लोकसभा चुनाव के लिए पांच चरणों की वोटिंग पूरी हो चुकी है. इन दौरान देशभर में कई जगहों पर पिछले चुनाव के मुकाबले वोटिंग पर्सेंटेज में खासी कमी देखी गई. हालांकि इस बीच पश्चिम बंगाल ने सबका ध्यान खींचा है, जहां लगातार बंपर वोटिंग हो रही है. सोमवार को पांचवें राउंड में भी यहां 78 फीसदी वोटिंग हुई, जो देशभर में एक रिकॉर्ड रहा. पांचवे राउंड में यहां बनगांव में सबसे ज्यादा 81.38 प्रतिशत वोटिंग हुई. यहां के 19 लाख वोटर्स में करीब 40 फीसदी मतुआ समुदाय से आते हैं. यहां बीजेपी पिछले कुछ सालों से मतुआ वोटर्स को लुभाने की लगातार कोशिश कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 3 साल पहले बांग्लादेश यात्रा के दौरान इन मतुआ लोगों के तीर्थस्थल ओराकांडी ठाकुरबाड़ी में मत्था टेका तो अचानक से बंगाल की सियासत में इस समुदाय की अहमीयत सुर्खियों में आ गई.

पश्चिम बंगाल में एक वक्त मतुआ समुदाय का ज्दातर वोट लेफ्ट पार्टियों या तृणमूल कांग्रेस को ही जाता था, लेकिन 2019 के चुनाव के समय स्थिति बदल गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में 18 सीटों पर दर्ज की थी. यहां अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 68 सीटों में से 33 में उसे खूब वोट मिले. गौर करने वाली बात यह भी है कि इन 33 सीटों में 26 मतुआ बहुल हैं. तब यही माना गया कि बीजेपी को मतुआ समुदाय से खूब वोट मिले.

मतुआ मठ से पीएम मोदी का संदेश

मतुआ वोटर्स के रुख में इस बदलाव को पीएम मोदी के ठाकुरबाड़ी जाकर दर्शन करने और नागरिकता संसोधन कानून (CAA) लागू करने के वादे से जोड़ा गया. प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2021 की अपनी बांग्लादेश यात्रा के दौरान ओराकांडी ठाकुरबाड़ी जाकर मत्था टेका था. इसे मतुआ समुदाय के लोग अपना तीर्थ स्थल मानते हैं. पीएम मोदी ने वहां मतुआ लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘किसने सोचा था कि भारत का प्रधानमंत्री कभी ओराकांडी आएगा. मैं आज वैसा ही महसूस कर रहा हूं, जो भारत में रहने वाले मतुआ संप्रदाय के मेरे हजारों-लाखों भाई-बहन ओराकांडी आकर जो महसूस करते हैं. मैं आज यहां आया तो मैंने उनकी तरफ से भी इस पुण्यभूमि को चरण स्पर्श किया है.’

दरअसल मतुआ लोग हरिचंद ठाकुर को अपना देवता मानते हैं. उन्होंने ही इस संप्रदाय की नींव रखी थी. करीब 210 साल पहले ओराकांडी में ही उनका जन्म हुआ था, जो विभाजन के बाद पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश का हिस्सा बन गया. इस कारण से मतुआ लोग इसे बेहद पवित्र मानते हैं. राजनीतिक विशलेषकों के मुताबिक, पीएम मोदी का इस तरह ओराकांडी मठ में मत्था टेकना मतुआ लोगों के दिल में गहरी जगह कर गया.

‘सीएए पर टीएमसी-बीजेपी में घमासान’

दरअसल बांग्लादेश की सीमा से सटे इलाकों में मतुआ समुदाय के लोग बड़ी संख्या में बसे है. इनके कई लोग 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद अलग-अलग समय में बड़ी संख्या में भारत आते रहे हैं. इन लोगों का पड़ोसी मुल्क से बेटी-रोटी का रिश्ता रहा है. ऐसे में सीएए के तहत आसानी से नागरिकता मिलने का वादा इन्हें मोहता रहा है.

वहीं इस बार के चुनाव ऐसे वक्त हो रहे हैं, जब देशभर में सीएए लागू किया जा चुका है और अब तक करीब 300 लोगों को इसके तहत नागरिकता दी जा चुकी है. ऐसे में बंगाल की सियासत में मतुआ वोटर्स के बीच CAA का मुद्दा गर्माया हुआ है. एक तरफ पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ताल ठोककर यह वादा कर रहे हैं कि वे बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आए हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देकर ही रहेंगे. वह भरोसा दिला रहे हैं कि उनके रहते कोई भी इस कानून को खत्म नहीं कर सकता है.

पीएम मोदी और अमित शाह के इस वादे की काट के लिए तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी भी अपने भाषणा में लगातार सीएए का जिक्र कर रही है. उनका कहना है कि सीएएन नागरिकता छीनने और आवेदन करने वालों को डिटेंशन कैंप में डालने वाला कानून है. वह इसे ‘काला कानून’ बताते हुए वादा कर रही है कि अगर केंद्र में विपक्षी गठबंधन की सरकार बनती है तो सीएए को रद्द कर दिया जाएगा.

पश्चिम बंगाल की बनगांव संसदीय सीट पर 20 मई को वोटिंग भले ही पूरी हो गई, लेकिन 17 सीटों पर वोटिंग अभी बाकी है. इनमें से 3 सीटों पर मतुआ वोटर्स की अच्छी खासी आबादी है. ऐसे में देखना होगा कि वहां अगले दो चरणों में वोटिंग पैटर्न कैसा रहता है और क्या इस बंपर वोटिंग का बीजेपी को फायदा मिलता है या नहीं.

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