152, गुरुनानक चौक, कबीरनगर निवासी ब्लड बैंक के सुपरवाइजर आसिफ इकबाल खान (41) और आदर्शनगर, सतनामी पारा, पंडरी निवासी लैब टेक्नीशियन मनोज टंडन (35) को गिरफ्तार करने के साथ कोर्ट में पेशकर जेल भेज दिया गया।

यह था मामला

रेडक्रास ब्लड बैंक में कोरोनाकाल के दौरान 800 यूनिट खून का घोटाला हुआ था। इस पूरे मामले का भंडाफोड़ होने के बाद इसकी जांच शुरू हुई। आखिरकार पांच महीने बाद गोलबाजार पुलिस थाने में एफआइआर दर्ज कर खून बेचने वाले सुपरवाइजर आसिफ खान और लैब टेक्नीशियन मनोज टंडन को आरोपित बनाया गया है। इस प्रकरण के सामने आने के बाद रेडक्रास के दो कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया था, हालांकि इस मामले में संदेह के घेरे में आए एक लेखापाल को बचाने की कोशिश की भी चर्चा रही।

दरअसल जब पूरे मामले का भंडाफोड़ हुआ था तब एक लेखापाल और सुपरवाइजर आसिफ खान ही मुख्य संदेही थे। इन्हीं दोनों ने पूर्व मेडिकल आफिसर डा. डीवी बघेल को माफीनामा लिखकर खून बेचना स्वीकार किया था, लेकिन बाद में एक को ही दोषी बता दिया गया। वहीं लैब टेक्नीशियन मनोज टंडन का नाम आने से विभाग में काफी खलबली मच गई थी। मनोज ने जांच समिति के सामने स्वीकार किया था कि लेखापाल और आसिफ इकबाल खान के कहने पर वह ब्लड बैंक में सिर्फ पैसा लेने गया था। उसे बिलकुल भी जानकारी नहीं थी कि यह पैसा बेचे गए खून का है।

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