नई दिल्ली. संसद और देश भर के अधिकांश राज्य विधानमंडलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15 प्रतिशत से कम है, जबकि 19 राज्यों की विधानसभाओं में 10 प्रतिशत से कम महिला विधायक हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल बिहार (10.70), छत्तीसगढ़ (14.44), हरियाणा (10), झारखंड (12.35), पंजाब (11.11), राजस्थान (12), उत्तराखंड (11.43), उत्तर प्रदेश, (11.66), पश्चिम बंगाल (13.70) और दिल्ली (11.43) में 10 प्रतिशत से अधिक महिला विधायक हैं. वहीं, देश भर की विधानसभाओं में महिला विधायकों की औसत संख्या महज आठ फीसदी है.
कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने 9 दिसंबर को लोकसभा में जो आंकड़े पेश किए उनके मुताबिक आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु और तेलंगाना में 10 फीसदी से भी कम महिला विधायक हैं. हाल ही में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में केवल 8.2 प्रतिशत महिलाएं विधायक बन सकी हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश में इस बार केवल एक महिला MLA जीत सकी है. आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा और राज्यसभा में महिला सांसदों की हिस्सेदारी क्रमशः 14.94 प्रतिशत और 14.05 प्रतिशत है.
संसद और राज्य विधानसभाओं में महिला सांसदों और विधायकों के प्रतिनिधित्व के बारे में सवाल लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने उठाया. उन्होंने केंद्र सरकार से संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में भी पूछा. उन्होंने ये सवाल भी पूछा कि क्या सरकार की संसद में महिला आरक्षण विधेयक लाने की कोई योजना है? इसके जवाब में रिजिजू ने कहा कि लैंगिक न्याय सरकार की एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता है. संसद में संविधान संशोधन विधेयक लाने से पहले सभी राजनीतिक दलों को आम सहमति के आधार पर इस मुद्दे पर सावधानीपूर्वक चर्चा करने की जरूरत है.
गौरतलब है कि हाल ही में बीजू जनता दल (BJD), शिरोमणि अकाली दल (SAD), जनता दल यूनाइटेड JD(U) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने सरकार से महिला आरक्षण विधेयक को नए सिरे से संसद में पेश करने और पारित करने के लिए कहा है. महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के लिए एक बिल पहली बार 1996 में संसद में पेश किया गया था. इसे 2010 में राज्यसभा में पारित किया गया था, लेकिन 15वीं लोकसभा के भंग होने के बाद यह बिल लैप्स हो गया.