
हिमालय का अनोखा फल
हिमालय की ऊंची चोटियों और घने जंगलों में एक ऐसा फल उगता है, जो स्वाद में मीठा-खट्टा और उत्पत्ति में रहस्यमयी है।
इसका नाम है काफल। उत्तराखंड, नेपाल और हिमालयी क्षेत्रों में लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं। लेकिन किसान इसे आसानी से उगा नहीं पाते, जिससे इसके बारे में कई लोककथाएं जन्मी हैं।
परियों का फल?
लोककथाओं में कहा जाता है कि काफल का पौधा रात के अंधेरे में परियों द्वारा लगाया जाता है। बीज बोने, खाद डालने और पानी देने के बावजूद यह इंसानी हाथों से नहीं उगता।
विज्ञान कहता है कि इसका बीज अत्यंत कठोर बाहरी परत वाला होता है, जिसे ‘फिजिकल डॉर्मेंसी’ कहते हैं। इस वजह से बीज का अंकुरण प्राकृतिक परिस्थितियों पर निर्भर होता है।

स्वाद और पौष्टिकता
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वैज्ञानिक नाम: Myrica esculenta
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ऊंचाई: 10-15 मीटर तक
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फल: लाल-गुलाबी, चेरी जैसी आकृति
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स्वाद: मीठा-खट्टा
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पोषक तत्व: एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी, फाइबर
स्थानीय लोग इसे ताजा खाते हैं, चटनी बनाते हैं या शरबत पीते हैं।
पक्षियों से बीज का फैलाव
काफल के बीज किसान बोने पर अक्सर नहीं उगते। पक्षियों द्वारा बीजों को खाया और दूर-दूर फैला दिया जाता है, और प्राकृतिक परिस्थितियों में ये उग जाते हैं।
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बीज की कठोर परत पानी और हवा से अंकुरित नहीं होती
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पक्षी प्राकृतिक बीज प्रचार का मुख्य माध्यम हैं
अब खेती संभव
हालांकि अब नई तकनीकों से काफल की खेती हिमालयी क्षेत्रों में शुरू हो गई है, लेकिन लोकमान्यताएं और परियों की कहानियां आज भी लोगों के बीच जीवित हैं।
बच्चे और ग्रामीण इस रहस्यपूर्ण कहानी को चाव से सुनते हैं।
