भिलाई [न्यूज़ टी 20] पिछले एक साल में 12 मामलों में जांच में कमी पर मध्यप्रदेश पुलिस को कोर्ट की फटकार खानी पड़ी। गुना का एक मामला इससे भी आगे निकल गया। यहां से 5 साल पहले लापता हुई नाबालिग को पुलिस अब तक नहीं ढूंढ पाई है। ग्वालियर हाईकोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई। इसके बाद शनिवार को ग्वालियर में 300 पुलिस अफसर और जवानों को विशेष ट्रेनिंग दी गई।

अब पुलिस टीम एक बार फिर इस मामले में जांच करेगी। हालांकि, नाबालिग के पिता का आरोप है कि बेटी को TI ने ही लापता करवाया है। बता दें, इस मामले में पिछले दिनों ग्वालियर हाईकोर्ट में एडीजी की पेशी हुई, जहां उन्हें फटकार पड़ी। विशेष ट्रेनिंग में 300 पुलिसकर्मियों को बताया कि कैसे केस की जांच की जाए, जिससे कोई पहलू छूटे नहीं। पढ़िए गुना में नाबालिग के लापता होने से अब तक क्या-क्या हुआ.

सबसे पहले पूरा केस समझ लीजिए –

गुना जिले की आरोन तहसील। यहां एक पिता अपनी 17 साल की बेटी के साथ रहता था। 30 जुलाई 2017 को सुबह 11 बजे राशन दुकान पर मिट्टी का तेल लेने गई थी। काफी देर तक वापस नहीं आई तो पिता उसे तलाशने के लिए निकला।

उसे कंट्रोल की दुकान बंद मिली। आस-पास वालों से पूछा, लेकिन पता नहीं चला। गांवभर के तीन चक्कर लगाए, लेकिन कहीं कोई खबर नहीं मिली। दूसरे दिन थाने पहुंचा तो पुलिस ने भगा दिया गया।

FIR भी 10 दिन बाद दर्ज की थी –

3 अगस्त को पिता सुबह से रात 8 बजे तक थाने में बैठा रहा, तब जाकर पुलिस ने उससे आवेदन लिया। पुलिस ने FIR 9 अगस्त को दर्ज की। हालांकि, लड़की को ढूंढने के प्रयास नहीं किए।

बाद में दो संदिग्ध लोग पकड़े, जिनको साक्ष्य के अभाव में छोड़ दिया गया। इस मामले में पता चला है कि एक ने कहा कि उसने नाबालिग के साथ रेप के बाद मर्डर कर तालाब में फेंक दिया था। इसके बाद इंवेस्टीगेशन के लिए 3 SIT भी बनाई गई, लेकिन लड़की का पता नहीं चल सका।

पिता का दर्द- पुलिस ने गुमराह किया, वही जिम्मेदार –

जिस दिन से मैंने रिपोर्ट लिखाई थी, उसी दिन से तत्कालीन TI अभय प्रताप सिंह थाने में नहीं दिखे। रोज थाने जाता था। आशंका है कि उन्होंने बेटी को गायब करवाया है। इनकी जांच होनी चाहिए। टीआई ने अफसरों और कोर्ट को गुमराह किया है।

सरकार ने पुलिस को हमारी रक्षा के लिए नियुक्त किया था, लेकिन यही भक्षक बन गए। 5 साल हो गए, बेटी का पता नहीं है। कोई बड़ा अधिकारी जांच करेगा तो शायद बच्ची आ जाए। बच्ची के जन्म में बहुत मुश्किलें आईं। उसके पहले 6 बच्चे गर्भ में ही खत्म हो गए थे।

पत्नी को मिर्गी आती थी। जब ये बच्ची गर्भ में आई, तो मैंने पत्नी को काम नहीं करने दिया। दिन-रात उसके पास रहकर ध्यान रखता था। उसे तकलीफ नहीं होने दी। 7वें महीने में ही प्री-मैच्योर डिलीवरी हो गई। डॉक्टर ने उसका विशेष ध्यान रखने के लिए कहा। बेटी को हमेशा अपने पास ही रखता था। 54 हजार का तो बकरी का दूध ला-ला कर पिलाया। बेटी ही तो मेरा सब कुछ थी, मेरी आत्मा थी।

अब तो केवल शरीर बचा है। मेरी आत्मा चली गई है। जब से बेटी गई है, तब से चूल्हे पर कढ़ाई नहीं चढ़ाई। सादा जीवन यापन कर रहा हूं। कमजोर हो गया हूं। 10-15 किलो वजन कम हो गया है। बेटी को पालने में 6 बीघा जमीन बेच दी। समाज के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाता। 5 साल से बेटी के इंतजार और न्याय की आस में बैठा रहता हूं। बेटी आ जाएगी तो हो सकता है जी जाऊं। नहीं तो मरना तो निश्चित है।

फिर हाईकोर्ट में लगाया केस –

लापता बेटी के पिता ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर की। याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट सख्त हुआ। थाना प्रभारी से लेकर, ASP टीएस बघेल, SP निमिष अग्रवाल, IG श्रीनिवास वर्मा को कोर्ट के सामने हाजिर होना पड़ा। कोर्ट की सख्ती के बाद ही पिछले महीने कोर्ट में हलफनामा देकर रोड मैप दिया गया।

इसमें पुलिसकर्मियों को ऐसे केस में गहन जांच और पुलिसिया रवैए के ऊपर ट्रेनिंग देने की बात कही। कोर्ट ने 29 अगस्त तक ट्रेनिंग कर स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया। अभी तक बच्ची का कोई पता नहीं चला है।

ग्वालियर IIITM में ट्रेनिंग दी गई –

इन्वेस्टिगेशन में गलतियों की वजह से अपराधी को तो लाभ मिलता ही है। पुलिस को भी कोर्ट के सामने बार-बार खड़ा होना पड़ता है। पिछले कुछ महीनों में कई मौकों पर कोर्ट ने पुलिस विवेचना में खामियां पकड़ी हैं। इसे लेकर पुलिस अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हुए थे।

विशेषकर गुना में पांच साल से लापता लड़की के केस के बाद पुलिस को ग्वालियर-चंबल अंचल के 8 जिलों के करीब 300 से ज्यादा सब इंस्पेक्टर को इन्वेस्टिगेशन स्किल्स की ट्रेनिंग की जरूरत पड़ी है। शनिवार को ग्वालियर के IIITM संस्थान में शुरू हुए दो दिवसीय बिहेवियर एंड एटीट्यूशनल चेंज इन पुलिसिंग इन्वेस्टिगेशन स्किल्स में अफसरों ने इन्वेस्टिगेशन स्किल्स की बारीकियां सीखीं।

 

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