जयपुर. मारवाड़ के ‘गांधी’ सीएम अशोक गहलोत (Chief Minister Ashok Gehlot) को राजनीति का ‘जादूगर’ यूं ही नहीं कहा जाता. इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के जमाने के दिग्गज सीएम हरिदेव जोशी को उनके बेटे राजीव (Rajiv Gandhi) के काल में कुर्सी गंवानी पड़ी थी. तब इसके पीछे गहलोत का बड़ा हाथ बताया गया था. जोशी के पतन के साथ ही राज्य की सियासत में गहलोत का सूरज चढ़ता गया. अब वह सचिन पायलट नाम की चुनौती को ठिकाने लगाने के जोड़-तोड़ में लगे हैं. इसके लिए फ्रीबी योजनाओं (Freebie Schemes- मुफ्त की सुविधाएं) से लेकर वर्ग-विशेष को साधने, जातिगत वोटों में गहरी पैठ बनाने में लगे हैं.
राजस्थान में पिछले तीस साल से सरकारों को बदलने की परिपाटी रही है. कांग्रेस के बाद बीजेपी यहां चलन में है, लेकिन इस बार सीएम गहलोत और सचिन पायलट कांग्रेस सरकार को रिपीट करने के दावे कर रहे हैं.
कांग्रेस रिपीट हो तो श्रेय ‘सरकार’ को ही मिले
यही वजह है कि सीएम ने चुनावी साल में कई लोकलुभावनी और फ्रीबी घोषणाओं की झड़ी लगा दी. वो हर वर्ग-समुदाय को खुश करने में लगे हैं. हालात ऐसे बन रहे हैं कि यदि इस साल के आखिरी में होने वाले चुनावों में सरकारें बदलने की रिवायत टूटती है और कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिलता है तब सीएम अशोक गहलोत निश्चित रूप से सफलता के श्रेय अपने ही ‘ऐतिहासिक कामकाज’ को देंगे. क्योंकि तीन दशक में ऐसा नहीं हुआ कि मौजूदा सरकार को एंटी इंकम्बेंसी न झेलनी पड़ी है. यदि कांग्रेस को रिपीट कराने का सेहरा सरकार के सिर बंधता है तो सरकार के मुखिया को फिर से ‘पायलट’ यानि सीएम बनाने की दावेदारी होने लगेगी.
माफी मांग कर सीएम ने बचा ली थी कुर्सी
बड़ा सवाल यही है कि ऐसे हालात में पायलट कैंप के पास क्या विकल्प हैं? और उनकी भविष्य की राजनीति क्या होगी? दरअसल, पायलट खेमे के पास हाईकमान का फैसला मानने के अलावा जो विकल्प हैं, वह बेहद जोखिमभरे हैं. हाईकमान ने अपने वादे के मुताबिक पिछले साल सचिन का नाम सीएम के लिए आगे कर दिया था, लेकिन गहलोत खेमे के विधायक इस पर राजी नहीं हुए. इसके बाद सियासी तिकड़मों के बीच ऐतिहासिक अनुसाशनहीनता हुई और इसके लिए सीएम अशोक गहलोत को सोनिया गांधी से माफी तक मांगनी पड़ी. यह अलग बात है कि इस माफी ने सीएम की कुर्सी को बचा लिया.
जिम्मेदारी नहीं मिली तो भूमिका नगण्य रहेगी
अब यदि चुनाव तक सचिन पायलट को संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं मिलती है तो विधानसभा उम्मीदवारों को टिकट वितरण में उनकी भूमिका अहम नहीं रहेगी. ऐसे में कांग्रेस के बहुमत के करीब पहुंचने की स्थिति में भी सचिन समर्थक विधायकों की संख्या कम रह जाएगी. दस समर्थक विधायकों की कमी के चलते ही सचिन पायलट इस बार चाहकर, बगावत करके भी मुख्यमंत्री का ताज नहीं पहन पाए. ऐसे में आने वाले कुछ महीनों में सचिन को मिलने वाली जिम्मेदारी उनके भविष्य का निर्धारण करेगी. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक ये चार संभावनाएं बनती हैं…
पहली संभावना : पायलट बीजेपी को जॉइन करेंगे?
बीजेपी के पास कोई बड़ा गुर्जर नेता नहीं है. एक संभावना यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के दोस्त पायलट को बीजेपी में शामिल कर लिया जाए. अमित शाह मानेसर बगावत के समय से ही सिंधिया के माध्यम से दबाव बना रहे हैं, लेकिन बात बन पा रही. कांग्रेस की ओर से लगातार लॉलीपाप सियासत से सचिन ऊहापोह की स्थिति में हैं. गहलोत सरकार गिराने के लिए उनके पास पर्याप्त विधायक नहीं है. ऐसे में किसी बेहतरीन ‘ऑफर’ की शर्त पर पायलट बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. हालांकि इससे बीजेपी में सीएम फेस बने नेताओं के पेट में दर्द हो सकता है.
दूसरी संभावना : प्रदेश अध्यक्ष बनकर फ्री हेंड लें
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस पूरे विवाद को निपटाने और कांग्रेस को नुकसान से बचाने के लिए आलाकमान यह निर्णय भी कर सकता है कि पायलट को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाए. पायलट इस प्रस्ताव को तभी मान सकते हैं, जबकि उन्हें इलेक्शन तक के लिए पूरी तरह फ्री हेंड दिया जाए. ताकि वे अगले चुनावों में टिकट वितरण में प्रभावी भूमिका निभा सकें और सरकार रिपीट कराने के अपने फार्मूले पर काम कर सकें.
तीसरी संभावना- क्या सचिन पायलट नई पार्टी बनाएंगे?
कांग्रेस में पूछ न हो और बीजेपी में एंट्री में रुकावटें हों तो पायलट के पास तीसरा रास्ता क्या है? क्या वे अमरिंदर की तरह नई पार्टी बनाएंगे? ऐसी ही चर्चाओं को रालोपा सुप्रीमो और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल के बयान ने और हवा दे दी है. बेनीवाल ने कहा है कि पायलट और किरोड़ी लाल मीणा नई पार्टियां बनाकर हमारे साथ मिलकर चुनाव लड़ें तो इस फार्मूले पर अमल करते हुए हम विधानसभा की 140 सीटें जीतकर सरकार बना सकते हैं. हालांकि इसकी संभावना कम है.
चौथी संभावना : पायलट दिल्ली की राजनीति करें
राज्य की करीब चालीस सीटों पर असर रखने वाले गुर्जरों ने कांग्रेस को सत्ता में लाने में मुख्य भूमिका निभाई थी. सचिन को सीएम न बनाने से गुर्जर नाराज हैं. अब सचिन को अगले चुनाव में भी सीएम फेस न बनाने से गुर्जरों की नाराजगी बढ़ सकती है और वो बीजेपी के पाले में जा सकते हैं. इस विकट स्थिति को देखते हुए हो सकता है कि हाईकमान सचिन पायलट को दिल्ली बुलाकर संगठन में कोई बड़ी और अहम जिम्मेदारी दे दे. ताकि समाज के वोट साधने के साथ ही राजस्थान में पायलट वर्सेज गहलोत के सियासी टकराव को भी कमजोर किया जा सके.