इंसान चाहे नींद में ही मौत को प्यारा हो जाए या फिर किसी बीमारी से मरे, हर स्थिति में मरना बुरा ही होता है. मरने वालों के परिवार के दिल पर क्या गुजरती है ये कोई नहीं जान सकता. पर शायद इस दुनिया में सबसे बुरी मौत अगर किसी को मिली है तो वो हैं अमेरिका के फ्लॉइड कॉलिन्स (Floyd Collins). उनकी मौत का तमाशा 50 हजार लोगों ने देखा. बचाने के लिए लोग भी जुटे पर उन्हें कोई नहीं बचा पाया. परिवार के सामने उन्होंने दम तोड़ा पर सब लाचार देखते रहे. जानिए आखिर उन्हें इतनी बुरी मौत कैसे मिली!

एक रिपोर्ट के अनुसार फ्लॉइड कॉलिन्स अमेरिका के केंटकी (Kentucky, USA) में रहते थे और काफी कम उम्र से उन्हें गुफाओं (Man dies in cave) को खोजना और उनके अंदर जाना बहुत पसंद था. 1917 में फ्लॉइड को अपने पिता के खेतों के नीचे एक संकरा रास्ता मिला जिसे उन्होंने क्रिस्टल केव (Crystal Cave) नाम दिया. उस दौर में ऐसी संकरी गुफाओं को टूरिज्म के लिए खोलने की शुरुआत हो रही थी. पैसे देकर लोग उसके अंदर जाते थे और उसे एक्सप्लोर करते थे. फ्लॉइड ने भी सोचा कि वो उस गुफा को टूरिज्म के लिए खोलेंग पर जगह दूर थी, और वहां कोई पर्यटक नहीं आता.

गुफा में फंसा शख्स

उनकी नजर सैंड केव नाम की एक गुफा पर गई जो पास के ही एक किसान बीसली डॉयल के खेत में थी. वो जगह रोड के पास थी और उन्हें उम्मीद थी कि वहां बहुत लोग आएंगे. फ्लॉइड ने किसान से डील की और प्रॉफिट बांटने के लिए कहा. 30 जनवरी 1925 को पहली बार उस गुफा के अंदर गए. उन्होंने अपने साथ सिर्फ एक केरोसीन लालटेन लिया था. अंदर जाकर उन्हें कई संकरी दरारें मिलीं जिसमें से गुजरने के लिए उन्हें अपने शरीर को काफी सिकोड़ना पड़ रहा था. अचानक उनके लालटेन की आग बुझने लगी और वो हड़बड़ी में बाहर आने लगे. इसी हड़बड़ाहट में एक भारी पत्थर उनके ऊपर गिर पड़ा और वो 60 फीट नीचे गुफा में फंस गए.

man trap in cave

पत्रकार ने जाकर किया इंटरव्यू

अगले दिन उनके बेटे और भाई वहां पहुंच गए और उन्हें निकालने की कोशिश करने लगे. उन्हें खाना और पानी दिया गया. पर पत्थर की वजह से उन्हें बाहर नहीं निकाला जा सका. धीरे-धीरे जनता का ध्यान उनकी ओर खिंचने लगा और वहां भीड़ जमा होने लगी. लोग सिर्फ प्लानिंग में ही लगे थे कि उन्हें निकाला कैसे जाए. उसी दौरान 2 फरवरी को विलियम मिलर नाम के पत्रकार गुफा में घुसे और फ्लॉइड का इंटरव्यू लिया. उन्होंने फ्लॉइड के बारे में जो रिपोर्टिंग की, आगे चलकर उसके लिए उन्हें पुलित्जर प्राइज भी मिला. पुलिस और फायर रेस्क्यू टीम भी वहां पहुंच चुकी थी. उन्हें रस्सी के सहारे निकालने की कोशिश की जा रही थी.

50 हजार लोग हो गए जमा

धीरे-धीरे ये राष्ट्रीय मुद्दा बन गया और वहां सैकड़ों लोग पहुंच गए इस रेस्क्यू ऑपरेशन को देखने के लिए. यही नहीं, भीड़ देखकर रेहड़ी वाले खाने-पीने के सामान भी वहीं बेचने लगे. रिपोर्ट के अनुसार उस वक्त वहां 50 हजार लोग तक मौजूद थे जो फ्लॉइड की कंडीशन देखने आए थे. पुलिस को भीड़ नियंत्रित करने के लिए अलग इंतजाम करने पड़े थे. लोग सामने से गुफा को काटने लगे, पर कई दिनों की बारिश, बार-बार दीवार से रगड़ने की वजह से गुफा टूटने लगी और फ्लॉइड खिसकर और नीचे चले गए जिससे रेस्क्यू टीम से वो ज्यादा दूर हो गए.

नहीं बच सके फ्लॉइड

इसके बाद उस गुफा के बगल से नया छेद बनाकर अंदर जाने की कोशिश शुरू हुई पर 16 फरवरी तक ही वो फ्लॉइड तक पहुंच पाए थे. हालांकि, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. फ्लॉइड की मौत हो गई थी. वो 2 हफ्तों तक बिना खाने-पानी के रहे थे जिसके कारण उनकी मौत हो गई थी. मौत के बाद भी उनकी लाश को आराम नहीं मिला. कब्र से लाश चुरा ली गई और बड़ी मुश्किल से उसे वापिस लेकर आया गया. 1989 में जाकर उनकी लाश को चर्च के पास दफनाया गया.

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