भिलाई /नई दिल्ली(न्यूज़ टी 20)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में पहली बार लोकसभा चुनाव गुजरात के बाहर से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो अरविंद केजरीवाल ने एक दुस्साहसिक कदम उठाया. उन्होंने ऐसे वक्त में वाराणसी से मोदी के खिलाफ खुद को मैदान में उतारा, जब कई अन्य शीर्ष विपक्षी नेताओं ने उनके सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटाई. हालांकि वह लोक सभा चुनाव केजरीवाल हार गए थे , लेकिन अपनी उम्मीदवारी से उन्होंने भारतीय राजनीति में एक नया संदेश जरूर दे दिया , कि आने वाले समय मे वे अलग छवि के नेता साबित होंगे ।

केजरीवाल ने जनता के सामने अपनी बात रखी. शनिवार को, जैसा कि दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केजरीवाल को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पीएम चेहरे के रूप में पेश किया और कहा कि पूरा देश 2024 में ‘एक मौका केजरीवाल को’ देने के लिए तैयार है, ऐसा लगता है कि राजनीतिक घटनाएं अब पूरी तरह से अपने रंग में आने लगी हैं.

प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा दो राज्यों में सत्ता में रहने वाली एकमात्र पार्टी आप ने नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री को विपक्ष का ‘चेहरा’ बनाने के लिए अपना दांव चल दिया है.

हालांकि, कांग्रेस के राहुल गांधी और ममता बनर्जी, नीतीश कुमार के साथ ही के. चंद्रशेखर राव जैसे अन्य मुख्यमंत्री भी दौड़ में हैं.

विपक्ष के बिखराव की वजह से आप को लगता है कि अरविंद केजरीवाल ही पीएम मोदी को टक्कर देने वाले चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए मतदाताओं के बीच एक उपयुक्त विकल्प हैं.

अपनी राजनीति के मूल में राष्ट्रवाद और नरम हिंदुत्व के साथ, केजरीवाल ने सालों से, अपनी ‘आम आदमी’ की छवि का हवाला देते हुए एक नेता के रूप में व्यापक स्वीकार्यता का लक्ष्य रखा है.

चाहे वह पीएम के ‘हर घर तिरंगा अभियान’ के साथ मेल खाता दिल्ली में सैकड़ों राष्ट्रीय ध्वज स्थापित करना हो, मंदिरों में दर्शन के लिए जाना हो या उनकी ‘कट्टर ईमानदार’ (गैर-भ्रष्ट) छवि के साथ-साथ हाल ही में शुरू की गई ‘भारत को महान और नंबर 1 बनाने’ की नीति हो…

आप को लगता है कि केजरीवाल ने चुनावी रूप से सभी सही निशाने लगाए हैं. केजरीवाल की पार्टी में सत्ता भी निर्विवाद है और उन्हें किसी भी नेता से कोई चुनौती नहीं मिली है. इतना ही नहीं, वह कई राज्यों में वोट मांगने के लिए AAP का चेहरा हैं, ठीक उसी तरह जैसे भाजपा के लिए नरेंद्र मोदी हैं.

आम आदमी पार्टी का कहना है कांग्रेस के अलावा आप ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसके पास उत्तर और मध्य भारत के कई राज्यों में संगठनात्मक ताकत है. जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गोवा और त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में भी ऐसा ही करने की कोशिश की,

लेकिन परिणाम अब तक उत्साहजनक नहीं रहे हैं. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की छवि और एक गैर-हिंदी भाषी नेता होना उत्तर भारतीय राज्यों में उनके लिए एक बड़ी रुकावट है.

और हाल ही में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में वाराणसी में तृणमूल सुप्रीमो द्वारा अखिलेश यादव के लिए प्रचार करने पर यह साफ दिखाई भी दिया.

पश्चिम बंगाल में ‘जय श्री राम’ के नारों पर ममता बनर्जी की आपत्ति पर भाजपा ने बार-बार सख्त प्रतिक्रिया दी है, जो कि उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर भी सवाल खड़े करती है.

तेलंगाना में केसीआर को भी ममता जैसी ही चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. गृह राज्य को छोड़ दे, तो कहीं भी उनकी आवाज सुनाई नहीं देती.

इस बीच, राजद के साथ बिहार में सरकार बनाने के लिए एनडीए से हटने के अपने हालिया कदम के मद्देनजर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2024 में पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष के चेहरे की भूमिका के लिए खुद को खड़ा कर लिया है.

इस दौरान उन्होंने एक बयान में कहा भी है कि ‘जो लोग 2014 में सत्ता में आए थे, हो सकता है वे 2024 में सत्ता से बेदखल हो जाएं’.

हालांकि, नीतीश कुमार की साफ छवि के बावजूद बिहार में उनकी चुनावी ताकत कम है और उनकी ‘विकास पुरुष’ की छवि ने उनके बार-बार राजनीतिक चालाकियों को देखते हुए, सत्ता में बने रहने के लिए दूसरों पर निर्भरता और अन्य दलों के बीच उनकी विश्वसनीयता की कमी को उजागर किया है.

जद (यू) इस समय बिहार में राजद और भाजपा के बाद तीसरे नंबर की पार्टी है. वहीं, कांग्रेस अभी भी राहुल गांधी के अलावा किसी अन्य पीएम चैलेंजर को स्वीकार नहीं करती है, जैसा कि बिहार कांग्रेस अध्यक्ष ने नीतीश कुमार के हंगामे के तुरंत बाद कहा था.

हालांकि, आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि यह एक ‘जाल’ है, जिससे विपक्ष को बाहर आना चाहिए, क्योंकि 2014 और 2019 दोनों में राहुल गांधी की चुनौती को हराने के बाद भाजपा भी पीएम चेहरे के रूप में राहुल गांधी को चाहती है.

इसलिए मनीष सिसोदिया द्वारा शनिवार को 2024 में ‘एक मौका केजरीवाल को’ का बिगुल फूंका. भाजपा नेता निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि केजरीवाल अन्य नेताओं की तरह पीएम मोदी को पारंपरिक तरीके से नहीं लेते हैं, जो उन्हें प्रबल दावेदार बनाता है.

यह दिल्ली में उनके मंत्रियों द्वारा कथित भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण केजरीवाल की पार्टी पर भाजपा द्वारा किए गए मजबूत हमलों या पंजाब में संदिग्ध कदमों की व्याख्या करता है, जहां इस साल की शुरुआत में AAP ने एक चौंकाने वाले परिणाम में सत्ता हासिल की.

आप फिलहाल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावी राज्यों के साथ-साथ केजरीवाल के गृह राज्य हरियाणा में एक आक्रामक अभियान पर में है, जहां वह अब कांग्रेस पार्टी को किनारे कर सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ मुख्य विपक्ष के रूप में उभरने की कोशिश कर रही है.

भाजपा सरकार की ओर से एजेंसियों द्वारा उन्हें निशाना बनाए जाने को ‘आधार’ बनाते हुए, केजरीवाल 2024 में बड़े कदम के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि 2024 में पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष के पास सबसे अच्छा मौका है लेकिन सवाल ये है कि क्या विपक्षी दल उनके नाम पर सहमति बना पाएंगे …?

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