अयोध्या|News T20: मीठे फल चख कर नित्य सजाए थारी, रास्ता देखत सबरी की उमर गई सारी…’ इन पंक्तियों में माता शबरी की भगवान राम के प्रति सच्ची भक्ति और प्रभु के दर्शन के इंतजार में बिताए पूरे जीवन के बारे में बताया गया है।

जिस तरह त्रेता युग की शबरी ने भगवान की झलक पाने के लिए उम्र भर इंतजार किया और आखिरकार प्रभु भी उनकी कुटिया में आए, उसी तरह इस कलयुग में भी एक शबरी की कहानी सामने आई है, जिन्होंने अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर (Ram Mandir) बनने के इंतजार में 30 साल से मौन व्रत धारण किया हुआ है।

दरअसल ये सच्ची कहानी धनबाद की सरस्वती अग्रवाल (Saraswati Aggarwal) की है। करमटांड़ की रहने वालीं 85 साल की सरस्वती अग्रवाल ने 30 साल पहले मौन व्रत का संकल्प लिया था और प्रण किया था कि जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बन जाता, वह कभी नहीं बोलेंगी। हालांकि, अब उनका ये इंतजार और मौन व्रत दोनों ही 22 जनवरी को अयोध्या में जाकर खत्म हो जाएंगे।

पति ने दिया अक्षर ज्ञान

प्रभु राम के चरणों में अपना जीवन समर्पित करने वाली सरस्वती अग्रवाल का ज्यादातर वक्त अयोध्या में ही बीतता है। 22 जनवरी को भी वह राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दिन ‘राम, सीताराम’ कहकर ही अपना मौन व्रत तोड़ेंगी।

सरस्वती लिख कर अपने मन की बात बताती हैं कि वह मंदिर बनने से बेहद खुश हैं। वे लिखती हैं, “मेरा जीवन धन्य हो गया। रामलला ने मुझे प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के लिए बुलाया है। मेरी तपस्या, साधना सफल हुई। 30 साल के बाद मेरा मौन ‘राम नाम’ के साथ टूटेगा।”

सरस्वती देवी मूल रूप से राजस्थान की रहने वाली हैं। वह कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन 65 साल पहले जब उनकी शादी भौंरा के देवकीनंदन अग्रवाल से हुई, तो उनके पति ने ही उन्हें अक्षर ज्ञान दिया। अब उनके पति इस दुनिया में नहीं हैं, 35 साल पहले उनका देहांत हो गया, लेकिन उनके दिए अक्षर ज्ञान के सहारे ही उन्होंने पढ़ना लिखना-सीखा।

इसके बाद उन्होंने राम चरित मानस और दूसरे धार्मिक ग्रंथ पढ़ने शुरू किए और आज भी पढ़ती हैं। अपनी दिनचर्या के हिसाब से वह दिन में एक वक्त सिर्फ सात्विक भोजन करती हैं।

कैब, क्यों, कैसे लिया मौन व्रत का प्रण?

सरस्वती अग्रवाल के मौन व्रत की कहानी भी अयोध्या से ही शुरू हुई थी। वह 1992 में अयोध्या गई थीं, जहां उनकी मुलाकात राम जन्म भूमि न्यास के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास से हुई।

महंत नृत्य गोपाल दास ने उन्हें कामतानाथ पहाड़ की परिक्रमा करने का आदेश दिया। बस फिर क्या था वह अयोध्या से निकल पड़ीं चित्रकूट के लिए और रोजाना कामतानाथ पहाड़ की 14km की परिक्रमा की। वह साढ़े सात महीने कल्पवास में रहीं और वो भी सिर्फ रोजाना एक गिलास दूध पीकर।

परिक्रमा के बाद वह अयोध्या लौंटीं और छह दिसंबर 1992 को स्वामी नृत्य गोपाल दास से मिलीं और यहां से शुरू हुआ उनके मौन व्रत का संकल्प। महंत जी से प्रेरणा लेकर उन्होंने प्रण लिया कि जिस दिन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी, उसी दिन वह अपना मौन तोड़ेंगी।

सरस्वती के 8 बच्चे थे, जिनमें चार बेटे, चार बेटी थीं। हालांकि, उनके तीन बच्चों का देहांत हो चुका है। जब सरस्वती के परिवार को उनके मौन धारण करने की जानकारी मिली, तो परिवार वालों ने न सिर्फ उनके इस फैसले का सम्मान किया, बल्कि अपना पूरा सहयोग भी दिया।

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