Manikarnika Ghat Varanasi: हिंदुस्तान में एक से बढ़कर एक परंपराएं देखने को मिलती हैं. यहां कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं और हर धर्म की अपनी कई मान्यताएं हैं जिनका पालन लोग सदियों से करते चले आ रहे हैं. ऐसी ही कुछ परंपराएं भारत के प्राचीन शहरों से जुड़ी हैं. शहर बनारस को दुनिया के सबसे पुराने धार्मिक शहर होने का दर्जा मिला हुआ है. बनारस में लोग दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं. यहां का काशी विश्वनाथ मंदिर पूरी दुनिया में फेमस है. शाम के वक्त बनारस के घाटों की खूबसूरती और भी ज्यादा बढ़ जाती है. इन्हीं घाटों में से एक मशहूर घाट ‘मणिकर्णिका घाट’ है जिसके बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां दाह संस्कार होने के बाद व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर लेता है. मणिकर्णिका घाट के बारे में कहा जाता है कि यहां जलती हुई चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं होती हैं और साल में तीन बार ऐसा मौका आता है जब इन्हीं जलती चिताओं के बीच नगरवधू का नृत्य होता है.

क्या है यह परंपरा?

मोक्ष की नगरी कहे जाने वाली काशी में मृत्यु को भी उत्सव के तरह देखा जाता है. मणिकर्णिका घाट पर साल में तीन बार नगरवधू का नृत्य देखने को मिलता है, पहला देव दीपावली, दूसरा चिता भस्‍म की होली और तीसरा नवरात्र की सप्‍तमी के दिन. इस रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन जलती चिताओं के बीच किया जाता है. इसमें पैरों में घुंघरू बांधे नगरवधू जलती लाशों के बीच नाचती हैं. महाश्मशान मणिकर्णिका पर होने वाले इस आयोजन को अकबर के नवरत्न मानसिंह से जोड़कर देखा जाता है.

कैसे हुई शुरुआत?

राजा मानसिंह ने बनारस में भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था तब वो एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन करना चाहते थे लेकिन श्मशान घाट होने की वजह से कोई भी कलाकार वहां आने को तैयार नहीं था. तब बनारस की नगरवधूओं ने मानसिंह को यह संदेशा भेजा कि वह इस सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा बनना चाहेंगी और तभी से साल में तीन बार इसका आयोजन किया जाता है. आयोजन बेहद भव्य होता है जिसे बनारस की संस्कृति से भी जोड़कर देखा जाता है. नृत्यांजलि अर्पित करने के दौरान नगरवधू बाबा विश्वनाथ से यह प्रार्थना करती है उन्हें नगरवधू के जीवन से मुक्ति मिल जाए.

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