One Nation One Election: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद राजनीतिक हलकों में बहस छिड़ गई है। विपक्षी दलों ने इस फैसले की आलोचना की, जबकि सत्तारूढ़ दल और उसके समर्थक दलों ने इसका समर्थन किया।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘एक देश, एक चुनाव’ को संविधान के खिलाफ बताते हुए कहा, “लोकतंत्र में ‘एक देश, एक चुनाव’ काम नहीं कर सकता। चुनाव जब आवश्यक हों तभी होने चाहिए, ताकि हमारा लोकतंत्र बचा रहे।”
आम आदमी पार्टी (AAP)
आप के राज्यसभा सांसद संदीप पाठक ने इस पहल को भाजपा का नया जुमला करार दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर भाजपा चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा सकती, तो पूरे देश में यह कैसे संभव होगा? उन्होंने यह भी पूछा कि यदि किसी राज्य की सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले गिर जाती है, तो ऐसी स्थिति में क्या व्यवस्था होगी?
राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
RJD के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, “1962 तक यह व्यवस्था थी, लेकिन अल्पमत सरकारों और मध्यावधि चुनावों के चलते इसे खत्म कर दिया गया। इस बार इसके लिए क्या व्यवस्था होगी?”
जनता दल यूनाइटेड (JDU)
JDU के प्रवक्ता राजीव रंजन ने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा कि इससे नीतियों की निरंतरता बनी रहेगी और योजनाओं को समय पर पूरा करने में मदद मिलेगी। JDU ने पहले से इस प्रस्ताव के समर्थन में अपना रुख स्पष्ट किया था।
अन्य पार्टियों की प्रतिक्रिया
- झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने इसे संविधान पर आघात बताया।
- तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने कहा कि वे इस पर अपनी पार्टी की बैठक में फैसला करेंगे, लेकिन अभी इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने संघवाद और लोकतंत्र से समझौता होने की बात कहते हुए इसका विरोध किया।
समाजवादी पार्टी (SP)
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज यादव ने भी इस फैसले का विरोध करते हुए कहा, “भाजपा द्वारा लाए गए पहले के फैसलों, जैसे नोटबंदी और ‘एक देश, एक टैक्स’ का कोई लाभ नहीं हुआ। इसके बजाय, जनता को परेशानी उठानी पड़ी।”
तृणमूल कांग्रेस (TMC)
TMC के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने ममता बनर्जी का पुराना पत्र साझा करते हुए ‘एक देश, एक चुनाव’ का विरोध किया। विपक्षी दलों का मानना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ संघवाद और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकता है, जबकि भाजपा और उसके सहयोगी इसे नीतिगत स्थिरता और समय और संसाधनों की बचत के रूप में देख रहे हैं।