नई दिल्ली. पब्लिक प्रॉवडेंट फंड (पीपीएफ) निवेश के बेहतरीन विकल्पों में से एक है. यह न सिर्फ लंबी अवधि का निवेश है बल्कि इसमें निवेश करने वालों को इनकम टैक्स छूट भी मिलती है.
इनकम टैक्स की धारा 80सी के तहत इसमें सालाना 1.5 लाख रुपये तक निवेश करने पर टैक्स से छूट मिलती है. साथ ही मैच्योरिटी पर मिलने वाली पूरी राशि भी टैक्स मुक्त है यानी उस पर भी कोई टैक्स नहीं देना होता है.
रिटायरमेंट की प्लानिंग के लिहाज से भी पीपीएफ में निवेश बेहतर विकल्प है. फिलहाल इस पर 7.1 फीसदी की दर से ब्याज दिया जा रहा है. पीपीएफ की परिपक्वता अवधि 15 साल की होती है.
मैच्योर होने के बाद क्या पीपीएफ की राशि को निकालना बेहतर रहेगा या इसमें निवेश बनाए रखना फायदेमंद होगा, ऐसे कई सारे सवाल निवेशकों के मन में घूमते रहते हैं. पीपीएफ निवेशकों के पास कई विकल्प मौजूद हैं जिसका इस्तेमाल वे कर सकते हैं.
पीपीएफ खाता बंद कर दें
निवेशकों के पास पहला विकल्प तो ये है कि 15 साल की अवधि पूरी होने और इसके मैच्योर होने पर इस खाते को बंद कर सकते हैं. मैच्योरिटी पर मिली राशि पूरी तरह से टैक्स फ्री होती है. इसलिए इसे निवेशक अपने बचत खाते में रख सकते हैं.
बिना योगदान 5 साल के लिए बढ़ा सकते हैं
15 साल की अवधि पूरी होने पर आप इसे बिना कोई मासिक योगदान दिए इसकी मियाद 5 साल के लिए और बढ़ा सकते हैं. इस दौरान आपको इस खाते में कोई राशि जमा नहीं करनी होगी.
इस पर उस समय के हिसाब से ब्याज मिलता रहेगा. लेकिन अगर इस बीच आपको पैसे की जरूरत पड़ जाए तो आप सालाना एक निकासी कर सकते हैं. इसके लिए निकासी राशि की कोई सीमा तय नहीं है.
न्यूनतम योगदान कर खाता जारी रख सकते हैं
अगर आप अपने पीपीएफ खाते को मैच्योर होने के बाद भी जारी रखना चाहते हैं तो इस दौरान आप इसमें न्यूनतम योगदान का विकल्प भी चुन सकते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि कॉर्पस के अलावा आपको ताजा जमा पर भी ब्याज मिलेगा. हालांकि,
इस दौरान पीपीएफ खाते से निकासी संबंधी कुछ सीमाएं भी हैं. अगर आप पीपीएफ खाते का विस्तार 5 वर्ष के लिए करते हैं तो विस्तार अवधि की शुरुआत में मैच्योरिटी राशि का केवल 60 फीसदी ही निकाल सकते हैं. इसके अलावा सालाना केवल एक निकासी कर सकते हैं.