भिलाई [न्यूज़ टी 20] भारत की रूस और अमेरिका को लेकर विदेश नीति पर व्हाइट हाउस का बड़ा बयान आया है और व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने भारत के रूस के साथ संबंधों को लेकर कहा है, कि मॉस्को के साथ दिल्ली का दशकों पुराना संबंध रहा है यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद रूस के कई बड़े देशों के साथ संबंध खराब हो गए, लेकिन भारत अपने सबसे पुराने दोस्त के साथ लगातार खड़ा रहा है। हालांकि, भारत ने कभी भी यूक्रेन जैसे छोटे देश पर रूसी आक्रमण को जायज भी नहीं ठहराया है।

अमेरिका लगातार भारत से रूस के खिलाफ कदम उठाने की अपील जरूर करता रहा है, लेकिन अभी तक भारत सरकार के निर्णयों पर इसका कोई असर नहीं दिखा है। अब जो बाइडेन की सरकार एकबार फिर दोनों देशों की इस दोस्ती तो कम करने की कोशिश करती दिख रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी कांग्रेस इस बात पर विचार कर है कि कैसे भारत और रूस की दोस्ती को कमजोर किया जाए। स्वतंत्र कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस और अमेरिकी नीति निर्माताओं के सदस्य रूस को कूटनीतिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने में मदद करने के लिए भारत को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं।

इसके लिए भारत की रूस पर निर्भरता को कम करने की योजना बनाई जा रही है। आपको बता दें कि सीआरएस अमेरिकी कांग्रेस का एक रिसर्च विंग है, जिसमें दोनों दलों के सदस्य होते हैं। यह विंग समय-समय पर सांसदों के लिए जरूर मुद्दों पर रिपोर्ट तैयार करता है।

रिपोर्ट में कहा गया है, “कांग्रेस इस बात पर विचार करना चाहती है कि अमेरिका के विदेश और रक्षा जैसे द्विपक्षीय विभाग अपनी रणनीतियों में क्या बदलाव लाए जिससे भारत और रूस की दूरी बढ़े।” सीआरएस ने अपनी इस रिपोर्ट को ‘भारत-रूस संबंध और अमेरिकी हितों के लिए निहितार्थ’ शीर्षक दिया है।

अभी तक जो बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों ने यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस को लेकर भारत की तटस्थता के पीछे की मंशा को स्वीकार किया है। अमेरिकी हितों को ध्यान में रखते हुए भारत-रूस संबंधों को अपनाने के अलावा कोई चारा नहीं है।

आपको बता दें कि कई अन्य प्रमुख पश्चिमी शक्तियों के विपरीत भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना नहीं की है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के मंच पर रूस के खिलाफ वोट करने से भी परहेज किया है।

अक्टूबर 2018 में भारत ने तत्कालीन ट्रम्प प्रशासन की चेतावनी के बावजूद अपनी वायु रक्षा को मजबूत करने के लिए S-400 मिसाइल प्रणाली की पांच इकाइयों को खरीदने के लिए रूस के साथ 5 अरब अमरीकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किया था।

अमेरिका पहले ही रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणालियों के एक बैच की खरीद के लिए CAATSA के तहत तुर्की पर प्रतिबंध लगा चुका है। हालांकि, उसने अब तक भारत के खिलाफ ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है, सिर्फ सख्त तेवर दिखाए हैं।

अमेरिका की कड़ी आपत्तियों और बाइडेन प्रशासन से प्रतिबंधों की धमकी के बावजूद भारत ने अपने फैसले में कोई बदलाव करने से इनकार कर दिया है और मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद के साथ आगे बढ़ रहा है। विदेश मंत्रालय ने पिछले साल नवंबर में कहा था कि भारत एक स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करता है और इसके रक्षा अधिग्रहण उसके राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के अनुसार होते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने लंबे समय से भारत को रूसी सैन्य उपकरणों की खरीद को और कम करने और रक्षा सामानों के अपने स्रोतों में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित किया है। रिपोर्ट में भारत को अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझेदार बताया गया है। साथ ही हाल के दिनों बाइडेन प्रशासन और मोदी सरकार के बीच कई रक्षा समझौतों की भी संभावना जताई गई है।

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