UP Politics: यूपी में 9 सीटों पर 13 नवंबर को उपचुनाव होने जा रहा है. मिल्कीपुर सीट पर फिलहाल चुनाव नहीं होगा. चुनाव आयोग ने इसकी घोषणा कर दी है. इसके साथ ही कहा जा रहा है कि ये चुनाव जहां एक तरफ सीएम योगी के लिए लिटमस टेस्ट साबित होगा तो वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन का भी इम्तिहान होगा. अगर इंडिया गठबंधन की बात की जाए तो हरियाणा चुनाव में कांग्रेस की हार के अगले 24 घंटे के भीतर ही यूपी में सपा ने दबाव की रणनीति के तहत 9 सीटों पर होने जा रहे उपचुनावों में से छह पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया.
जबकि कांग्रेस ने इनमें से पांच सीटों की मांग की थी. उसके अगले ही दिन अखिलेश यादव ने ये भी ऐलान कर दिया कि कांग्रेस के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ेंगे. अब सवाल उठता है कि इंडिया गठबंधन में अपनी शर्तों पर चुनाव भी लड़ना चाहती है लेकिन कांग्रेस का साथ भी क्यों नहीं छोड़ना चाहती?
इस बारे में वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल एक दूसरे के पूरक हैं. जहां जो मजबूत है उसके सहारे के बगैर कांग्रेस नहीं चल सकती है. इसका सीधा उदाहरण हरियाणा चुनाव में देखने को मिला है. गठबंधन बचाने के लिए कांग्रेस को बड़ा दिल दिखाना पड़ेगा. क्योंकि अगर बात यूपी की करें तो यहां लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार से मुस्लिम और दलित वोट कांग्रेस को मिला है.
उसके पीछे का कारण गठबंधन ही है. इस बात को सपा और कांग्रेस के लोग जानते हैं. इसी कारण हरियाणा के परिणाम आने के बाद अखिलेश यादव कह चुके हैं कि इंडिया गठबंधन बरकरार रहेगा और इसे बनाए रखने की जिम्मेदारी समाजवादी उठाएंगे. रावत का कहना हैं कि दोनों दलों को एक दूसरे का वोट बैंक बचाने के लिए गठबंधन की जरूरत है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश के बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सपा को न तो एक सीट दी ना ही इनसे कोई सलाह ली. हालांकि सपा की तरफ से बार बार दावा किया जा रहा था कि उसके बगैर लिए चुनाव में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा. बहुमत के आंकड़े से कांग्रेस काफी पीछे रह गई.
सपा की हरियाणा विंग की तरफ से दावा किया गया कि अगर गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा जाता तो शायद आज यहां गठबंधन की सरकार में होती. लेकिन मध्य प्रदेश के बाद हरियाणा में उपेक्षा के कारण कांग्रेस का यह दशा हुई है. इंडिया गठबंधन के रणनीतिकार भी कहते हैं कि हरियाणा चुनाव में अगर विपक्षी दल एक साथ मिलकर लड़ते तो शायद तस्वीर कुछ अलग होती. क्योंकि 13 सीटों में अगर अंतर को देखेंगे तो वह पांच हजार से कम का है.
सपा का आकलन
सपा प्रवक्ता अशोक यादव का कहना है कि सपा जब किसी से गठबंधन करती है तो चार कदम पीछे भी हटने को तैयार रखते हैं. हरियाणा में कांग्रेस ने भले ही सीट न दी हो लेकिन सपा ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. लोकसभा चुनाव के दौरान भी गठबंधन में कई उतार चढ़ाव आए लेकिन गठबंधन में कोई आंच नहीं आई.
संविधान बचाने और पीडीए के आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए गठबंधन की जरूरत दोनों दलों को है. जैसा कि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष पहले ही कह चुके हैं यह बरकरार रहेगा. जहां तक बात रही उपचुनाव की तो सपा यहां पर सबसे बड़ा विपक्षी दल है. बड़ी जिम्मेदारी है. हमारे हिसाब से कांग्रेस को चुनाव लड़ना पड़ेगा. राष्ट्रीय अध्यक्ष जो तय करेंगे वही फॉर्मूला अपनाया जाएगा. क्योंकि बात सीट की नहीं जीत की है.
कांग्रेस का रिएक्शन
कांग्रेस के प्रवक्ता अंशू अवस्थी का कहना है कि कांग्रेस हमेशा जनता के जुड़े मुद्दे को ध्यान में रखकर ही गठबंधन करती है. गठबंधन बनाने के लिए सबसे बड़ी पहल कांग्रेस ने की. इसके पीछे राहुल गांधी और खड़गे जी ने कोशिश की वह रंग लाई. इसी का परिणाम है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा अयोध्या जैसी सीट हार गई.
यह इंडिया गठबंधन की ताकत है. कभी कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को निराश नहीं करती. चुनाव से पहले खुले मन से चर्चा करते हैं. सपा और कांग्रेस की आपस में तालमेल ठीक है. केवल भाजपा भ्रम फैला रही है. इंडिया गठबंधन उपचुनाव में एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा.